फादर्स डे स्पेशल: वो पिता जो बेटे का सपना बन गया

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari | Date 15-06-2025
Father's Day: Father's hard work is behind the success of children, read inspirational stories
Father's Day: Father's hard work is behind the success of children, read inspirational stories

 

ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली  

फादर्स डे हर साल जून महीने के तीसरे रविवार को मनाया जाता है, और इस साल ये खास दिन 15जून को है. यह दिन हमारे जीवन के असली हीरो, हमारे पापा को सम्मान देने और उनके प्रति आभार व्यक्त करने का है. पिता न केवल हमारी खुशियों के साथी होते हैं, बल्कि वो हमारे सपनों को पूरा करने के लिए अनगिनत बलिदान देते हैं.

यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि कैसे एक पिता अपनी संतान की सफलता के लिए बिना किसी शर्त के संघर्ष करता है, उसे संभालता है, और हर कदम पर उसका मार्गदर्शन करता है. आइए, इस खास मौके पर जानें एक ऐसे पिता की कहानी, जिसने अपनी संतान को ऊंचाइयों तक पहुंचाने के लिए अपनी पूरी दुनिया को समर्पित कर दिया.

साहस के साथ संघर्षों का सामना

यह कहानी एक पिता की अडिग मेहनत और अपने बेटे के भविष्य के प्रति उसकी अटूट प्रतिबद्धता की है. उत्तर प्रदेश के संभल जिले के रुकउद्दीन सराय की संकीर्ण गलियों में रहने वाला हलीम बनाने वाला एक पिता, जो दिन-रात मेहनत कर अपने परिवार को पालने की कोशिश करता था, अपने बेटे मोहम्मद कासिम को उस मुकाम तक पहुँचाने में सफल हुआ, जहां कासिम आज न्याय की कुर्सी पर बैठने वाला है.

कासिम के लिए यह सफलता किसी चमत्कार से कम नहीं है, लेकिन यह सफलता उस पिता के संघर्ष और उसकी निस्वार्थ मेहनत का परिणाम है जिसने अपने बेटे को हमेशा से जीवन में कुछ बड़ा करने के लिए प्रेरित किया. जब कासिम छोटे थे, तो उनके पिता रोज़ सुबह 3बजे से हलीम बनाना शुरू कर देते थे, और पूरा परिवार उनके साथ इस काम में जुट जाता था. इस कठिन जीवन के बावजूद, कासिम का सपना कभी नहीं टूटा.

कासिम के पिता ने हमेशा उन्हें यह समझाया कि शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण साधन है, जो किसी भी परिस्थिति में उन्हें सफलता दिला सकती है. जब कासिम ने 10वीं कक्षा में असफलता का सामना किया, तो पिता ने उसे उम्मीद नहीं खोने दी और उसे आगे बढ़ने की प्रेरणा दी. कासिम ने फिर सरकारी स्कूल में अपनी पढ़ाई जारी रखी, और जब वह आगे की शिक्षा के लिए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय पहुंचे, तो पिता ने अपनी सारी मुश्किलों को पीछे छोड़ते हुए कासिम का साथ दिया.

दिल्ली में कासिम के पास रहने की जगह नहीं थी, तो उन्होंने कब्रिस्तान के पास झोपड़ी बनाकर जीवन की कठिनाइयों का सामना किया. लेकिन उनके पिता का विश्वास और उनकी कठिनाईयों के बावजूद उनके सपने को कभी भी कम नहीं होने दिया. 2019में कासिम ने एलएलएम में अखिल भारतीय रैंक 1हासिल की, और फिर 2021में यूजीसी नेट की परीक्षा पास की.

कासिम के पिता का संघर्ष इस बात का प्रतीक था कि मेहनत और कड़ी मेहनत से ही किसी के सपने पूरे हो सकते हैं. उन्होंने कभी भी अपने बेटे से यह नहीं कहा कि तुम्हें अपने पिता के काम में हाथ बटाना होगा, लेकिन कासिम ने खुद को उस जिम्मेदारी में झोंक दिया. कासिम की सफलता केवल उसकी मेहनत का परिणाम नहीं थी, बल्कि उसके पिता के संघर्ष का भी नतीजा थी.

कासिम की सफलता इस बात का प्रमाण है कि जब एक पिता अपने बेटे की सफलता के लिए कड़ी मेहनत करता है, तो उसके सपने सच होते हैं. इस यात्रा में कासिम के पिता की निस्वार्थ भावना, संघर्ष, और समर्पण ने उसे इस मुकाम तक पहुँचाया. आज जब कासिम जज के पद पर बैठेंगे, तो यह उनके पिता की मेहनत और कड़ी मेहनत का ही फल होगा.

यह कहानी सिर्फ कासिम के संघर्ष की नहीं है, बल्कि उन पिता की है, जिन्होंने अपने बेटे की सफलता के लिए हर मुश्किल का सामना किया. यह एक पिता के प्यार और समर्पण का प्रतीक है, जिसने अपने बेटे के लिए अपने सारे सपनों को पीछे छोड़ दिया, ताकि उसका बेटा अपने सपनों को साकार कर सके.

कर्नल सोफिया कुरैशी के पिता का सीना गर्व से चौड़ा: एक पिता की प्रेरणा

आज जब हम फादर्स डे मना रहे हैं, कर्नल सोफिया कुरैशी के पिता ताज मोहम्मद कुरैशी का नाम और उनकी प्रेरणादायक यात्रा हमारे सामने एक उदाहरण के रूप में उभर कर आता है. यह कहानी एक पिता के संघर्ष, समर्पण और अपने देश के प्रति प्यार की है, जिसने अपनी बेटी को न केवल देश की सेवा की प्रेरणा दी, बल्कि उसे एक मजबूत, स्वतंत्र और निडर महिला अफसर बनने के लिए भी प्रोत्साहित किया.
 
सोफिया के पिता ताज मोहम्मद कुरैशी, जो खुद भी एक आर्मी ऑफिसर रहे हैं, कहते हैं, "हमें बहुत गर्व है. हमारी बेटी ने देश के लिए बहुत बड़ा काम किया है. पाकिस्तान को नष्ट कर देना चाहिए." उनका यह बयान इस बात का प्रतीक है कि एक पिता अपने बच्चों के लिए क्या कुछ नहीं कर सकता. उनके लिए देश की सेवा और सुरक्षा सर्वोपरि रही है, और यही आदत उन्होंने अपनी बेटी को भी दी.
 
ताज मोहम्मद कुरैशी की अपने देश के प्रति निष्ठा और सेवा का सफर कोई नया नहीं है. उनके पिता और दादा भी भारतीय सेना में थे. परिवार की यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है, और अब उनकी बेटी कर्नल सोफिया कुरैशी ने भी इस परंपरा को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया.
 
कर्नल सोफिया ने ऑपरेशन सिंधूर के तहत पाकिस्तान में छिपे आतंकवादियों के खिलाफ कड़ा कदम उठाया, जिसमें 90 से अधिक आतंकवादी मारे गए. इस ऑपरेशन के बाद, सोफिया ने मीडिया को महत्वपूर्ण जानकारी दी और भारतीय सेना की ताकत को पूरी दुनिया के सामने रखा. यही नहीं, वह भारतीय सेना की पहली मुस्लिम महिला अफसर हैं जिन्होंने इस तरह के स्पेशल ऑपरेशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
 
सोफिया के पिता ताज मोहम्मद कुरैशी बताते हैं, "मेरे दादा, मेरे पिता और मैं, तीनों सेना में थे. अब हमारी बेटी भी सेना में है. हमारी यह परंपरा जारी है और यह हम सबके लिए फख्र की बात है."* उनका गर्व और उनकी खुशी साफ तौर पर झलकती है कि उनकी बेटी ने न केवल उनका नाम रोशन किया, बल्कि पूरे देश का भी गर्व बढ़ाया.
 
उनका यह भी कहना है, "मन करता है कि अगर मौका मिले तो पाकिस्तान को जाकर खत्म कर दूं. पाकिस्तान दुनिया में रहने लायक देश नहीं है."* इस बयान से यह साफ होता है कि ताज मोहम्मद कुरैशी ने देश के प्रति अपने प्यार और समर्पण को सिर्फ अपनी बेटी में ही नहीं, बल्कि पूरी अपनी पीढ़ी में भी गहरे से बोला और महसूस किया है.
 
फादर्स डे पर, हम उन सभी संघर्षशील और प्रेरणादायक पिताओं को सलाम करते हैं जिन्होंने अपने बच्चों को देश के लिए योगदान देने की प्रेरणा दी और उन्हें एक मजबूत रास्ता दिखाया. कर्नल सोफिया कुरैशी की सफलता उनके पिता की कठिन मेहनत, बलिदान और देश के प्रति निष्ठा का फल है. उनका सफर सिर्फ एक पिता की मेहनत और संकल्प का नहीं, बल्कि एक बेटी की शक्ति और समर्पण का भी है.
 
आज जब हम सोफिया के संघर्ष और उपलब्धियों को सलाम करते हैं, तो हम ताज मोहम्मद कुरैशी की भूमिका को भी नमन करते हैं. उनके मार्गदर्शन और प्रेरणा ने ही उनकी बेटी को वो ताकत दी, जो उसने भारतीय सेना के सबसे कठिन ऑपरेशनों में दिखाया.
 
 
पिता और बेटे के सपने हुए एक 

शुभांशु शुक्ला को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) के मिशन के लिए प्रमुख गगनयात्री के रूप में चयनित किया गया है, और यह सफलता न केवल शुभांशु की, बल्कि उनके पिता की भी कड़ी मेहनत और सकारात्मक दृष्टिकोण का परिणाम है. शंभू दयाल शुक्ला ने कभी भी अपने बेटे के मिशन को लेकर घबराहट नहीं दिखाई. वह हमेशा अपने बेटे के संघर्ष और उसकी सफलता की कामना करते रहे. उनका यह विश्वास कि "सब कुछ भगवान की इच्छा है और सब कुछ अच्छे के लिए होता है," उनकी सच्ची समर्थकता और सकारात्मक सोच को दर्शाता है.
 
शंभू दयाल शुक्ला, जो खुद एक सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारी हैं, ने शुरू में अपने बेटे को सशस्त्र बलों में जाने के लिए प्रेरित नहीं किया था. उनका सपना था कि शुभांशु सिविल सेवा में जाए. लेकिन जब उन्हें यह खबर मिली कि शुभांशु का चयन आईएसएस मिशन के लिए हो चुका है, तो उन्होंने इसका विरोध नहीं किया, बल्कि पूरे दिल से अपने बेटे की सफलता की कामना की. उनका कहना था, "हम कभी नकारात्मक नहीं सोचते; यह सब भगवान की इच्छा है और सब कुछ अच्छे के लिए होता है."
 
जब प्रधानमंत्री ने शुभांशु को मिशन के लिए बैज दिया, तो वह पल उनके लिए एक अविस्मरणीय क्षण बन गया. वह यह मानते हैं कि यह क्षण उनके जीवन का सबसे खास था, और इसे वह कभी नहीं भूल पाएंगे. यह बात साफ दिखाती है कि शंभू दयाल शुक्ला ने न केवल अपने बेटे के सपनों का समर्थन किया, बल्कि उसने उसे आत्मविश्वास और संघर्ष की प्रेरणा भी दी.
 
फादर्स डे पर, हम शुभांशु शुक्ला के पिता की भूमिका को आदर और सम्मान प्रदान करते हैं. एक पिता का प्यार, समर्थन और मार्गदर्शन ही वह ताकत है जो बच्चों को अपने सपनों को साकार करने के लिए प्रेरित करती है. शंभू दयाल शुक्ला का यह संदेश कि "हम कभी नकारात्मक नहीं सोचते" यह साबित करता है कि सही मार्गदर्शन और विश्वास के साथ, कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं होता.