Naveen Jindal: Hero of the fight for the honour of the tricolour and people's rights
अर्सला खान/नई दिल्ली
भारत अपने 78वें स्वतंत्रता दिवस का जश्न मना रहा है. इस बार भी देशभर में तिरंगे की शान लहराई जाएगी, सरकारी इमारतों से लेकर गली-मोहल्लों तक हर जगह तिरंगे की रंगत दिखेगी. लेकिन आज यह जोश और गर्व का नजारा हम सबके लिए आम हो पाया है, इसके पीछे एक ऐसे शख्स की लंबी और साहसी कानूनी लड़ाई का योगदान है, जिसे देश शायद कभी भूल नहीं सकता. कारोबारी और पूर्व सांसद नवीन जिंदल.
आज से करीब ढाई दशक पहले तक भारत में आम नागरिकों को साल के सिर्फ कुछ खास अवसरों पर और वह भी सीमित परिस्थितियों में ही राष्ट्रीय ध्वज फहराने की अनुमति थी. तिरंगा फहराना किसी सरकारी इमारत, स्कूल या विशेष सरकारी कार्यक्रम तक ही सीमित था आम लोग इसे रोजमर्रा की जिंदगी में अपने घरों, दफ्तरों या प्रतिष्ठानों पर नहीं फहरा सकते थे. यह स्थिति उस राष्ट्र के लिए अजीब थी, जिसने अपने स्वतंत्रता संग्राम में इस ध्वज को प्रतीक बनाकर हजारों बलिदान दिए थे.
एक युवा की जिज्ञासा से शुरू हुई यात्रा
कहानी 1992 की है, जब अमेरिका में पढ़ाई के दौरान नवीन जिंदल ने देखा कि वहां लोग अपने राष्ट्रीय ध्वज को गर्व से हर दिन अपने घरों, वाहनों और कार्यस्थलों पर फहराते हैं. भारत लौटने के बाद उन्होंने अपने कारखाने में तिरंगा फहराया. लेकिन जल्द ही उन्हें प्रशासन की ओर से यह कहकर रोक लगा दी गई कि यह कानून के खिलाफ है. उस वक्त ‘फ्लैग कोड ऑफ इंडिया’ के प्रावधान इतने सख्त थे कि नागरिक साल में केवल 26 जनवरी, 15 अगस्त और 2 अक्टूबर जैसे कुछ दिनों पर ही तिरंगा फहरा सकते थे.
जिंदल को यह नियम लोकतांत्रिक भावना और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के विपरीत लगा। उन्होंने इसे अपना व्यक्तिगत अधिकार मानते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया.
कानूनी लड़ाई और ऐतिहासिक फैसला
नवीन जिंदल ने 1995 में दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने दलील दी कि राष्ट्रीय ध्वज फहराना हर भारतीय का मौलिक अधिकार है, जो संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) यानी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत आता है. इस मामले में कई सालों तक सुनवाई हुई.
दिल्ली हाईकोर्ट ने 2001 में जिंदल के पक्ष में फैसला दिया और कहा कि तिरंगा फहराना भारतीय नागरिक का अधिकार है, बशर्ते इसका इस्तेमाल सम्मानपूर्वक और नियमों के अनुसार किया जाए. हालांकि, केंद्र सरकार ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.
2004 में सुप्रीम कोर्ट ने भी दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि तिरंगा फहराना नागरिक का मौलिक अधिकार है. इसके बाद ‘फ्लैग कोड ऑफ इंडिया’ में संशोधन किया गया, जिससे नागरिक अब साल के किसी भी दिन तिरंगा फहरा सकते हैं.
तिरंगे के प्रति आस्था और अभियान
नवीन जिंदल ने सिर्फ कानूनी लड़ाई ही नहीं लड़ी, बल्कि उन्होंने तिरंगे के सम्मान के लिए जनजागरूकता अभियान भी चलाया. उनकी अगुवाई में फ्लैग फाउंडेशन ऑफ इंडिया की स्थापना हुई, जो ध्वज से जुड़े सम्मान और सही उपयोग के बारे में लोगों को जागरूक करती है.
उनका मानना है कि तिरंगा सिर्फ कपड़े का टुकड़ा नहीं, बल्कि यह देश की एकता, स्वतंत्रता और बलिदान का प्रतीक है. उन्होंने कई मौकों पर कहा है कि तिरंगा फहराने का अधिकार मिलने से नागरिकों में राष्ट्रभक्ति की भावना और मजबूत होती है।
78वें स्वतंत्रता दिवस का महत्व
जब भारत अपना 78वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है, तो यह अवसर हमें न सिर्फ स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान की याद दिलाता है, बल्कि उन लोगों के संघर्ष को भी सलाम करता है जिन्होंने स्वतंत्रता के बाद भी नागरिक अधिकारों के विस्तार के लिए काम किया. आज हर गली, हर मोहल्ला, हर घर और हर दिल में तिरंगे की शान लहर रही है, और इसके पीछे नवीन जिंदल जैसे लोगों की दृष्टि और साहस है.
आज बच्चे अपने स्कूल में, युवा अपने कॉलेज में, व्यापारी अपने प्रतिष्ठान में और आम नागरिक अपने घर की छत पर तिरंगा फहराते हैं. सोशल मीडिया पर भी प्रोफाइल पिक्चर्स तिरंगे के रंगों में रंग जाती हैं. यह सब संभव हुआ उस कानूनी लड़ाई की वजह से, जिसने तिरंगे को हर भारतीय के जीवन का हिस्सा बना दिया.
संदेश और प्रेरणा
नवीन जिंदल की कहानी इस बात का प्रमाण है कि अगर किसी को अपने अधिकार के लिए सच्ची लगन और कानूनी रास्ते पर भरोसा हो, तो बदलाव संभव है. स्वतंत्रता दिवस के इस खास मौके पर यह याद रखना जरूरी है कि लोकतंत्र सिर्फ राजनीतिक आजादी नहीं देता, बल्कि नागरिक अधिकारों को संरक्षित और विस्तारित करने की जिम्मेदारी भी हम सब पर है.
78वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर जब तिरंगा आसमान में लहराएगा, तो यह न केवल स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि होगी, बल्कि उन आधुनिक भारत के नायकों को भी सलाम होगा, जिन्होंने हमारे अधिकारों के दायरे को और व्यापक बनाया. नवीन जिंदल निस्संदेह उनमें से एक प्रमुख नाम हैं.