Leh violence: Demand for judicial inquiry intensifies, 26 detained people released
आवाज द वॉयस/नई दिल्ली
लेह में हाल ही में हुई हिंसा की न्यायिक जांच की मांग बृहस्पतिवार को तेज हो गई। दो शक्तिशाली बौद्ध धार्मिक संगठनों और कारगिल बार एसोसिएशन ने हिंसा की न्यायिक जांच पर जोर दिया.
लेह में बृहस्पतिवार को आम जनजीवन पटरी पर लौटता दिखा, जब अधिकारियों ने एक हफ्ते में पहली बार कर्फ्यू में पूरे दिन के लिए ढील दी और हिरासत में लिये गए 26 लोगों को रिहा कर दिया। लेह में हिंसा में कथित संलिप्तता को लेकर 50 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया गया था।
लद्दाख बौद्ध संघ (एलबीए) और अखिल लद्दाख गोंपा संघ (एएलजीए) ने लेह में एक संयुक्त प्रार्थना सभा आयोजित कर 24 सितंबर को पुलिस की गोलीबारी में मारे गए चार युवकों को श्रद्धांजलि दी। उन्होंने दो अक्टूबर को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती पर उन्हें भी श्रद्धांजलि अर्पित की।
एलबीए और एएलजीए ने एक संयुक्त बयान में बताया कि प्रार्थना सभा के बाद दोनों संगठन के सदस्यों ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें प्रदर्शनकारियों पर पुलिस और अर्धसैनिक बलों की ओर से कथित तौर पर अत्यधिक बल प्रयोग और अंधाधुंध गोलीबारी की निष्पक्ष न्यायिक जांच, मारे गए तथा गंभीर रूप से घायल लोगों के आश्रितों के लिए पर्याप्त मुआवजा और कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की तत्काल रिहाई की मांग की गई है।
लद्दाख को राज्य का दर्जा देने और छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर केंद्र के साथ बातचीत को आगे बढ़ाने के लिए लेह एपेक्स बॉडी (एलएबी) की ओर से पिछले बुधवार को आहूत बंद के दौरान लेह में प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच हिंसक झड़प हो गई, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई और 90 घायल हो गए।
जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक को अपने भाषणों के जरिये लेह में हिंसा भड़काने के आरोप में 26 सितंबर को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत हिरासत में लिया गया था। उन्हें राजस्थान की जोधपुर जेल में रखा गया है।
बयान में एलबीए और एएलजीए ने हिंसा के बाद पुलिस की ओर से “बेबुनियाद आधार” पर हिरासत में लिये गए अन्य सभी लोगों की तत्काल रिहाई और क्षेत्र में सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए स्थानीय युवकों के खिलाफ “भेदभावपूर्ण कार्रवाई तथा उनका उत्पीड़न” रोकने की भी मांग की।