सबरी बनीं केरल कलामंडलम में कथकली प्रस्तुत करने वाली पहली मुस्लिम छात्रा

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari | Date 08-10-2025
16-year-old becomes first Muslim girl to perform Kathakali at 95-year-old Kerala university
16-year-old becomes first Muslim girl to perform Kathakali at 95-year-old Kerala university

 

ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली

केरल के सांस्कृतिक इतिहास में गुरुवार का दिन एक यादगार पल बन गया जब 16 वर्षीय साबरी ने प्रतिष्ठित केरल कला मंडल के मंच पर अपनी पहली सार्वजनिक प्रस्तुति दी.
 
यह क्षण न केवल उनके जीवन का सपना साकार करने वाला था, बल्कि राज्य के लगभग शताब्दी पुराने इस प्रसिद्ध कला संस्थान के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ने वाला भी बना. सबरी इस मंच पर कथकली प्रस्तुत करने वाली पहली मुस्लिम महिला बन गईं.
 
 
विजयदशमी के शुभ अवसर पर हुई इस प्रस्तुति को सबरी ने अपनी “लंबे अरसे से संजोई गई ख्वाहिश का पूरा होना” बताया. उन्होंने कहा, “यह एक अविस्मरणीय अनुभव था. न तो कोई डर था, बस पोशाक का वज़न थोड़ा भारी लगा, लेकिन मंच पर आते ही सब सहज हो गया। नृत्य मेरा जुनून है.”
 
उनके पिता नज़ीम अम्मस, जो पेशे से फ़ोटोग्राफ़र हैं, ने भी अपनी बेटी की इस उपलब्धि पर खुशी जताई. उन्होंने द ट्रिब्यून को बताया कि, “यह हमारे परिवार के लिए बेहद गर्व और खुशी का पल है. सबरी ने वह सपना पूरा कर दिखाया, जिसे उसने बचपन से देखा था.”
 
संस्था का गौरवशाली इतिहास और परंपरा में नई शुरुआत
 
1930 में कवि वल्लथोल नारायण मेनन और मुकुंदराजा द्वारा स्थापित केरल कलामंडलम राज्य का प्रमुख शास्त्रीय कला केंद्र है, जिसने दशकों से कथकली, मोहिनीयाट्टम और कूडियाट्टम जैसे पारंपरिक नृत्य रूपों को नई ऊंचाई दी है. यह पहली बार है जब इस संस्था ने अपने 95 वर्ष के इतिहास में किसी मुस्लिम छात्रा को कथकली की शिक्षा दी और उसे मंच पर प्रदर्शन का अवसर मिला.
 
 
सबरी को इस संस्था में प्रवेश दिलाने का श्रेय मशहूर कथकली गुरु कलामंडलम गोपी को जाता है, जिन्होंने इस बात पर जोर दिया कि मुस्लिम समुदाय की एक लड़की को भी इस परंपरा में शामिल किया जाए. गोपी ने ही उन्हें कथकली के पहले मुद्रा सिखाए, जिसके बाद सबरी ने कलामंडलम अनिल कुमार के निर्देशन में तीन वर्ष तक नृत्य का प्रशिक्षण प्राप्त किया.
 
अनिल कुमार ने कहा, “सबरी बेहद ध्यानपूर्वक और लगन से सीखती है। उसकी प्रस्तुति में उसी समर्पण की झलक मिली. उसने अपने अरंगेत्रम में बहुत सुंदर प्रदर्शन किया.”
 
‘कृष्ण वेशम् पुरप्पाडु’ से किया पदार्पण
 
सबरी ने गुरुवार रात कृष्ण वेशम् पुरप्पाडु के रूप में लगभग 40 मिनट का प्रदर्शन किया. यह कथकली का आरंभिक दृश्य होता है, जिसमें भगवान कृष्ण की झलक दर्शकों को पहली बार मिलती है. नीले चेहरे के मेकअप और भारी पोशाक में, ढोल-चेंडा की ताल पर सबरी ने जब मंच पर प्रवेश किया तो दर्शकों ने तालियों से उनका स्वागत किया.
 
 
उनके पिता ने बताया कि प्रदर्शन से पहले मेकअप और पोशाक की तैयारी में कई घंटे लगे। शाम 8 बजे जब सबरी मंच पर आईं, तो मंच पर इतिहास बन चुका था — केरल कलामंडलम के मंच पर पहली बार किसी गैर-हिंदू लड़की ने कथकली प्रस्तुत की थी.
 
धर्म की सीमाओं से परे कला का पुल
 
सबरी से पहले केरल कलामंडलम ने कई प्रसिद्ध कलाकार दिए हैं, जिनमें ईसाई समुदाय से जुड़े कलामंडलम जॉन और मशहूर मुस्लिम कथकली गायक कलामंडलम हैदर अली भी शामिल हैं. हैदर अली ने अपनी आत्मीय आवाज़ से कथकली के संगीत में नई जान फूंकी थी और धर्म की सीमाओं से ऊपर उठकर कला के प्रति समर्पण की मिसाल कायम की थी. सबरी की प्रस्तुति उसी परंपरा को आगे बढ़ाती है — जहां कला का कोई धर्म नहीं, केवल साधना और सौंदर्य होता है.
 
एक पिता की प्रेरणा से शुरू हुई यात्रा
 
नज़ीम बताते हैं कि सबरी की रुचि कथकली के रंगों और भाव-भंगिमाओं में बचपन से थी. जब वह अपने पिता के साथ सांस्कृतिक आयोजनों की फ़ोटोग्राफ़ी पर जाया करती थीं, तब ही उनमें कला के प्रति जिज्ञासा जगी. पिता ने जब पूछा कि क्या वह कथकली सीखना चाहेंगी, तो सबरी ने तुरंत हामी भर दी.
 
साल 2021 में केरल कलामंडलम ने पहली बार छात्राओं के लिए अपने द्वार खोले. तब सबरी कक्षा 6 में थीं, जबकि प्रवेश कक्षा 8 से शुरू होता था. दो वर्ष बाद, 2023 में उन्होंने आवेदन किया और गुरु कलामंडलम गोपी के सहयोग से उन्हें प्रवेश मिला.
 
नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा
 
आज सबरी केरल कलामंडलम में तीसरे बैच की छात्राओं में शामिल हैं और कथकली के जटिल अध्यायों की शिक्षा ले रही हैं. उनकी यह उपलब्धि न केवल व्यक्तिगत विजय है, बल्कि यह संदेश भी देती है कि कला सभी की है — चाहे धर्म, जाति या समुदाय कोई भी क्यों न हो.
 
 
सबरी की यह प्रस्तुति उस विचार को सशक्त करती है कि भारत की सांस्कृतिक विरासत तभी पूर्ण है जब उसमें विविधता, समानता और समरसता की धारा प्रवाहित हो.
 
केरल कलामंडलम के मंच पर गुरुवार को जब 16 वर्षीय मुस्लिम छात्रा सबरी ने कृष्ण वेश में नृत्य किया, तो वह केवल एक प्रस्तुति नहीं थी — वह परंपरा और सीमाओं के पार जाती कला की विजय थी.