सूरजकुंड मेले में कश्मीर और भिंड-ग्वालियर के युवा शिल्पकारों की धमक

Story by  दयाराम वशिष्ठ | Published by  [email protected] | Date 13-02-2025
The young craftsmen of Kashmir and Bhind-Gwalior shine at the Surajkund fair
The young craftsmen of Kashmir and Bhind-Gwalior shine at the Surajkund fair

 

दयाराम वशिष्ठ, फरीदाबाद (हरियाणा)

38वेंसूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय मेलाका आयोजन इस बार युवा शिल्पकारों के लिए एक बड़े अवसर के रूप में साबित हो रहा है.खासकर मुस्लिम युवा शिल्पकारों की उपस्थिति इस बार विशेष रूप से देखी जा रही है, जो अपने पारंपरिक कारीगरी को एक नए रूप में पेश कर रहे हैं.

इसमें कश्मीर और मध्यप्रदेश के भिंड-ग्वालियर क्षेत्र के शिल्पकारों की भागीदारी अधिक उत्साहजनक रही है, जो अपनी कला, हुनर और डिजाइनों से मेले में आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं.इन शिल्पकारों का कहना है कि बदलाव के दौर में ग्राहकों की रुचियों और पसंद में भी बदलाव आया है, जिससे उन्हें अपनी डिजाइनों को और अधिक सुधारने और बाजार की मांग के अनुरूप बनाने का अवसर मिल रहा है.

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कश्मीर के शिल्पकार मोहम्मद सफी की नई डिजाइनों से सजी स्टॉल

श्रीनगर (कश्मीर) के मोहम्मद सफी, जो पहले से ही अपने पुस्तैनी व्यवसाय में लगे हुए हैं, इस बारसूरजकुंड मेलामें अपनी नई डिजाइनों के साथ पहुंचे हैं.उनकी स्टॉल में खासकरशूट, शालऔरसाड़ियोंके डिज़ाइन आकर्षक नजर आ रहे हैं.सफी का कहना है कि यह उनका पारंपरिक व्यापार है, जो उन्होंने अपने परिवार से सीखा है, लेकिन पिछले दस वर्षों से वे खुद के डिजाइन लेकर इस व्यापार में अपनी अलग पहचान बनाने में जुटे हैं.

मोहम्मद सफी ने बताया,“इस मेले में आने से हमें यह फायदा हुआ है कि हमें विभिन्न राज्यों और देशों के ग्राहकों की पसंद का अंदाजा मिलता है.इससे हमें अपने डिजाइन और उत्पादों को बेहतर तरीके से प्रस्तुत करने में मदद मिलती है.इस बार हमारे पासशूटऔरसाड़ियोंके कुछ खास डिज़ाइन हैं, जो खासकर ग्राहक वर्ग में बहुत पसंद किए जा रहे हैं.हम अपने व्यापार को अगले स्तर पर ले जाने के लिए निरंतर नए डिज़ाइन पर काम कर रहे हैं."

उनकी स्टॉल पर साड़ियों की कीमत ₹2,000 से लेकर ₹50,000 तक है, और इनकी बिक्री काफी अच्छे स्तर पर हो रही है.सफी के अनुसार, उनका कश्मीर में एक कारखाना है, जहां डिज़ाइन तैयार होते हैं, और फिर वह इन डिज़ाइनों कोसूरजकुंड मेलाजैसे बड़े बाजारों में पेश करते हैं.

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भिंड-ग्वालियर से पहुंचे रिजवान अहमद की पहली मेला उपस्थिति

मध्यप्रदेश के भिंड-ग्वालियर क्षेत्र से आए रिजवान अहमद, जो इस बारसूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय मेलामें अपनी स्टॉल लेकर आए हैं, मेला में अपनी पहली उपस्थिति दर्ज करवा रहे हैं.

रिजवान ने इस मेले मेंसाड़ी, चुन्नीऔरशूटके नए डिज़ाइनों के साथ अपनी स्टॉल सजा रखी है.वे बताते हैं कि उन्होंने अपने कपड़े के कारोबार में ₹5 लाख का निवेश किया है और उनका उद्देश्य ग्राहकों की पसंद के अनुसार अपने डिज़ाइन को और बेहतर बनाना है.

रिजवान अहमद ने कहा,“यह मेरी पहली बार मेला में उपस्थिति है, और मुझे खुशी है कि हम सही दिशा में बढ़ रहे हैं। यहां की बिक्री ठीक-ठाक हो रही है। हम तीन भाई इस व्यवसाय में लगे हुए हैं, और हमारा उद्देश्य ग्राहकों की इच्छाओं के अनुरूप डिज़ाइन तैयार करना है.”

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उनकी स्टॉल पर नए डिज़ाइन के कपड़े ग्राहकों का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। वे उम्मीद करते हैं कि मेले के माध्यम से उनके काम को और भी पहचान मिलेगी और वे भविष्य में इस क्षेत्र में और अधिक विस्तार कर सकेंगे.

नई ज़माने की कला, पुरानी कारीगरी से मेलजोल

इस बारसूरजकुंड मेलामें आए इन शिल्पकारों का कहना है कि कारीगरी में बदलाव के साथ-साथ ग्राहकों की रुचियों में भी बदलाव आया है.खानपान, पहनावा और घरेलू सजावट के सामान में हुए बदलाव ने उन्हें नई डिज़ाइन तैयार करने के लिए प्रेरित किया है.

उन्हें यह फायदा भी हुआ है कि इस मेले में आने वाले देश-विदेश के पर्यटकों के जरिए उन्हें नए ट्रेंड्स और डिज़ाइनों का पता चलता है, और वे अपने सामान को उसी अनुरूप डिजाइन करके मेले में लेकर आते हैं.

 

 

सिर्फ कश्मीर और भिंड-ग्वालियर के शिल्पकार ही नहीं, बल्कि अन्य हिस्सों से भी युवा शिल्पकार अपने हुनर को इस मेले के माध्यम से दिखा रहे हैं। इस मेले ने न केवल कारीगरी और कला के क्षेत्र में नई ऊर्जा का संचार किया है, बल्कि शिल्पकारों को एक वैश्विक मंच पर अपनी कला प्रदर्शित करने का अवसर भी दिया है.

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सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय मेलाके माध्यम से कश्मीर, मध्यप्रदेश और अन्य क्षेत्रों के युवा शिल्पकारों के लिए न केवल एक बड़ा व्यापारिक अवसर पैदा हुआ है, बल्कि यह कला और संस्कृति के संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है.

इन युवा शिल्पकारों के समर्पण और मेहनत से यह साबित होता है कि पुराने समय की कारीगरी में भी नई सोच और डिज़ाइन का समावेश करके उसे आधुनिकता की ओर अग्रसर किया जा सकता है.इस मेले के माध्यम से उनका काम न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी चर्चा में आ रहा है, जो उनके लिए एक बड़ी सफलता है.