नई दिल्ली
दुनिया भर के 50 देशों से आए 150 इस्लामी विद्वान गुरुवार, 28 अगस्त को गाज़ा पट्टी में घिरे और पीड़ित लोगों के समर्थन में रोज़ा रखेंगे। यह निर्णय अंतर्राष्ट्रीय मुस्लिम विद्वानों के संघ द्वारा लिया गया है, जिसने गाज़ा के लोगों के साथ एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए रोज़े की सुन्नत को पुनर्जीवित करने का आह्वान किया है।
संगठन के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर डॉ. अली अल-क़रादागी ने बताया कि यह फैसला तुर्की में आयोजित एक सम्मेलन के दौरान लिया गया, जहाँ 50 देशों के विद्वान एकत्र हुए थे। उन्होंने कहा—
"गाज़ा के लोग जानबूझकर थोपे गए भूख और प्यास का सामना कर रहे हैं। ऐसे समय में हम रोज़ा रखकर उनके साथ अपनी एकजुटता और संवेदना प्रकट करेंगे।"
गाज़ा की मौजूदा स्थिति को लेकर मुस्लिम जगत के विद्वानों और मौलवियों का सम्मेलन 22 अगस्त से तुर्की के इस्तांबुल में चल रहा है, जो 29 अगस्त तक जारी रहेगा। इसमें गाज़ा पर हो रहे इज़राइली आक्रमण को रोकने और पीड़ितों को राहत पहुँचाने के उपायों पर चर्चा की जा रही है।
सम्मेलन से कई महत्वपूर्ण आह्वान और मांगें सामने आईं, जिनमें शामिल हैं:
तत्काल युद्धविराम: अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से गाज़ा में तुरंत पूर्ण युद्धविराम की मांग।
मानवीय सहायता: भोजन, पानी, दवाइयों और ज़रूरी वस्तुओं की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए मानवीय गलियारे खोलने का आह्वान।
मुस्लिम एकजुटता: उम्माह से गाज़ावासियों के साथ खड़े होने की अपील।
कानूनी कार्रवाई: इज़राइली नेताओं को अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) के तहत न्याय के कटघरे में लाने की पहल पर ज़ोर।