अमृत अनुभव : बुजुर्ग युवा 76 वर्षीय रफीक जाफर कहतें हैं काम करना ही कामयाबी है

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 24-04-2023
अमृत अनुभव : बुजुर्ग युवा 76 वर्षीय रफीक जाफर कहतें हैं काम करना ही कामयाबी है
अमृत अनुभव : बुजुर्ग युवा 76 वर्षीय रफीक जाफर कहतें हैं काम करना ही कामयाबी है

 

शाहताज खान/ पुणे

सुबह नो बजे अपने घर तले गांव  दंभाडे से निकलते हैं. पैदल रेलवे स्टेशन पहुंच कर दस बजे की लोकल से पुणे रवाना होते हैं. ग्यारह बजे स्टेशन पर अपने एक बैग के साथ जिसमें कुछ किताबैं और बादाम काजू रखे होते हैं, रेल से उतरते हैं."डेक्कन मुस्लिम इंस्टीट्यूट"कैंप की लायब्रेरी के लिए स्टेशन से बस लेते हैं. बारह बजे तक वो अपनी पसंद की जगह पहुंच जाते हैं. पूरा दिन लाइब्रेरी की एक ख़ास कुर्सी पर बैठ कर अध्ययन करते हैं.

शाम पांच बजे बस से पुणे स्टेशन पहुंचते हैं और 6 बजकर दो मिनट की लोकल ट्रेन से तले गांव के लिए वापसी का सफ़र शुरू करते हैं.रात साढ़े सात बजे तक वो अपने घर पहुंच जाते हैं. ख़ास बात यह है कि वो इतवार को भी आराम नहीं करते.

तैयार हो कर सर पर कैप और हाथ में छढ़ी लेकर बेटी से मिलने जाते हैं. फिर गांव के थियेटर"शिवाजी टॉकीज" में ग्यारह या तीन बजे का शो देखते हैं. यह दिनचर्या है बुज़ुर्ग युवा 76वर्षीय रफीक जाफर की. वह लगातार चलते जा रहे हैं. उन्होंने अपने जीवन के कुछ अनुभव आवाज़ दी वाइस से साझा किए.

प्रशन: आप की नज़र में रिटायरमेंट का अर्थ क्या है? 

उत्तर: मैं आज तक यह नहीं समझ सका कि लोग आदमी को रिटायर क्यों कहते हैं. जबकि वो काम करने की स्थिति में होता है. मैं उन लोगों में से हूं जो मानते हैं कि जब तक आदमी सोच सकता है, चल सकता है, लिख सकता है तो वो रिटायर नहीं हो सकता. उसकी उम्र के कारण दुनिया उसे रिटायर समझती है तो समझने दीजिए. अपना काम जारी रखिए.

किसी भी इनाम, अवॉर्ड और टारगेट के बिना मैंने सिर्फ़ काम किया है. काम, काम और सिर्फ़ काम. मुझे अमजद हैदराबादी का एक शेर याद आ रहा है. कामयाबी कोई और चीज़ नहीं. काम करना ही कामयाबी है.

प्रशन: आय के स्त्रोत के लिए आप ने किस पेशे को अपनाया? 

उत्तर: मैं ने कलम को आय का स्त्रोत बनाया. मैं केवल उर्दू जानता था. जो भी काम मिला किया. हैदरबाद की सड़कों पर समाचार पत्र बेचे, पापड़ बैचे. पिता के अचानक हुए इंतकाल ने परिस्थितियां अचानक बदल दी थीं.

हालात ने सोचने का कोई अवसर नहीं दिया. मुझे हर हाल में पैसे कमाना थे. अख़बार के दफ़्तर में आते जाते मैं ने बहुत कुछ सीखा और फिर पत्रकारिता को ही अपने जीवन यापन का सहारा बनाया. काफ़ी समय तक समाचारपत्रों में काम किया लेकिन मन में कुछ रचनात्मक कार्य करने की प्रबल इच्छा ने वहां रुकने नहीं दिया. 

प्रशन: क्या आप की रचनात्मक कार्य करने की इच्छा पूर्ण हुई?

उत्तर: जी, पत्रकारिता ने मुझे दुनिया को समझने का अवसर दिया. मैं ने समाज के दर्द को महसूस किया. मैं ने जाना कि गम स्थायी है और खुशी अस्थायी. लोग इस बात को स्वीकार नहीं करते. आदमी ख़ुद को बहला कर धोखा देता है.

छोटी छोटी चीज़ों के पीछे भागता रहता है. बड़े बड़े ख़्वाब देखता है. मैंने गरीबी देखी थी इसलिए ऐसे ख़्वाब देखे ही नहीं. मैंने कभी सोचा ही नहीं कि मुझे क्या हासिल हो रहा है. बस चलता ही रहा.

प्रशन: 14 फरवरी 2023 को आप ने अपना 76वान जन्म दिन मनाया. आप इस छड़ी के सहारे किस सफ़र पर हैं? 

उत्तर: मेरी समस्या अलग है. मैं ने कोई नौकरी कभी नहीं की. इस लिए कोई मुझे रिटायर भी नहीं कर सका. मैं यह भी मानता हूं कि दिल, दिमाग़, मेरे अंदर की दुनिया और हमारी सोच की हदें जो हमारा साथ देती रही हैं वो अवश्य ही कमज़ोर होते होते एक दिन दम तोड़ देंगी. मेरी एक नज़्म है "जंग".   

मेरा वजूद है शाहिद 

पैदाइश से अब तक  

खुद से जंग  कर रहा हूं  

तो मैं ज़िंदा हूं  

मैं कुछ जीतना नहीं चाहता बस चलते रहना चाहता हूं. जिसके लिए मैं हर रोज़ खुद से जंग करता हूं. इसी सफ़र के कारण मैं आज लेखक हूं, शायर हूं, समीक्षक हूं और इस लाइब्रेरी में बैठ कर अकसर रिसर्च स्कॉलर्स का मार्गदर्शक भी बनता हूं. (मुस्कराते हुए) अब मेरे इस सफ़र में यह छड़ी मेरी साथी है. 

प्रशन: आप ने स्वयं को सक्रिय और व्यस्त रखा है. अगर कोई व्यक्ति रिटायर न होना चाहे तो क्या उसे काम करते रहने का अवसर मिलना चाहिए? 

उत्तर: जहां तक किसी नौकरी और कुर्सी का सवाल है उसे दूसरों के लिए खाली करना ज़रूरी है. ज़माना और दौर बदलता है. अनुभव महत्वपूर्ण है लेकिन समय के साथ चीजें बदल जाती हैं. काम करने के तरीके बदल जाते हैं. अब मुझे ही ले लीजिए,

मैं कंप्यूटर चलाना नहीं जानता. ऐसे समय में अनुभव फैल हो जाता है. तब ज्ञान की आवश्यकता होती है. नौजवानों को रोजगार के अवसर मिलना चाहिए और मैने देखा है कि अनुभवी अधिकारी नई नस्ल पर रोब झाड़ते हैं जो पूरी तरह गलत है. युवाओं को भी सीखने दीजिए, युवाओं के पास भी अपना अनुभव होता है. देश की उन्नति के लिए नई पीढ़ी की सोच और जोश अति आवश्यक हैं. 

प्रशन: क्या 60 वर्ष से अधिक आयु के लोगों को धारे से अलग कर के उन्हें घर बैठा देना ठीक है? 

उत्तर : वृद्ध अच्छी तरह सोच लें कि हमें जमाने का साथ देना है. अभी वो जिन्दा हैं. अतीत की बातें कर के लोगों को बोर न करें.उन्हें जमाने को समझना चाहिए. आजकल के बच्चे सहायता के लिए तैयार हैं. खाली न बैठें बल्कि कुछ नया सीखने में व्यस्त रहें. मुझे मेरे पोते ने कंप्यूटर और सोशल मीडिया से परिचित कराया.

प्रशन: अनुभव, टेक्नोलॉजी और युवा, तीनों मिल कर काम करें तो देश की उन्नति में रफ्तार आ सकती है. आप क्या सोचते हैं? 

उत्तर: देश है तो हम हैं. हम बैठ कर केवल शिकायत करते रहते हैं. मैं पूछता हूं कि देश की उन्नति और प्रगति में आप का क्या योगदान है? मैं मानता हूं कि हम जो कुछ भी कर सकते हैं वो हमें करते रहना चाहिए. खाली तो कभी बैठना ही नहीं चाहिए.

प्रशन: अगर 50 वर्ष की आयु को एक प्वाइंट मान लें तो पचास वर्ष के पहले और बाद की आयु में क्या अंतर पाते हैं? 

उत्तर: मैं एक बड़े सेना अधिकारी का पोता, एक फौजी का बेटा हूं. परन्तु अचानक आए जीवन के परिवर्तन ने समस्याओं से दो दो हाथ करने के लिए मजबूर कर दिया. ज़िंदगी ने ख़ूब इम्तहान लिए. वालिद के इंतकाल के बाद मुझे काम करना था.

सुबह अख़बार बेचता, फिर स्कूल जाता और स्कूल से वापस आ कर पापड़ बेचने निकल जाता था. छोटी सी उम्र के इन परिवर्तनों से मुझे प्रेरणा मिलीऔर मैं ने सीखा कि काम करना ही ज़िंदगी है.  

प्रशन: कोई टार्गेट जो आप ने सुनिश्चित किया हो? 

उत्तर: हिम्मत थी न समय. ज़िंदगी की जद्दोजहद ने कोई टार्गेट तय करने का अवसर ही नहीं दिया. जब मैं दोपहर का खाना खा रहा हूं और अगले वक्त खाना मिलेगा या नहीं तो फिर एक ही टार्गेट हो सकता था कि खाने का प्रबंध करना है. कल काम करना मजबूरी और ज़रूरत थी और आज आदत बन गई है. 

प्रशन: आज कल आप की व्यस्तता क्या है?

उत्तर: मेरी आदत है रोज़ पढ़ना, रोज़ लिखना. क्या पढ़ना है और क्या लिखना है मैं तय करता हूं. मैं शायरी भी करता हूं, कहानियां भी लिखता हूं. कोविड के दौरान मैंने 300 नज़्में, कुछ ग़ज़लें और कुछ अफसाने लिखे.

नज़्मों की एक किताब "रफीक़ जाफर की नज़मिया शायरी" सेंट्रल यूनिवर्सिटी हैदराबाद के सैय्यद फजलुल्लाह मुकर्रम ने तरतीब दी है जिसमें उन्होंने 50 पन्नों का मुकद्दमा लिखा है और इस किताब में मेरी 160 नज़्मों को शमिल किया है. यह जल्द ही मार्किट में आएगी. एक व्हाट्सएप समाचार पत्र है"घूमता आईना" जिसे गुलबर्गा से चांद अकबर निकालते हैं, मैं उसका संरक्षक हूं. जिसमें संपादकीय लिखता हूं. मुशायरे पढ़ता हूं. लेकिन किसी को बोर नहीं करता हूं. काम कर के मुझे खुशी मिलती है. 

प्रशन: कोई पैगाम जो आप आवाज़ दी वॉयस के पाठकों को देना चाहते हों.  

उत्तर: रिटायर्ड बूढ़ों से कहना चाहता हूं कि हुक्म चलाना छोड़ दें. हम जैसे कुछ बूढ़ों को जिद्द होती है कि हमने पूरा जीवन बच्चों को पालने और परवरिश पर खर्च किया है. अब हम उनकी जिम्मेदारी हैं.

वह कुछ करना नहीं चाहते, खाली बैठ कर हुकुम चलाना चाहते हैं. मेरा उनसे अनुरोध है कि कुछ न कुछ करते रहें, स्वयं को सक्रिय और व्यस्त रखें.नौजवानों से कहना चाहता हूं कि काम छोटा बड़ा नहीं होता. मेहनत करते रहें. क्योंकि  

घर बैठ के हमको तो मुकद्दर नहीं मिलता  

हीरा तो बड़ी चीज़ है पत्थर नहीं मिलता