चेन्नई के सैलून संचालक ने सरकारी स्कूल के बच्चों के लिए खोला दिल का दरवाज़ा

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 16-06-2025
Chennai salon owner opens her heart to government school children. pics Social media
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आवाज़ द वॉयस / नई दिल्ली/चेन्नई

"किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़े है."

यह शेर, जो मूलतः विरोध और विद्रोह का प्रतीक था, आज एक नए संदर्भ में हमें सोचने पर मजबूर करता है—यदि देश सबका है, तो सेवा का अवसर भी सबका है. सिर्फ बड़े संगठन या सामाजिक संस्थाओं से जुड़े लोगों को ही नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति को, जो दिल से दूसरों की मदद करना चाहता है. चेन्नई के के. थानिगैवेल इसका सजीव उदाहरण हैं, जो दिखा रहे हैं कि इंसान अपने छोटे से पेशे में रहकर भी बड़े बदलाव ला सकता है.


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थानिगैवेल चेन्नई के तीन इलाकों—बेसेंट नगर, अड्यार के शास्त्री नगर और कामराजर एवेन्यू—में ‘धनुष सैलून’ की तीन शाखाएं चलाते हैं. वे पिछले एक दशक से ग्रेटर चेन्नई कॉर्पोरेशन (GCC) के निगम स्कूलों के छात्रों को निःशुल्क हेयरकट और ग्रूमिंग सेवाएँ प्रदान कर रहे हैं. ना कोई कैमरा, ना कोई प्रचार—सिर्फ कैंची, आईना और एक सच्चा सेवा भाव.

चेन्नई हाई स्कूल, कामराजर एवेन्यू के छात्र जसवंत जैसे कई बच्चे, जो GCC स्कूल की वैन से उतरते हैं, थानिगैवेल के सैलून का रुख करते हैं. यहां न केवल उन्हें मुफ्त हेयरकट मिलता है, बल्कि आत्मसम्मान और आत्मविश्वास का एक अनमोल तोहफा भी.जसवंत कहते हैं, “मैं तीन साल से यहाँ आ रहा हूँ. यहाँ मज़ा आता है. सभी बहुत अच्छा व्यवहार करते हैं.”

निम्न आय वर्ग के परिवारों के लिए, बाल कटवाना भी एक खर्च होता है. लेकिन इन बच्चों के लिए यह सेवा गरिमा और आत्मविश्वास का स्रोत बन जाती है.थानिगैवेल कहते हैं, “मैंने यह पहल तब शुरू की, जब मैंने देखा कि ICSE स्कूलों के बच्चे भी बाल कटवाने की कीमत पर हिचकिचाते हैं. तो सोचिए, एक दिहाड़ी मजदूर या ऑटो चालक के बेटे के लिए यह कितना कठिन होगा.”
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उन्होंने यह सेवा 2015 में शुरू की. आज तीनों सैलून की दीवारों पर तमिल में लिखा एक छोटा नोट proudly यह ऐलान करता है—“हम गर्व से ग्रेटर चेन्नई निगम स्कूलों के छात्रों को निःशुल्क बाल कटवाने की सेवा प्रदान करते हैं.”

थानिगैवेल के ग्राहक महज़ बच्चे नहीं हैं—वे उन्हें शिक्षित भी करते हैं. जब बच्चे अपनी बारी का इंतज़ार करते हैं, तो वह उन्हें ‘The Hindu’ अखबार पढ़ने को कहते हैं. “मेरे पिता कहा करते थे कि यह अखबार अपनी भाषा के लिए जाना जाता है. मैं चाहता हूं कि बच्चे पढ़ें. सोचें और समझें.”

थानिगैवेल की पत्नी टी. विजयलक्ष्मी भी इस यात्रा में उनके साथ हैं. वह कॉलेज की लड़कियों को निःशुल्क हेयरकट प्रदान करती हैं जो अड्यार कैंसर संस्थान को बाल दान करना चाहती हैं.विजयलक्ष्मी बताती हैं,“अक्सर छात्राएं बाल दान करना चाहती हैं लेकिन उन्हें हेयरकट का खर्च उठाना मुश्किल होता है। इसलिए मैंने पिछले साल से यह सेवा शुरू की.” 

वे बच्चों को नोटबुक, स्टेशनरी और गर्मियों में पानी की सुविधा भी देती थीं. धीरे-धीरे यह दंपत्ति समझ गया कि उनकी असली सेवा उनके पेशे से ही जुड़ी है.

थानिगैवेल ने स्वयं पास के GCC स्कूलों से संपर्क किया और स्कूल प्राचार्यों को इस पहल की जानकारी दी. इससे यह सेवा बच्चों तक सीधे पहुंच सकी. अब हर महीने, स्कूल खुलने के समय प्रत्येक सैलून में 50 से 100 छात्र निःशुल्क हेयरकट के लिए आते हैं.

एक स्कूल के प्राचार्य कहते हैं, “यह एक आधुनिक सैलून है, इसलिए छात्र बहुत उत्साहित होकर आते हैं. इससे न केवल उनकी स्वच्छता सुधरी है बल्कि आत्म-विश्वास में भी बढ़ोतरी हुई है.”

थानिगैवेल बताते हैं, “स्कूल के दौरान हम बच्चों के बाल साधारण और साफ-सुथरे रखते हैं. लेकिन छुट्टियों में उन्हें अपनी पसंद की स्टाइल की छूट देते हैं.”

थानिगैवेल मायलापुर में जन्मे और पले-बढ़े. वह तीसरी पीढ़ी के हेयरड्रेसर हैं. बारहवीं तक सरकारी स्कूल में पढ़े. फिर बीए किया. पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते पढ़ाई छोड़नी पड़ी. 2000 में उन्होंने अपना पहला सैलून खोला और धैर्य से अपनी सेवाओं को बढ़ाया.

आज के कॉर्पोरेट सैलून की भीड़ में, उनके सैलून की गर्मजोशी और सेवा भावना ग्राहकों को उनसे जोड़े रखती है.विजयलक्ष्मी कहती हैं, “हम दो दशक से काम कर रहे हैं. बड़ी कॉर्पोरेट चेन के बीच टिके रहना आसान नहीं, लेकिन हमारे ग्राहक हमारी नीयत और सेवा को समझते हैं.”

थानिगैवेल मानते हैं कि बाल कटवाने से दुनिया नहीं बदल सकती, लेकिन एक बच्चे के लिए यह छोटे से बदलाव में भी आत्मसम्मान की भावना ला सकता है. खासकर जब वह पहली बार किसी ‘सैलून’ में बाल कटवाने आता है. वह अनुभव उसे खुद को काबिल समझने का एहसास देता है.

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 थानिगैवेल कहते हैं,“अगर और सैलून भी इसी तरह की पहल करें, तो कल्पना करें कि हम कितने और बच्चों की मदद कर सकते हैं. उनकी कैंची पहले से ही एक और मासूम सिर की ओर बढ़ रही है."

इस भागती दौड़ती दुनिया में, जहां ज़्यादातर लोग अपने लाभ की चिंता करते हैं, के. थानिगैवेल जैसे लोग हमें यह याद दिलाते हैं कि सेवा का कोई मोल नहीं होता. वह बिना शोर-शराबे के, अपने छोटे से पेशे के ज़रिए सैकड़ों छात्रों की ज़िंदगी में बड़ा बदलाव ला रहे हैं.

यह कहानी हमें सिखाती है कि देश को बेहतर बनाने की शुरुआत घर के दरवाज़े से ही होती है—एक छोटी सी कैंची, एक मुस्कान, और एक नेक इरादा ही काफी है.