अब्दुल वसीम अंसारी / राजगढ़
हमारे देश की धरा ने कई वीरों को जन्म दिया है, जिन्होंने अपने देश की आजादी के लिए अपने तन, मन, धन से कुर्बानी देते हुए अपना अहम योगदान दिया है. ऐसे ही एक फ्रीडम फाइटर राजगढ़ जिले की धरती पर भी हुए हैं, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष करते हुए अपना एक अलग मुकाम बनाया है. राजगढ़ जिला मुख्यालय में स्थित अंग्रेजों के जमाने की जेल, जिसमें उन्होंने आजादी की लड़ाई के दौरान यातनाएं झेलीं, उसी जेल की शिलालेख पर सैय्यद हामिद अली का नाम आज भी अमर है. हालांकि उनकी मजार को जीर्णोधार की आज भी दरकार है.
फ्रीडम फाइटर सैय्यद हामिद अली के पोते एडवोकेट शकेब अली से मिली जानकारी के मुताबिक, भारतीय स्वतंत्रता सैनानियों में से एक तफजुल हुसैन, जो उत्तरप्रदेश में अवध दरबार के प्रमुख सरदार थे, तथा प्रान्तीय ईस्ट इण्डिया कंपनी के प्रमुख थे, सन 1857 की क्रांति के समय आपने अवध के उच्च कोटि के नवाबों एवं हिन्दू-मुस्लिम राजाओं एवं जागीरदारों को संगठित करते हुए फौजी धावे एवं आक्रमण करते रहते थे.
उन्होंने फैजाबाद, लखनऊ, आजमगढ़, गौरखपुर आदि क्षेत्रों से विदेशी शासन को हटा दिया था. तफजुल हुसैन का अंग्रेजों से सबसे बड़ा युद्ध गोरखपुर जिले के कुसमी जंगल में हुआ था, जहां उनकी गोलियों ने प्रमुख अंग्रेज अधिकारियों का सीना छलनी कर दिया था.
सन 1857 की क्रांति दब जाने के बाद उन्हें फांसी की सजा हुई और उनका परिवार मध्यप्रदेश के भोपाल आ गया, लेकिन अंग्रेज उन्हें यहां भी खोजने लगे. तब नरसिंहगढ़ राज्य के राजकुमार चैन सिंह को अंग्रेजों ने शहीद कर दिया था. इसी शत्रुता के चलते नरसिंहगढ़ राज्य में इनके परिवार को महाराजा महताब सिंह एवं प्रताप सिंह ने शरण दी थी.
इसी परिवार में 1 नवंबर, 1907 को जन्मे तफजुल हुसैन के पुत्र सैयद हामिद अली ने भी स्वतंत्रता संग्राम से प्रेरित होकर अल्प आयु मे ही अपना घर छोड़ दिया और वे स्वतंत्रा संघर्ष में शामिल हो गए थे. उनका पूरा परिवार सुठालिया और वे दिल्ली पहुंच गए.
सन 1930 तक उन्होंने दिल्ली कांग्रेस में स्वतंत्रता आंदोलन किए और वे फिर राजगढ़ आ गए. यहां अंग्रेजों द्वारा भारी लगान वसूली की जा रही थी, जिसके विरोध में उन्होंने 40 हजार किसानों को अपने साथ लेकर आंदोलन किया, जिसके बदले अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें राजगढ़ जेल में तीन वर्षो तक का कारावास दिया, लेकिन उसके बाद भी उन्होंने अपना आंदोलन जारी रखा और किसानो की लगान माफी कराई.
उसी दौरान ब्यावरा में अंग्रेजों द्वारा की गई गौहत्या के विरोध में उन्होंने फिर से आंदोलन शुरू किया. तब उन्हें जिला बदर किया गया.
फिर उन्होंने महाराष्ट्र के अमरावती, मुंबई, राजस्थान के अजमेर और कोटा सहित अन्य स्थानों पर रहकर आंदोलन वा सत्याग्रह में हिस्सा लिया और डॉ पट्टाभि सीतारमैय्या और आचार्य नरेंद्र देव के साथ मिलकर कार्य किए. बुंदेलखंड व बघेलखंड में देशी राज्य लोक परिषद का गठन संबंधी कार्य किए.
इसी के परिणाम स्वरूप सैय्यद हामिद अली हर राज्य में जनता के संगठन और आंदोलन के सूत्रपाल हो गए. मध्य भारत के निर्माण में इन्होंने सक्रिय सहयोग प्रदान किया. इसके पश्चात वे देशी राज्य लोक परिषद के प्रधानमंत्री नियुक्त हुए एवं दतिया, राजगढ़, चरखारी आदि अनेक राज्यों में सीधा अंग्रेजों से संघर्ष किया. उन्होंने सरदार वल्लभ भाई पटेल के साथ मिलकर देशी रियासतों का भारत शासन में विलीनीकरण (विलय) कराया और सन 15 अगस्त 1947 के पश्चात प्रथम कैबिनेट में उन्होंने स्वास्थ, ग्रह और परिवहन मंत्री के रूप में कार्य किया.
आफताब
फ्रीडम फाइटर सैय्यद हामिद अली के बारे में आवाज-द वॉष्स हिंदी ने उनके पोते सैय्यद शकेब अली से बात भी की. वे बताते हैं, ‘‘मेरे दादा मरहूम सैय्यद हामिद अली के 4 पुत्र और 2 पुत्रियां थीं, जिनमें से सबसे बड़े सैय्यद मसूद अली, सैयद युनुस अली, आजाद अली और जाकिर अली थे. वही पुत्रियों में सलमा अली और नौशाद अली का नाम शामिल है और ये सभी इस दुनिया में मौजूद नहीं हैं. हम हमारे दादा मरहूम सैय्यद हामिद अली के बाद तीसरी पीढ़ी हैं.’’
शकेब अली ने बताया कि फ्रीडम फाइटर के रूप में हमारे दादाजी मरहूम सैय्यद हामिद अली ने काफी यातनाएं झेलीं और वे प्रदेश की अलग-अलग जेलों में भी रहे. अंग्रेजों ने उस समय ब्यावरा में गौ हत्या की थी, जिसके विरोध में उन्होंने आंदोलन किया था. जिस कारण उन्हे 3 साल की सजा दी गई थी और उन्हें राजगढ़ में स्थित जिला जेल में रखा गया था. एमपी में पहली मर्तबा जो लगान माफी करवाई गई थी,
उसमे भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी. और मध्यभारत की जितनी भी रियासतें थीं, उनके विलय में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान था. देश की आजादी के बाद वे जेल, परिवहन वा अन्य मुख्य विभाग के मंत्री भी बनाए गए थे. राजगढ़ कलेक्ट्रेट में उनका पूरा रिकॉर्ड दर्ज है और जिस राजगढ़ जिला जेल में उन्होंने सजा काटी, उसी के शिलालेख पर हमारे दादा मरहूम सैय्यद हामिद अली का नाम आज भी दर्ज है. सुठालिया में हमारा पैतृक घर है और उनकी मजार भी स्थित है, जिसे जीर्णोधार की आवश्यकता है.
वही ब्यावरा शहर में निवासरत उनके रिश्तेदार सैय्यद आफताब कहते हैं कि हमें उनका रिश्तेदार होने पर बड़ा गर्व महसूस होता हैं, क्योंकि जिस देश में हम निवासरत हैं, उसे आजाद कराने के लिए उन्होंने अपना योगदान दिया. यह सोचकर हमारा सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है.
भविष्य में भी यदि देश पर कोई आंच आती है, तो हम भी अपनी जान की बाजी लगाने के लिए तैयार हैं. क्योंकि ये हमारे खानदान की परंपरा रही है कि हमारा परिवार देश के लिए मर मिटने के लिए तैयार रहता है. आफताब कहते हैं कि सुठालिया में स्थित उनकी कब्र का जीर्णोधार भी होना चाहिए, ताकि लोगों को पता चले कि इस देश को आजाद कराने में सभी समाज के लोगों ने अपना योगदान दिया है.
राकेश मोहन उपाध्याय, उप अधीक्षक, जिला जेल
आवाज-द वॉयस हिंदी से बात करते हुए राजगढ़ जिले जेल के उप अधीक्षक राकेश मोहन उपाध्यय कहते हैं, जिला जेल का निर्माण सन 1905 में हुआ है और इस जेल के शिलालेख पर अमर स्वतंत्रता संग्राम सैनानी के रूप में सैय्यद हामिद अली जी का नाम लिखा हुआ है.
निश्चित रूप से इस जेल से उनका ताल्लुक रहा है, यहां रिकॉर्ड तो नहीं है, लेकिन जो जानकारी विभिन्न स्रोतों से प्राप्त हुई है, उसके अनुसार, यह है कि उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष में भाग लिया था और उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ जो संघर्ष किया था, उसमें उनको जेल की यातनाएं भी झेलनी पड़ी थीं. इस वजह से राजगढ़ जेल से उनका नाता रहा है और राजगढ़ को जिला बनाने में भी उनका ही योगदान रहा है. और ऐसी जानकारी भी मिली है कि वे प्रथम कैबिनेट में जेल मंत्री भी रहे है.