रामचरित मानस के प्रसिद्ध कथाकार पंडित अब्दुल हमीद शास्त्री का निधन

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 13-01-2025
Pandit Abdul Hameed Shastri
Pandit Abdul Hameed Shastri

 

संतकबीर नगर. हिन्दू मुस्लिम एकता का संदेश देने में अपना पूरा जीवन खपा देने वाले हमीदुल्लाह का निधन होने से हर किसी में शोक की लहर है. पूरा जीवन प्रभु श्रीराम के भक्ति की अलख जगाने में जुटे रहे 73 वर्षीय हमीदुल्लाह उर्फ पंडित अब्दुल हमीद शास्त्री का निधन भी उस दिन हुआ, जब पूरा देश प्रभु श्रीराम मंदिर स्थापना की पहली वर्षगांठ मना रहा था.

हिंदुस्तान की एक रिपोर्ट के अनुसार, राम चरित मानस से प्रेरित पंडित अब्दुल हमीद शास्त्री ने पूरा जीवन मानस पाठ, राम कथा और रामलीला के नाम समर्पित कर दिया था. संत कबीर की तरह ही उन्होंने जाति, धर्म, पंथ के भेद को खत्म करने के लिए पूरे जीवन संदेश दिया.

पंडित अब्दुल हमीद शास्त्री पिछले 46 वर्ष से अब तक भगवान श्रीराम का गुणगान करते रहे. पंडित हमीद 15 साल की उम्र से ही भगवत गीता और रामायण का पाठ करना शुरू कर दिया था. कक्षा पांच तक पढ़ाई करने के बावजूद उन्हें हिन्दी और उर्दू दोनों विषय का ज्ञान था. लोगों में भी इन्हें सुनने की होड़ मची रहती थी. वे यूपी के दर्जनों जिलों सहित देश के कई प्रदेशों में बतौर मानस पाठ और कथा कह चुके थे.

पंडित अब्दुल हमीद लोगों को बताते थे कि ‘हम शब्द दोनों तहजीबों के मेल से बना है. ‘ह’ से हिंदू और ‘म’ से मुसलमान होता है. त्रेता युग में भगवान श्रीराम का चरित्र वर्णन, ‘बड़े भाग मानुष तन पावा’ संदेश देता है कि आपस में मिलकर रहना चाहिए. बड़े भाग्य से मनुष्य का तन मिलता है. वे हमेशा लोगों से कहते थे कि बड़े भाग्य से हिंदू, मुसलमान, सिक्ख और ईसाई तन पावा.

अब्दुल हमीद राम चरित मानस की चौपाई ‘कर्म प्रधान विश्व रचि राखा, जो जस करहिं सो तस फल चाखा’ से पूरी तरह प्रेरित थे. तमाम विरोध झेलने के बावजूद वह कहते थे कि मेरे कर्म में मानस पाठ लिखा था, सो मैंने वही किया. मानस जीवन जीना सिखाता है. अब्दुल हमीद शास्त्री का निधन जनपद के लिए अपूर्णनीय क्षति है.

पिता से मिला था शास्त्रीय ज्ञान

 

स्वर्गीय हमीद शास्त्री को अपने पिता स्वर्गीय इबारत अली से खानदानी शिक्षा के रूप में हारमोनियम बजाना और गीत-गजल और कौव्वाली गाने का फन मिला था. महज 15 साल की उम्र में इनके अंदर प्रभु श्रीराम के जीवन को जानने की इच्छा जागी. जहां कहीं भी राम चरित मानस का पाठ होता रहता था, वह पहुंच जाते थे. दो चार जगहों पर जाने के बाद हमीद ने खुद राम चरित मानस की एक छोटी किताब खरीदी और घर लाकर पढ़ने लगे.

 

संभाल चुके थे रामलीला में व्यास की गद्दी

 

गांव के ब्राह्मणों, राम चरित मानस के जानकारों के साथ मिलकर हमीद ने राम चरित मानस गायन की विद्या सीखी थी. दोहा-सोरठा-छंद और चौपाई के बारे में इन्हें खरवनिया के रहने वाले शिक्षक वीर बहादुर सिंह ने बताया था. विद्याधर दूबे को स्वर्गीय हमीद अपना गुरु मानते थे. राम सुभग पाण्डेय के साथ मिलकर राम चरित मानस का गायन और पाठ करते रहे. रामलीला में व्यास की गद्दी भी संभालते रहे.