संत-सूफियों की रचनाओं का अन्य भाषाओं में अनुवाद क्यों जरूरी है ?

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 30-09-2025
Why is it important to translate the works of saints and Sufis into other languages?
Why is it important to translate the works of saints and Sufis into other languages?

 


मुहिब खान

विश्व अनुवाद दिवस के अवसर पर, युवा कवि हाशिम रज़ा जलालपुरी, जिन्होंने मीराबाई और कबीर के छंदों को उर्दू शायरी में रूपांतरित किया है, ने कहा कि हमारा देश, हिंदुस्तान, संतों और सूफियों की भूमि है. इस मिट्टी में अनगिनत संतों, सूफियों और महान आत्माओं ने जन्म लिया है, जिन्होंने अपनी शिक्षाओं के प्रकाश के माध्यम से लोगों के दिलों की देहलीज को प्रेम और मानवता के दीपों से आलोकित किया.
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एक संत या सूफी किसी एक धर्म, संप्रदाय या समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं करते; बल्कि वे प्रेम और मानवता के मशालची होते हैं, और उनका जीवन धार्मिक विवादों या जाति-आधारित विभाजनों से अछूता रहता है. इसलिए, संतों और सूफियों की रचनाओं का अन्य भाषाओं में निश्चित रूप से अनुवाद होना चाहिए ताकि उनका संदेश भाषाई सीमाओं को पार करते हुए पाठकों तक पहुँचता रहे और पूरे विश्व में प्रेम और मानवता की भावना का प्रसार हो सके.
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हाशिम रज़ा जलालपुरी अब तक दो पुस्तकें – 'मीराबाई उर्दू शायरी में' और 'कबीर उर्दू शायरी में' प्रकाशित कर चुके हैं और वे कई अन्य साहित्यिक अनुवादों पर काम कर रहे हैं. 'मीराबाई उर्दू शायरी में' मीराबाई के सभी छंदों का उर्दू शायरी में अनुवाद है.

इस काम को साहित्यिक, सांस्कृतिक और सामाजिक हलकों में व्यापक पहचान मिली है और अब इसे डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, अयोध्या, उत्तर प्रदेश के एम.ए. (उर्दू) प्रथम वर्ष के पाठ्यक्रम में एक संदर्भ पुस्तक के रूप में शामिल किया गया है.

'कबीर उर्दू शायरी में' में संत कबीर के छंदों का उर्दू शायरी में अनुवाद शामिल है. इस पुस्तक के लिए, हाशिम रज़ा जलालपुरी को मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी, संस्कृति परिषद् और संस्कृति विभाग, मध्य प्रदेश सरकार द्वारा शादान इंदौरी अखिल भारतीय पुरस्कार 2023 से सम्मानित किया गया था.

हाशिम रज़ा जलालपुरी ने कहा कि कबीर भक्ति आंदोलन की समग्र संस्कृति के ध्वजवाहक हैं, जिनके लिए राम और रहीम एक हैं. कबीर की रचनाएँ गंगा और यमुना के संगम के समान हैं, जो दो धाराओं को खूबसूरती से एकजुट करती हैं.

उनके दोहे और छंद भक्ति और तसव्वुफ़ (रहस्यवाद) दोनों को दर्शाते हैं.कबीर के लिए, मनुष्यों के बीच सभी भेद अर्थहीन हैं—कोई ऊँचा या नीचा नहीं; सभी एक ही ईश्वर की संतान हैं. भारत के इतिहास में, कबीर उन लोगों में से एक हैं जिन्होंने मानवता को एकजुट करने और उनमें प्रेम व सद्भाव के बीज बोने का प्रयास किया.

नफ़रत की दीवारें केवल लोगों के बीच विभाजन और संघर्ष को बढ़ाती हैं; इसलिए, कबीर ने नफ़रत की हर दीवार को तोड़ने और इसके बजाय प्रेम की इमारत खड़ी करने की मांग की, और इसमें वे सफल रहे.
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'मीराबाई उर्दू शायरी में' और 'कबीर उर्दू शायरी में' के अलावा, हाशिम रज़ा जलालपुरी कई अन्य भारतीय संतों और सूफियों की रचनाओं को उर्दू शायरी में रूपांतरित करने में लगे हुए हैं. ये कृतियाँ जल्द ही प्रकाशित होंगी और समाज में भाईचारे और प्रेम को पोषित करने में मदद करेंगी.