जामिया मिल्लिया इस्लामिया की छात्राएं बोलीं, लड़कों के मुकाबले लड़कियों को उच्च शिक्षा नहीं दी जाती

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 24-04-2023
जामिया मिल्लिया इस्लामिया की छात्राएं बोलीं, लड़कों के मुकाबले लड़कियों को उच्च शिक्षा नहीं दी जाती
जामिया मिल्लिया इस्लामिया की छात्राएं बोलीं, लड़कों के मुकाबले लड़कियों को उच्च शिक्षा नहीं दी जाती

 

मोहम्मद अकरम /नई दिल्ली

कोई भी समाज या देश उस वक्त तक सही मायने में विकसित नहीं हो सकता, जब तक वहां के लड़के और लड़कियों को एक नजर से न देखा जाए। लड़कियों को लड़कों की तरह ही उच्च शिक्षा हासिल करने का मौका दिया जाना चाहिए. इस आधुनिक समय में भी समाज खुद को बदलने की बात तो करता है, लेकिन लड़कियों को उस तरह मौका नहीं दिया जाता, जिस तरह से एक लड़के को अपनी ख्वाहिश के मुताबिक कुछ भी करने की इजाजत होती है.

मुस्लिम समाज में लड़कियों को उच्च शिक्षा बहुत कम महत्व दिया जाता है. ऐसा माना जाता है कि सुरक्षा, आर्थिक हालात और सामाजिक बंधन के कारण बहुत सारी लड़कियां अपने सपनों को पूरा नहीं कर पाती है. आवाज-द वॉयस ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया की कुछ छात्राओं से बात की है कि आखिर लड़कियों को उच्च शिक्षा को लेकर वह क्या सोचती हैं और किस तरह की रुकावटें सामाजिक तौर पर आती हैं.

जामिया मिल्लिया इस्लामिया में साइकोलॉजी की छात्रा समरा कहती हैं कि अभी भी समाज में लड़कियों को जितनी शिक्षा मिलनी चाहिए, वह नहीं मिलती है. उसके बहुत सारे कारण हो सकते हैं, मेरे हिसाब से सबसे बड़ी वजह पुरानी सामाजिक परंपराएं हैं। लड़कियों को लिमिट कर दिया गया है, लड़कों की तरह का मौका मिलना चाहिए, जो नहीं मिल पाता है. लड़कियां खुद निकलकर कहीं नहीं जा सकतीं, क्योंकि उसके कंडिसन थोड़ी अलग होती है. घर जल्दी जाना, उनकी सेफ्टी का मामला होता है.

 

जितनी एजुकेशन होनी चाहिए थी वह नहीं हो पाई

सामाजिक तौर पर लड़कियों के हवाले से पुरुषों में जो ख्याल पैदा हुआ है, उस बारे में समरा कहती हैं, ‘‘लोगों के दिमाग में ये बैठ चुका है कि लड़कियां वह काम नहीं कर सकती है, जो मर्द कर लेते हैं. आर्थिक तौर पर भी देखा जा सकता है. जैसा कि मेरे काम वाली की बच्ची है,वह साइड में काम कर रही होती है, वह मेरे ही उम्र की है, तो कभी-कभी देख कर बुरा भी लगता है. मुझे लगता है कि जितनी एजुकेशन होनी चाहिए थी, वह नहीं हो पाई है.’’

उत्तर प्रदेश के गांव की रहने वाली जामिया की छात्रा माहिम मुस्लिम लड़कियों की पढ़ाई पर कहती हैं कि जब मैं अपने दादा-नाना के यहां जाती हूं, तो वहां मैंने देखा है कि जब औरतों के हुकूक की बात आती हैं, तो वहां पर लिमिटेशन ज्यादा रख दी गई हैं.

समाज ने औरतों को सीमाओं ने बांधा

माहिम ने अपनी बड़ी बहन का उदाहरण देते हुए बोली, ‘‘उन्हें कहा गया कि तुम्हें जॉब की क्या जरुरत है, आगे चलकर तुम्हें घर देखना है, तो यहां पर हमें महसूस हुआ कि आप किसी खानदान से आते हो, किसी जगह भी रहते हो, मुआशरे में एक हिस्सा ऐसा है, जहां औरतों को लिमिटिड कर दिया जाता है.

माहिम आगे कहती हैं कि इस्लाम में महिलाओं को कई तरह के हुकूक दिए गए हैं, लेकिन हमारा समाज उसे अपने जीवन में लागू नहीं कर रहा है.

लड़कियों को हर तरह की आजादी होनी चाहिए

वहीं फारसी संकाय की छात्रा अलीशा कहती हैं कि लड़कियों को हर तरह की आजादी होनी चाहिए. मुझे पढ़ाई, हर जगह जाने की आजादी मिली है, किसी भी तरह की कोई रुकावट नहीं है. इसी तरह गांव-देहात की लड़कियों को आजादी मिलनी चाहिए. वहां पर जो जिम्मेदार होते हैं, वह ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं होते हैं। इसलिए लड़कियों को पढ़ने की आजादी नहीं मिल पाती है.

वहां की सरकारी स्कूल, पढ़ाई पर ध्यान नहीं देते हैं, ऐसे में आज के वक्त में लड़कियों का घर से निकलना जरूरी है, उनके पास हर तरह की तालीम होनी चाहिए. अलीशा आगे कहती हैं कि मौजूदा वक्त बहुत ही खराब चल रहा है, तो उसे अपने भविष्य को लेकर लड़कियों को आगे बढ़ना चाहिए,लोग कहते हैं कि लड़कियां बाहर जाएंगी, घूमेंगी, तो माहौल खराब होगा, तो ऐसा कुछ नहीं है ये खुद के ऊपर निर्भर करता है कि उसको कैसा माहौल चाहिए.

एक लड़की को पढ़ाने का मतलब कई पीढ़ी को पढ़ाना

मनोविज्ञान की छात्रा संधली कहती हैं कि समाज के अंदर पहले से बहुत बदलाव आया है. वह अपनी बुआ का उदाहरण देती हुई कहती हैं कि मेरी बुआ को 10वीं के बाद उनकी पढ़ाई रोक दी गई थी, उन्हें नहीं पढ़ाया गया था. उनकी भी बेटियों की शादी 18-20 वर्ष में कर दी गई. मैं भी शायद इसलिए पढ़ पाई कि मेरे पापा दिल्ली आ गए, तो उन्हें लगा कि बेटी को इतना बना दूं कि वह समाज का मुकाबला कर सकें।

लेकिन कहीं न कहीं समाज में ये ख्याल है कि लड़की को पढ़ा देंगे, तो दहेज देना पड़ेगा. मेरी जो सोच है कि सिर्फ इसलिए पढ़ाना है कि दहेज नहीं दे पाउंगा, दूल्हा अच्छा मिलेगा, ये सोच बुरी सोच है. लड़कियों को पढ़ाने से सिर्फ लड़की नहीं पढ़ा रहे हैं, बल्कि आप उसके आने वाले कई पीढ़ी को पढ़ा रहे हैं.

संधली आगे कहती हैं कि समाज को बदलना होगा. लड़कियां भी लड़कों के मुकाबले में खड़ा हो सकती हैं, टक्कर दे सकती हैं, क्योंकि यही महिला की ताकत है. हमें अपने देश को आगे बढ़ाना है, तो लड़के और लड़कियों को साथ लेकर चलना होगा.