असमिया लोककथाएँ अब अरबी में: अबू सईद अंसारी ने जोड़ा भाषाओं का पुल

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 03-07-2025
Assamese folktales now in Arabic: Abu Saeed Ansari builds a bridge between languages
Assamese folktales now in Arabic: Abu Saeed Ansari builds a bridge between languages

 

मुन्नी बेगम / गुवाहाटी

अरबी भाषा और साहित्य का विश्व साहित्य में एक विशेष स्थान है.और असमिया साहित्य इस अरब जगत में चमकने के लिए पूरी तरह तैयार है.असम के एक युवा लेखक और शोध विद्वान मौलाना अबू सईद अंसारी ने बहुमूल्य असमिया साहित्यिक कृतियों का अरबी में अनुवाद करके दुनिया में असमिया साहित्य को एक अलग पहचान दिलाने के लिए एक अभिनव मिशन की शुरुआत की है.

 उन्होंने हाल में असमिया साहित्य के महानतम लेखकों में से एक रसराज लक्ष्मीनाथ बेजबरुआ की प्रसिद्ध परीकथा पुस्तक 'बूढ़ी आयर साधु (बूढ़ी दादी की परीकथाएँ)' का अरबी में अनुवाद किया है.

उनकी योजना जल्द ही इस पुस्तक को ऑनलाइन उपलब्ध कराने और इसे उन 25 देशों में प्रकाशित करने की है जहाँ अरबी बोली जाती है.अरबी आधिकारिक तौर पर 22 देशों में और अनौपचारिक रूप से 56 देशों में बोली जाती है.

अंसारी ने आवाज़ - द वॉयस से एक विशेष बातचीत में कहा,"अरबी की कई पुस्तकों का असमिया में अनुवाद किया गया है.बहुत कम या कोई असमिया पुस्तक अरबी में अनुवादित नहीं हुई है.

हमारा असमिया साहित्य बहुत समृद्ध है.इसीलिए मैं अरबी पाठकों के सामने अपनी कृतियाँ प्रस्तुत करके साहित्य जगत के सामने असमिया साहित्य की विविधता और सुंदरता को प्रस्तुत करने की यह पहल कर रहा हूँ.

अनुवाद भाषा और संस्कृति के आदान-प्रदान का एक महत्वपूर्ण माध्यम है.रसराज लक्ष्मीनाथ बेजबरुआ की 'बूढ़ी आयर साधु' असमिया साहित्य और संस्कृति के सबसे सुंदर संग्रहों में से एक है.यह दुनिया में गद्य के सबसे सुंदर संग्रहों में से एक है."

 असम के कामरूप जिले के नगरबेरा के पास सोंतोली निवासी और वर्तमान में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अरबी भाषा के शोध विद्वान अबू सईद अंसारी द्वारा अनुवादित लोककथाओं के इस संग्रह का अरबी नाम 'हिकायतुल-जद्दती' है.परियों की कहानियों का संग्रह मई में काहिरा में मिस्र के प्रकाशन गृह दार अल-मशरिया अल-मग़रिबिया लिल-नस्र बाल-तावज़ी द्वारा प्रकाशित किया गया था.

अंसारी ने पुस्तक का अरबी में अनुवाद करने में आने वाली चुनौतियों के बारे में पूछे जाने पर कहा, "इस परीकथा संग्रह का अनुवाद करते समय मुझे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा,क्योंकि असमिया और अरबी भाषाएं और संस्कृतियां पूरी तरह से अलग हैं.

इस प्रकार, कई असमिया शब्दों का अरबी भाषा में शाब्दिक अनुवाद करना संभव नहीं था.फिर भी, मैंने कहानियों के सार और सौंदर्य को बरकरार रखते हुए, सरल और सीधी भाषा में अनुवाद करने की कोशिश की.मैंने 2022 में अनुवाद कार्य शुरू किया और प्रतिदिन एक या दो पृष्ठों का अनुवाद किया.

ऐसा इसलिए था क्योंकि मैं उस समय अपनी स्नातकोत्तर डिग्री के लिए अरबी भाषा का अध्ययन कर रहा था.मुझे पूरी किताब का अनुवाद करने में लगभग दो साल लग गए.अनुवाद प्रक्रिया के दौरान मेरे मित्र मोहसिन ने मेरी काफी मदद की.पुस्तक का संपादन हमारे जेएनयू के 'सेंटर ऑफ अरबी एंड अफ्रीकन स्टडीज' विभाग के प्रमुख प्रोफेसर मुजीबुर रहमान सर ने किया. "

 उल्लेखनीय है कि बेजबरुआ की पुस्तक 'बूढ़ी आयर साधु' लोक कथाओं के माध्यम से वास्तविकता को दर्शाती है.इसलिए, इस पुस्तक को असमिया साहित्य की सबसे महान कृतियों में से एक माना जाता है.

विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनुवाद के अलावा, इस पुस्तक का अंग्रेजी और स्पेनिश सहित कई विदेशी भाषाओं में भी अनुवाद किया गया है.कई प्रमुख भाषाओं में अनुवाद ने 'बूढ़ी आयर साधु' की अवधारणा की सार्वभौमिक स्वीकृति स्थापित की.मौलाना अबू सईद अंसारी के ईमानदार प्रयासों की बदौलत अब मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया के पाठक भी लक्ष्मीनाथ बेजबरुआ की अमर रचना का स्वाद चखने जा रहे हैं.

विदेश में किताब को लेकर क्या प्रतिक्रिया मिली, इस पर अंसारी ने कहा, "लक्ष्मीनाथ बेजबरुआ के साहित्य ने असमिया साहित्य के खजाने को जीवंत रखा है.इसलिए मैंने असमिया साहित्य को वैश्विक मंच पर ले जाने के लिए इस किताब के अनुवाद का काम अपने हाथ में लिया.

पहले मैंने एक बहुत लोकप्रिय उपन्यास 'अशिमोत जर हेरल सीमा' का अनुवाद करने के बारे में सोचा.चूंकि मैं बेजबरुआ का प्रशंसक हूं.उनके कहानी संग्रह 'बूढ़ी आयर साधु' को सुनते हुए बड़ा हुआ हूं, इसलिए मैंने इस गद्य संग्रह का अनुवाद करने का फैसला किया.

यह गद्य संग्रह न केवल संतों की कहानियों के माध्यम से वास्तविकता को दर्शाता है, नैतिक शिक्षा भी देता है.मैंने इस किताब का अरबी में अनुवाद करने के बारे में सोचा.मैंने इस गद्य संग्रह के अरबी संस्करण को भारत में प्रकाशित करने के बजाय मिस्र में प्रकाशित किया, ताकि रसराज लक्ष्मीनाथ बेजबरुआ की अमर रचना को वैश्विक मंच पर पेश किया जा सके.

ऐसा इसलिए क्योंकि मिस्र में कई आलोचक हैं जो बेजबरुआ की रचनाओं को पढ़ेंगे और विश्व मंच पर उनकी आलोचना करेंगे, जो असमिया साहित्य के विस्तार और प्रचार का एक साधन है.वर्तमान में, पुस्तक को काफी सराहना मिली है.विदेश में सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है.”

अबू सईद अंसारी एक प्रतिभाशाली छात्र हैं, जिन्होंने दारुल उलूम देवबंद से इस्लामी शिक्षा (मौलाना) प्राप्त की.बाद में आधुनिक उच्च शिक्षा के लिए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में दाखिला लिया.

सफलतापूर्वक स्नातक की उपाधि प्राप्त की.इसके बाद उन्होंने भारत के शीर्ष विश्वविद्यालयों में से एक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली में अरबी साहित्य में अपनी मास्टर डिग्री पूरी की.वह वर्तमान में जेएनयू के अरबी और अफ्रीकी अध्ययन केंद्र में पीएचडी कर रहे हैं.

अंसारी ने अपने भविष्य के प्रयासों के बारे में कहा, "मैं निकट भविष्य में असमिया साहित्य का अरबी में अनुवाद करने का काम जारी रखूंगा.अरबी 22 देशों में आधिकारिक भाषा है.अरबी 56 देशों में अनौपचारिक रूप से पढ़ी और बोली जाती है.

साहित्य की दुनिया में अरबी साहित्य का एक प्रतिष्ठित स्थान है.इसलिए, मैं अनुवाद के माध्यम से असमिया साहित्य को अरबी पाठकों तक पहुँचाने का प्रयास कर रहा हूँ.बेजबरुआ की पुस्तक 'बुरही एयर साधु', जिसका मैं अनुवाद कर रहा हूँ, जनवरी 2026 में होने वाले काहिरा पुस्तक मेले में अरबी भाषी पाठकों के लिए उपलब्ध होगी."

असम के बेटे अबू सईद अंसारी का यह प्रयास निश्चित रूप से सराहनीय है.उनकी वजह से ही लक्ष्मीनाथ बेजबरुआ की महान रचना 'बुरही एयर साधु' अरब जगत में अपनी जगह बनाने के लिए तैयार है.यह किताब मिस्र के काहिरा में किताबों की दुकानों में पहले से ही उपलब्ध है.

'बुरही एयर साधु' का अरबी संस्करण जल्द ही भारत और असम में भी उपलब्ध होगा.अंसारी ने कहा कि उन्होंने असमिया और अरबी भाषाओं, साहित्य और संस्कृति के बीच एक मजबूत पुल बनाने के प्रयास में परी कथाओं के संग्रह का अनुवाद किया है.