जानिए सफ़ीना हुसैन और एजुकेट गर्ल्स के बारे में जिन्हें मिला एशिया का नोबेल रेमन मैग्सेसे

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 02-09-2025
Know about Safina Husain and Educate Girls who received Asia's Nobel Ramon Magsaysay Award
Know about Safina Husain and Educate Girls who received Asia's Nobel Ramon Magsaysay Award

 

मलिक असगर हाशमी / नई दिल्ली

देश में इन दिनों बाढ़, बारिश, भूस्खलन और बादल फटने जैसी प्राकृतिक आपदाओं का शोर है. अख़बारों और न्यूज़ चैनलों की सुर्खियाँ इन्हीं से भरी हुई हैं. मगर इस शोर के बीच से एक ऐसी ख़बर आई है जिसने भारत का सिर गर्व से ऊँचा कर दिया. यह ख़बर किसी राजनीतिक सौदे, आर्थिक उपलब्धि या खेल जगत की जीत से नहीं, बल्कि एक महिला की प्रतिबद्धता, उनके संकल्प और शिक्षा के माध्यम से समाज बदलने की ताकत से जुड़ी है. यह कहानी है सफ़ीना हुसैन की, जिन्होंने अपनी संस्था एजुकेट गर्ल्स को उस मुकाम तक पहुँचाया जहाँ आज यह भारत का पहला गैर-लाभकारी संगठन बन गया है जिसे एशिया का सर्वोच्च नागरिक सम्मान – रेमन मैग्सेसे अवार्ड  मिला है.


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दिल्ली में जन्मी 54 वर्षीय सफ़ीना हुसैन की यात्रा बेहद दिलचस्प रही है. लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पढ़ाई पूरी करने के बाद उनके सामने अमेरिका और यूरोप में शानदार करियर बनाने के तमाम अवसर थे.

लेकिन उन्होंने इन सबको छोड़कर भारत लौटने का फ़ैसला किया. उन्होंने ठाना कि वे उस पीढ़ी के लिए काम करेंगी जिसे सबसे अधिक नज़रअंदाज़ किया जाता है  यानी ग्रामीण इलाक़ों की वे बच्चियां जो अब तक शिक्षा से दूर रही हैं.

सफ़ीना का जीवन पहले ही दौर से सामाजिक सरोकारों से जुड़ा रहा. उन्होंने दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका और एशिया के वंचित इलाक़ों में काम किया और वहां की समस्याओं को करीब से समझा. लेकिन जब वे भारत लौटीं, तो उन्हें एहसास हुआ कि उनके अपने देश में भी लड़कियों की शिक्षा की हालत चिंताजनक है. इसी एहसास ने उन्हें 2007 में मुंबई से एजुकेट गर्ल्स की शुरुआत करने के लिए प्रेरित किया.

शुरुआत में यह एक छोटा सा प्रयोग था, जो राजस्थान के जालौर ज़िले और उसके आस-पास के गाँवों तक सीमित था. सफ़ीना ने महसूस किया कि शिक्षा केवल एक किताब थमाने का नाम नहीं है, बल्कि समाज की सोच और परंपराओं को बदलने का काम भी है.

उन्होंने देखा कि ग़रीबी, पितृसत्तात्मक सोच और सामाजिक दबावों के कारण लड़कियों को स्कूल भेजना परिवारों के लिए सबसे कम प्राथमिकता है. उन्होंने गाँव-गाँव जाकर समझाया, समुदायों को जोड़ा और यह विश्वास दिलाया कि बच्चियों की पढ़ाई पूरे समाज को बदल सकती है. धीरे-धीरे यह पहल एक आंदोलन में बदल गई.

आज एजुकेट गर्ल्स 30,000 से अधिक गाँवों में काम कर रही है और 20 लाख से अधिक बच्चियों की ज़िंदगी बदल चुकी है. इस संस्था ने अब तक 11 लाख से ज्यादा लड़कियों का नामांकन कराया है और 1.55 करोड़ से अधिक लोगों को सकारात्मक रूप से प्रभावित किया है.

इस काम को आगे बढ़ाने के लिए सफ़ीना ने टीम बालिका की नींव रखी, जिसमें स्थानीय युवा स्वयंसेवक गाँव-गाँव जाकर स्कूल न जाने वाली लड़कियों को ढूंढते और उन्हें पढ़ाई के लिए प्रेरित करते हैं.

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संस्था की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक 2015 का नवाचार है, जब इसने शिक्षा के क्षेत्र में दुनिया का पहला डेवलपमेंट इम्पैक्ट बॉन्ड लॉन्च किया. इस अनोखे मॉडल ने वित्तीय सहायता को सीधे मापनीय परिणामों से जोड़ दिया.

नतीजा यह हुआ कि संस्था ने अपने नामांकन और शिक्षण दोनों लक्ष्यों को पार कर लिया. बाद में, एजुकेट गर्ल्स ने प्रगति नाम का कार्यक्रम भी शुरू किया, जो 15 से 29 वर्ष की युवतियों को ओपन स्कूलिंग के ज़रिए अपनी पढ़ाई पूरी करने का मौका देता है. यह पहल शुरू में 300 लड़कियों से शुरू हुई थी, लेकिन आज तक 31,500 से अधिक युवतियों तक पहुँच चुकी है.

कोविड-19 महामारी के दौरान जब पूरे देश में भय और असुरक्षा का माहौल था, तब भी एजुकेट गर्ल्स उम्मीद का सहारा बनी. ग्रामीण इलाक़ों में लाखों परिवारों तक राशन और स्वच्छता किट पहुँचाने से लेकर शिक्षा को पटरी पर रखने के लिए कैंप विद्या जैसी पहल शुरू करने तक, इस संस्था ने दिखाया कि संकट की घड़ी में भी बच्चियों की पढ़ाई को रोका नहीं जा सकता.

इन कैंपों के माध्यम से 17,000 से अधिक शिक्षण सत्र आयोजित किए गए जिनमें 3.4 लाख से अधिक बच्चों ने भाग लिया.इस अवार्ड की घोषणा के बाद सफ़ीना हुसैन ने कहा कि रेमन मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त करने वाली पहली भारतीय गैर-लाभकारी संस्था बनना न केवल एजुकेट गर्ल्स बल्कि पूरे देश के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है.

यह मान्यता भारत में लड़कियों की शिक्षा के लिए जन-संचालित आंदोलन को वैश्विक स्तर पर उजागर करती है. उन्होंने कहा कि यह जीत केवल उनकी संस्था की नहीं है, बल्कि उन लाखों लड़कियों की है जिन्होंने शिक्षा पाने के लिए संघर्ष किया, उन स्वयंसेवकों की है जिन्होंने गाँव-गाँव जाकर बच्चियों को स्कूल से जोड़ा और उन दानदाताओं व सहयोगियों की है जिन्होंने इस काम को आगे बढ़ाया.


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सफ़ीना का निजी जीवन भी उतना ही चर्चित रहा है. वे दिवंगत अभिनेता यूसुफ हुसैन की बेटी हैं. उन्होंने मशहूर फिल्म निर्देशक हंसल मेहता के साथ 17 साल तक लिव-इन में रहने के बाद 2022 में शादी की. दोनों की दो बेटियाँ हैं – किमाया और रेहाना. हंसल मेहता ने हमेशा सफ़ीना के सामाजिक कामों का साथ दिया है और उनकी फिल्मों में भी सामाजिक सरोकार की झलक देखने को मिलती है.

रेमन मैग्सेसे अवार्ड फाउंडेश ने अपने बयान में कहा कि एजुकेट गर्ल्स को यह सम्मान लड़कियों और युवतियों की शिक्षा के ज़रिए सांस्कृतिक रूढ़िवादिता को तोड़ने और उन्हें अपनी पूरी मानवीय क्षमता हासिल करने के अवसर देने के लिए दिया गया है. वास्तव में यह पुरस्कार उस बदलाव की पहचान है जो किसी राजधानी या बड़े शहर से नहीं, बल्कि एक दूरस्थ गाँव की एक अकेली लड़की से शुरू हुआ और धीरे-धीरे पूरे समुदायों को नया रूप देने लगा.

एजुकेट गर्ल्स की सीईओ गायत्री नायर लोबो का कहना है कि शिक्षा विकास के सबसे बड़े साधनों में से एक है और यह हर लड़की का मौलिक अधिकार है. उनका मानना है कि यह पुरस्कार उस परिवर्तनकारी बदलाव की मान्यता है जिसे सरकार, कॉर्पोरेट जगत, परोपकारी संस्थाओं और स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर हासिल किया गया है.

आज जब भारत अनेक सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहा है, ऐसे समय में एजुकेट गर्ल्स की उपलब्धि पूरे देश के लिए गर्व का विषय है. यह साबित करता है कि बदलाव का बीज एक गाँव की एक लड़की में भी छिपा हो सकता है, बशर्ते उसे शिक्षा की रोशनी मिले.

आने वाले वर्षों में सफ़ीना और उनकी संस्था का लक्ष्य एक करोड़ से अधिक लड़कियों तक पहुँचना है और इस आंदोलन को भारत से परे दुनिया के अन्य हिस्सों तक फैलाना है. सफ़ीना का विश्वास है कि जब हर लड़की को शिक्षा का अवसर मिलेगा, तभी सच्ची समानता संभव होगी.

रेमन मैग्सेसे अवार्ड जीतकर एजुकेट गर्ल्स ने साबित कर दिया है कि भारत में बदलाव की असली नायिकाएँ वे बच्चियां हैं, जो स्कूल जाकर अपने कल को बदलने का सपना देखती हैं. यह कहानी केवल एक पुरस्कार की नहीं, बल्कि उस विश्वास की है कि शिक्षा समाज को बदलने की सबसे बड़ी ताकत है और जब एक लड़की पढ़ती है तो उसके साथ पूरा परिवार, पूरा समाज और पूरा देश आगे बढ़ता है.