आवाज द वॉयस /अजमेर
अजमेर दरगाह के प्रमुख दीवान सैयद जैनुल आबेदीन अली खान ने कहा कि मौजूदा समय में देश में धार्मिक समन्वय और सद्भाव स्थापित करने के लिए सभी धर्म के धर्म गुरुओं के सामूहिक प्रयास की जरूरत है. वह सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के 811 वें उर्स की पूर्व संध्या पर शनिवार को दरगाह स्थित खानकाह शरीफ में देश भर की प्रमुख दरगाहों के सज्जादानशीन, सूफियों एवं धर्म प्रमुखों की वार्षिक सभा को संबोधित कर रहे थे.
इस दौरान उन्होंने कहा कि पैगंबर मोहम्मद साहब ने स्पष्ट कहा है - क्या आप जानते हैं कि दान और उपवास और प्रार्थना से बेहतर क्या है? यह है कि लोगों के बीच शांति और अच्छे संबंध बनाए रखना है. संघर्ष और बुरी भावनाएं मानव जाति को नष्ट कर देती हैं.
उन्होंने कहा कि देश की एकता और अखंडता के लिए जरूरी है कि धर्म राजनीति, क्षेत्रवाद, नस्लीय भेदभाव के आधार पर होने वाली हिंसा को रोकने के लिए देश के सभी धर्मों के धर्मगुरु मिलकर सामूहिक प्रयास करें.
अपने कर्तव्यों का निर्वहन ईमानदारी एवं सच्ची निष्ठा से करें. हम ऐसा करने में सफल रहे तो निश्चित ही न केवल देश बल्कि विश्व में सद्भावना कायम होगी. सांप्रदायिकता का मुकाबला एकता एवं सद्भाव से ही संभव है.
उन्होंने कहा कि इस्लाम हिंसा की निंदा करता है. अहिंसा, सहिष्णुता, सद्भाव और एक दूसरे के लिए सम्मान ही इसकी पहचान है. इस्लाम कहता है कि अल्लाह हमलावरों से नफरत करता है, इसलिए ऐसा मत बनो.
इस्लाम अपने अनुयायियों से क्षमा करने को बढ़ावा देने का आह्वान करता है. शांति, आपसी सम्मान और विश्वास मुसलमानों के दूसरों के साथ संबंधों की नींव है. कुरान के अनुसार शांतिपूर्ण साधनों से ही शांति प्राप्त की जा सकती है.
अंत में उन्हांेने कहा कि सूफियों के प्यार भरे इस्लामी संदेश की कोशिश है कि आज भी देश में ऐसी सैंकड़ों दरगाहें हैं जिनकी देख रेख गैर मुस्लिम कर रहे हैं. सूफियों की प्रेम करूणा की वजह है कि भारत से पूरी दुनिया में इस्लाम के शांति और भाईचारे का पैगाम का प्रसार हुआ है.
सूफी परंपरा का साम्प्रदायिकरण करना गलत है. उन्होंने कहा कि सूफीवाद ने कोमलता और प्रेम से स्वयं को विश्व में स्थापित किया है. भारत में इसे लाने का श्रेय महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती को जाता है, जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी अजमेर में बिताई. आज भी अजमेर शरीफ को धर्म-सम्प्रदाय के भेदभाव से परे उनके पवित्र दरगाह के शहर के रूप में जाना जाता है.
इस पारंपरिक आयोजन में देश की प्रमुख चिश्तिया सिलसिले की दरगाहों के सज्जाद गान व धर्म प्रमुखों ने भाग लिया.
इनमें मेहंदी मियां नियाजी बरेली शरीफ, मोहम्मद शब्बीरूल हसन गुलबर्गा शरीफ कर्नाटक, फरीद निजामी दिल्ली, सैयद तुराब अली हलकट्टा शरीफ आंध्र प्रदेश, सैयद जियाउद्दीन दरगाह अमेटा शरीफ गुजरात, बादशाह मियां जियाई जयपुर, सैयद बदरुद्दीन दरबारे बारिया चटगांव बांग्लादेश,कर्नाटक गुलबर्गा शरीफ स्थित ख्वाजा बंदा नवाज गेसू दराज की दरगाह के नायब सज्जादानशीन सैयद यद्दुलाह हुसैनी, दरगाह सूफी कमालुद्दीन चिश्ती के सज्जा नशीं गुलाम नजमी फारूकी, नागौर शरीफ के पीर अब्दुल बाकी सहित भागलपुर, फुलवारी शरीफ, लखनऊ, शफीपुर काकोरी शरीफ, बरेली मुरादाबाद , गंगोह शरीफ दरबाह साबिर पाक कलियर, दरगाह हजरत निजामुद्दीन आदि 100 से अधिक सज्जाद गान मौजूद रहे.