हैबतपुर गांव, जहां के लोगों ने कभी एफआईआर दर्ज नहीं कराई

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 07-12-2023
Haibatpur village, where people never filed FIR
Haibatpur village, where people never filed FIR

 

आतिर खान / हैबतपुर (यूपी)

गढ़मुक्तेश्वर के पास गंगा के तट से लगभग 40 किलोमीटर दूर स्थित है रमणीय गांव हैबतपुर. यह इलाका पठानों के प्रभुत्व वाला है. यह गांव उत्तर प्रदेश में सदियों से शांतिपूर्ण और समृद्ध जीवन का एक उदाहरण रहा है.राष्ट्रीय राजमार्ग 24से बमुश्किल कुछ सौ मीटर की दूरी पर गांव के रास्ते में हरे-भरे खेत हैं. साल के इस समय में गन्ने के खेत से गुलजार हैं. हवा में तैरती खेतों में गोबर की खाद की महक गांव में होने का एहसास कराती है.

आसपास के वातावरण में स्वतंत्र रूप से और निडर होकर चरते मवेशी, मुर्गे और बकरियां एक देहाती एहसास देते हैं. साफ-सुथरी वर्दी में पीठ पर स्कूल बैग लटकाए लड़कियां साइकिल पर पैडल मारते हुए अपने स्कूल जाती हुई दिखाई देती हैं.पिछले कुछ वर्षों में सड़कें और घर पक्के हो गए हैं लेकिन हवा अभी भी हल्की और सांस लेने योग्य है. यही हवा है जिसने 106साल के अलाउद्दीन खान को लंबी जिंदगी जीते देखा है. वह उपलब्धि की भावना के साथ कहते हैं, ‘‘ मैं दिन में पांच बार नमाज अदा करने के लिए अपने घर से गांव की मस्जिद तक लगभग एक किमी पैदल चलता हूं.

अलाउद्दीन पगड़ी पहनते हैं और उसकी लंबी सफेद दाढ़ी है. उम्र के साथ उनके चेहरे और हाथों पर झुर्रियां आ गई है. फिर भी उनके चेहरे पर बच्चों जैसी मासूमियत है. गांव में अपनी अप्रतिबंधित आवाजाही के लिए उन्हें बस एक लकड़ी की छड़ी की आवश्यकता होती है.

गांव में लोग खुश हैं. आस-पास के गांवों के हिंदू जाटों से  उनकी अच्छी बनती है. ग्रामीण कहते हैं, हमें अपनी परंपरा पर गर्व है. वे (हिंदू) हमारे गांव में सामाजिक गतिविधियों में भाग लेते हैं, और हम जाटों द्वारा बसे 50गांवों में शिष्टाचार के साथ देखे जाते हैं. इसीलिए दोनों धार्मिक समुदायों के बीच कभी कोई टकराव नहीं हुआ.

अलाउद्दीन खान कहते हैं, उनके साथ हमारे मजबूत संबंध हैं.गांव के अंदर एक संकरी सड़क के चौराहे पर बूढ़े हिंदू और मुस्लिम गांव के लोगों का एक समूह घेरे में इकट्ठा दिखा. करीब से देखने पर वे हाथों में कंकड़-पत्थर लेकर खेल खेलते दिखे. उन्होंने बताया कि इस खेल को वे बागीबाग कहते हैं.

लोककथाओं के अनुसार, इस गांव में पांच पठान भाई रहते थे, जो बहुत समय पहले भारत आए थे. फिर पांचों भाइयों ने हिंदू मित्रों को गांव में बसने के लिए आमंत्रित किया. इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि पठान गांव जाट बस्तियों से घिरा हुआ है.75 वर्षीय जाहिद खान कुर्सी पर बैठे आगे झुकते हुए बहुत संतुष्टि से कहते हैं, ‘‘ हम कड़ी मेहनत करने वाले लोग हैं. ग्रामीण जीवन का पूरा आनंद लेते है.’’

वह एक प्रतिष्ठित किसान हैं, जिनकी पारी समाप्त हो चुकी है और अब वे सेवानिवृत्त जीवन का आनंद ले रहे हैं. उनके बेटों ने उनका काम संभाल लिया है.वह आगे कहते हैं, गांव में ज्यादातर लोग एक-दूसरे के रिश्तेदार हैं. गांव के करीब 1500मतदाता पांच पठान पूर्वजों की वंशावली हैं. समुदाय में अंतर-विवाह के परिणामस्वरूप घनिष्ठ परिवार बन गए हैं.

गांव के पुरुष कृषक हैं जिनके पास विशाल भूमि है, जबकि युवा पीढ़ी अब व्यवसाय में अधिक रुचि ले रही है.युवा असीम खान कहते हैं, “जोया में मेरा एक बैंक्वेट हॉल है और मैं तीन ईंट भट्ठे चलाता हूं. अल्लाह हम पर मेहरबान रहा है. हमारा व्यवसाय अच्छा चल रहा है.” उनकी दो छोटी बेटियां हैं, जिन्हें वह अच्छी शिक्षा देना चाहते हैं.

महिलाएं शिक्षा की आवश्यकता के प्रति काफी जागरूक हैं. 96साल की बानो बेगम सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा हैं. वह देहाती ज्ञान का स्रोत हैं.अपने युवा दिनों में, बानो बेगम ने लंबे समय तक गांव के प्रधान के रूप में कार्य किया है. उनका दबदबा आज भी बरकरार है. वह हाथों में तस्बीह लिए चारपाई पर सीधी बैठी हुई मिली. लड़कियों की शिक्षा में दृढ़ विश्वास रखने वाली बानो बेगम हर किसी को प्रेरित करती हैं और हमेशा स्नेही बच्चों से घिरी रहती हैं.

गृहिणी और बानो बेगम की रिश्तेदार शाजिया कहती हैं, “हमारा गांव बहुत भाग्यशाली रहा है. कई लड़कियां प्रोफेशनल कोर्स कर रही हैं. उनमें से कुछ तो कपड़े का व्यवसाय भी कर रही हैं.”उनकी छोटी भतीजी रुश्दा पास के एक निजी संस्थान से बी फार्मा डिप्लोमा कोर्स कर रही है. वह मुस्कुराते हुए कहती हैं, ‘‘ मैं अपनी पढ़ाई खत्म करने के बाद एक केमिस्ट की दुकान शुरू करना चाहती हूं.’’

रुश्दा फौजी खान की बेटी हैं. उनके पिता ने कई वर्षों तक भारतीय सेना में सेवा की. इस तरह उन्हें अपना उपनाम मिला. वह खेती और अन्य व्यवसायों में लौट आए हैं. उन्हें क्षेत्र में सम्मान और सद्भावना से  देखा जाता है.वह कहते हैं, ‘‘ पिछले सात वर्षों के दौरान क्षेत्र में उल्लेखनीय विकास हुआ है. अच्छी सड़कों और राजमार्गों ने बेहतर कनेक्टिविटी सुनिश्चित की है. गांव के लोगों को सरकारी योजनाओं का पूरा लाभ मिलता है.”

वह आगे कहते हैं, “गांव में इतना शांति है कि किसी को पुलिस में एफआईआर दर्ज कराने की जरूरत ही नहीं पड़ती. हम अपने विवादों को स्थानीय स्तर पर सुलझाते हैं.गांव के युवा खेलों में रुचि रखते हैं. युवा इब्राहिम खान कहते हैं, “कुश्ती से मुझे अच्छा महसूस होता है. यह मेरे शरीर और दिमाग को फिट रहने में मदद करता है.

इससे मुझे आत्मविश्वास मिलता है. वह रोजाना गांव के अन्य युवा पहलवानों के साथ घंटों प्रैक्टिस करते हैं. ग्रामीणों को घर पर ही खाना खाने की आदत है. वे कभी बाहर का खाना नहीं जाते, ताकि वे फिट रहें. हालाँकि, उन्हें घर का बना आम का अचार बहुत पसंद हैं.समृद्ध गांव से ताल्लुक रखने के बावजूद यहां के युवाओं में देश सेवा की ललक है. कई लोग सशस्त्र बलों में शामिल हो गए हैं.

अबाद खान कहते हैं, “मैंने मानविकी में स्नातकोत्तर पूरा कर लिया है. अब मैं सेना में शामिल होने की कोशिश कर रहा हूं.’’ वो आगे कहते हैं, “ये हमारा जुनून है. हमारे लिए फक्र की बात है.इस गांव की यात्रा मंत्रमुग्ध करने वाली और ताजगी देने वाली दोनों में से एक है. ऐसा प्रतीत होता है कि हैबतपुर दुनिया में प्रचलित सांप्रदायिक ध्रुवीकरण से खुद को अलग रखने में कामयाब रहा है. चाहे किसी भी राजनीतिक दल का शासन हो, यहां के लोग अपने सरल, स्वस्थ और शांतिपूर्ण जीवन से खुश हैं.