Maulana who came out of Darul Uloom Deoband adopted a unique path, resolved to create a positive image of Islam
दौलत रहमान / गुवाहाटी
उत्तर प्रदेश के दारुल उलूम देवबंद से पढ़ाई पूरी करने वाले अधिकतर छात्र पारंपरिक रूप से मस्जिदों, मदरसों या धार्मिक संस्थानों से जुड़कर इस्लामी शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार करते हैं. लेकिन असम के मौलाना नूरुल अमीन कासिमी ने इस रिवायत से हटकर एक नई और अनोखी राह चुनी है. उनका उद्देश्य है – इस्लाम के बारे में फैली गलतफहमियों को दूर करना और मुस्लिम समुदाय की सामाजिक छवि को सकारात्मक रूप से प्रस्तुत करना.
मौलाना कासिमी का सफर केवल धार्मिक शिक्षा तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उन्होंने आधुनिक शिक्षा को भी उतनी ही अहमियत दी. उनका मानना है कि मुसलमानों को इस्लामी ज्ञान के साथ-साथ आधुनिक विज्ञान, तकनीक और समाजशास्त्र की शिक्षा लेना भी जरूरी है ताकि वे एक बेहतर समाज की रचना में भागीदार बन सकें.
जरूरतमंदों की मदद करते हुए मौलाना कासिमी
बचपन से लेकर उच्च शिक्षा तक का सफर
मौलाना कासिमी की प्रारंभिक शिक्षा सोतिया हायर सेकेंडरी स्कूल (जिला सोनितपुर, असम) में हुई. इसके बाद उन्होंने खुटाकटिया दिनी आलिया मदरसा और होजाई जलालिया मदरसा में इस्लामी शिक्षा हासिल की। इसी दौरान उन्होंने कक्षा 10 की परीक्षा भी पास की. फिर उन्होंने दारुल उलूम देवबंद से इस्लामी शिक्षा की अंतिम पढ़ाई पूरी की, जो देश का एक प्रमुख और प्रतिष्ठित इस्लामिक संस्थान है.
शिक्षा का सफर यहीं नहीं रुका. देवबंद से लौटने के बाद उन्होंने मरकजुल म'आरिफ (होजाई) में अध्यापन कार्य शुरू किया और साथ ही हायर सेकेंडरी (कक्षा 12) की परीक्षा पास की. बाद में उन्होंने रुफी कॉलेज से स्नातक और गौहाटी विश्वविद्यालय से परास्नातक डिग्री प्राप्त की। मौजूदा समय में वे गौहाटी विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रहे हैं.
मौलाना नूरुल अमीन कासिमी का मानना है कि इस्लाम एक शांति, सहिष्णुता और शिक्षा का धर्म है, लेकिन कई बार कुछ लोग अपनी अज्ञानता से इसकी गलत व्याख्या करते हैं, जिससे समाज में भ्रम की स्थिति बनती है.
असमिया भाषा में कुरान का ऑडियो वर्जन जारी करते हुए
मौलाना नूरुल अमीन कासिमी कहते हैं...'हम असमी मुसलमान हैं और हम अपनी संस्कृति के साथ इस्लाम को समझते हैं. अगर कुरान अरबी में है, तो हमारी जिम्मेदारी है कि हम उसे अपनी भाषा में समझाएं ताकि समाज इसकी सच्चाई को जान सके'
इस विचारधारा को जमीन पर उतारते हुए मौलाना कासिमी ने असमिया भाषा में कुरान शरीफ का अनुवाद और व्याख्या प्रकाशित की है. इसके साथ ही उन्होंने कुरान का ऑडियो वर्जन भी जारी किया है, ताकि वे लोग जो पढ़ने में असमर्थ हैं या समय के अभाव में किताबें नहीं पढ़ पाते, वे इसे सुनकर लाभान्वित हो सकें.
तकनीक और सामाजिक मंचों का सहारा
मौलाना कासिमी आधुनिक तकनीक और सोशल मीडिया के माध्यम से इस्लाम के सच्चे संदेश को जन-जन तक पहुंचा रहे हैं. उनके वीडियो यूट्यूब, फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म पर खूब वायरल हो रहे हैं, जिसमें वे शिक्षा की अहमियत, इस्लामी मूल्यों और कुरान की व्याख्या सरल असमिया भाषा में करते हैं. वे ईदगाहों, मस्जिदों, मदरसों और सार्वजनिक कार्यक्रमों में लगातार भाषण देते हैं और मुसलमानों को न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक जिम्मेदारियों के लिए भी जागरूक करते हैं.
तेजपुर (मध्य असम) में उन्होंने इस्लामिक रिसर्च एंड स्टडी सेंटर की स्थापना की है. यह संस्था युवा इस्लामिक विद्वानों को जोड़कर एक ऐसे मंच की तरह कार्य कर रही है जहां से समाज में सकारात्मक सोच और शिक्षा को बढ़ावा दिया जा रहा है.
असम में एक छात्रा को सम्मानित करते हुए
शिक्षा और khutbah पर विचार
वे मानते हैं कि शुक्रवार की नमाज में पढ़ी जाने वाली ख़ुत्बा (उपदेश) अगर केवल अरबी में दी जाए, तो आम लोगों को उसका मर्म समझ नहीं आता. वे चाहते हैं कि khutbah का सार स्थानीय भाषा में समझाया जाए ताकि इस्लाम के संदेश, जैसे शांति, भाईचारा और सामाजिक उत्तरदायित्व, जनमानस तक स्पष्ट रूप से पहुंचे.
मौलाना कासिमी इस बात को लेकर विशेष रूप से चिंतित हैं कि मुस्लिम समाज आज भी शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ा हुआ है. उनके अनुसार, “मुस्लिम समाज में मौलानाओं और उलेमाओं की बात को महत्व दिया जाता है, इसलिए अगर ये धार्मिक नेता शिक्षा की आवश्यकता पर बल दें, तो समाज में सकारात्मक बदलाव आ सकता है.
उनका कहना है कि केवल 4% मुस्लिम बच्चे ही मदरसों में पढ़ते हैं. 'इन 4% बच्चों को भविष्य में धार्मिक नेतृत्व संभालना है, लेकिन बाकी 96% को आधुनिक शिक्षा से लैस कर समाज के लिए उपयोगी बनाना जरूरी है.'
मौलाना नूरुल अमीन कासिमी एक ऐसे धार्मिक नेता हैं जिन्होंने केवल उपदेशों तक खुद को सीमित नहीं किया, बल्कि जमीनी हकीकत को समझते हुए समाज में बदलाव लाने की ठानी है. वे इस्लाम के संदेश को स्थानीय भाषा में लोगों तक पहुंचाकर, आधुनिक शिक्षा को बढ़ावा देकर, और तकनीक का उपयोग करके एक नई दिशा में काम कर रहे हैं. उनके प्रयास न केवल असम में बल्कि पूरे देश में एक प्रेरणा का स्रोत बन रहे हैं'