भाई दूज का तिलक: रिश्तों में विश्वास और वचनबद्धता का प्रतीक

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 22-10-2025
Bhai Dooj Tilak: A symbol of trust and commitment in relationships
Bhai Dooj Tilak: A symbol of trust and commitment in relationships

 

अनीता

भारत में पर्व-त्योहार केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं होते, बल्कि ये रिश्तों की आत्मीयता और सामाजिक मूल्यों का प्रतीक होते हैं. ’’भाई दूज’’, जिसे ’’भ्रातृ द्वितीया’’, ’’भाऊ बीज’’ या ’’भाई टीका’’ भी कहा जाता है. यह पर्व है जो भाई और बहन के पवित्र स्नेह को समर्पित है. इस दिन बहनें अपने भाइयों का तिलक करती हैं, आरती उतारती हैं और उनकी लंबी आयु की कामना करती हैं.

बदले में भाई बहन को उपहार देकर उसकी रक्षा का वचन देता है. दीपावली के दो दिन बाद आने वाला यह त्यौहार न केवल पारिवारिक प्रेम का उत्सव है, बल्कि सुरक्षा, आशीर्वाद और जिम्मेदारी की भावना को भी सशक्त करता है.

वैदिक पंचांग के अनुसार, भाई दूज की द्वितीया तिथि की शुरुआत 22 अक्टूबर की रात 8 बजकर 16 मिनट पर होगी और तिथि का समापन 23 अक्टूबर की रात 10 बजकर 46 मिनट पर होगा. उदयातिथि के अनुसार, भाई दूज 23 अक्टूबर को ही मनाया जाएगा. इस दिन भाई को टीका करने का मुहूर्त दोपहर 1 बजकर 13 मिनट से लेकर दोपहर 3 बजकर 28  तक रहेगा.

भाई दूज का महत्व

भाई दूज, दिवाली के बाद पांच दिवसीय उत्सव का अंतिम दिन होता है. इसे ’भ्रातृ द्वितीया’ कहा जाता है.यह कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को पड़ता है. यह पर्व ’’रक्षाबंधन’’ के समान ही भाई-बहन के रिश्ते को मजबूत बनाता है, लेकिन इसमें एक गहरा भाव है. यह बहन के घर भाई के आगमन और उसके सत्कार का दिन होता है.

इस दिन बहनें अपने भाइयों के माथे पर ’’तिलक’’ लगाती हैं, ’’आरती’’ करती हैं, ’’मिठाई खिलाती हैं और उनके दीर्घायु होने की प्रार्थना करती हैं. यह दिन भाई के लिए बहन के आशीर्वाद और बहन के लिए भाई के स्नेह का प्रतीक बनता है.

भाई दूज की पूजा विधि

भाई दूज की पूजा विधि सरल है. इसमें श्रद्धा और पारिवारिक भावनाएं अत्यंत महत्वपूर्ण हैं. सुबह स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें. घर के पूजा स्थल या आंगन में लकड़ी का आसन बिछाएं. पूजा थाल में कुमकुम, अक्षत, दीपक, मिठाई, नारियल, सुपारी और जल से भरा कलश रखें. बहन अपने भाई को घर बुलाती है या स्वयं उसके घर जाती है. भाई-बहन दोनों पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठते हैं.

बहन पहले भाई के माथे पर चंदन या रोली से तिलक लगाती है. फिर जल छिड़ककर आरती उतारती है. मिठाई खिलाती है. इस दौरान बहन यह मंत्र बोलती है - “यम द्वितीया तु प्रोक्ता यमराज यमुनागता.

यमुनायै नमस्तुभ्यं वरदायि सुखं मम.” (अर्थात, हे यमुना देवी! जैसे आपने अपने भाई यमराज का आदर किया था, वैसे ही हमारे भाई का जीवन सुखी और दीर्घायु हो.) पूजा के बाद भाई अपनी बहन के घर भोजन करता है. इस दिन बहनें भाइयों के लिए विशेष व्यंजन बनाती हैं. प्रमुख पारंपरिक व्यंजनों में  पूरनपोली, खीर, लड्डू, गुजिया, मालपुआ, नमकीन व्यंजन शामिल हैं. भाई बहन को उपहार, वस्त्र या धन देता है. उसकी रक्षा का वचन देता है.

आधुनिक युग में परिवर्तन

आज के दौर में जब कई भाई-बहन दूर-दराज के शहरों या विदेशों में रहते हैं, तो भाई दूज ऑनलाइन भी मनाई जाने लगी है. वीडियो कॉल पर तिलक लगाना, ऑनलाइन गिफ्ट भेजना और डिजिटल कार्ड साझा करना नई परंपराओं का हिस्सा बन चुके हैं. फिर भी इस पर्व की भावनात्मक गहराई वही है.

पौराणिक कथा

भाई दूज की उत्पत्ति से जुड़ी कई कथाएं हैं, जिनमें सबसे प्रसिद्ध कथा ’’यमराज और यमुना’’ की है. एक समय सूर्यदेव और छाया की संतान यमराज और यमुना थे. यमुना अपने भाई से बहुत स्नेह करती थीं.

बार-बार उन्हें अपने घर आने का निमंत्रण देती थीं. परंतु यमराज अपने कार्यों में व्यस्त रहते थे. कभी जा नहीं पाते थे. एक दिन कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमराज ने अपनी बहन यमुना का निमंत्रण स्वीकार किया. उसके घर पहुँचे.

यमुना ने बड़े प्रेम से उनका स्वागत किया, तिलक लगाया, मिठाई खिलाई और आरती उतारी. प्रसन्न होकर यमराज ने कहा, “हे बहन! आज के दिन जो भाई अपनी बहन के घर जाकर स्नेहपूर्वक तिलक ग्रहण करेगा, वह मृत्यु के भय से मुक्त रहेगा.” तब से यह परंपरा चली आ रही है कि ’’भाई दूज’’ के दिन बहन अपने भाई का तिलक कर उसकी दीर्घायु की कामना करती है.

एक अन्य कथा के अनुसार, महाभारत के अनुसार, नरकासुर का वध करने के बाद भगवान श्रीकृष्ण द्वारका लौटे. उनकी बहन ’’सुभद्रा’’ ने उनका स्वागत किया, तिलक लगाया और आरती उतारी. तब श्रीकृष्ण ने प्रसन्न होकर कहा कि जो बहन अपने भाई का इस दिन तिलक करेगी, उसके घर सदैव सुख-समृद्धि बनी रहेगी. इसी कारण यह दिन ’’भाई दूज’’ के रूप में मनाया जाता है.

इतिहास और सांस्कृतिक परंपरा

भाई दूज का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों ’’स्कंद पुराण’’, ’’गरुड़ पुराण’’, और ’’वामन पुराण’’ में मिलता है. पुराणों के अनुसार, यह पर्व वैदिक काल से प्रचलित है, जब परिवार और संबंधों के प्रति कर्तव्यबोध को धार्मिक कर्म से जोड़ा गया था. मध्यकालीन भारत में, यह पर्व विशेषकर उत्तर भारत, गुजरात, महाराष्ट्र और नेपाल में लोकप्रिय हुआ. गुजरात में इसे ’’भाऊ बीज’’ कहा जाता है.

महाराष्ट्र में बहनें भाइयों को भोजन कराती हैं. बदले में भाई उन्हें उपहार देता है. नेपाल में इसे ’’भाई टीका’’ के रूप में मनाया जाता है, जहाँ बहनें भाई को पाँच रंगों का तिलक लगाती हैं. मॉरीशस, फिजी, त्रिनिडाड, सूरीनाम जैसे देशों में बसे भारतीय भी इस पर्व को बड़े उत्साह से मनाते हैं.

आध्यात्मिक संदेश

भाई दूज का सबसे बड़ा संदेश है परिवार का एकजुट रहना और एक-दूसरे की रक्षा करना. यह पर्व बहन के त्याग और स्नेह तथा भाई की सुरक्षा और जिम्मेदारी के बीच के संतुलन को दर्शाता है. आज के आधुनिक समय में, जब रिश्तों में दूरी बढ़ रही है, भाई दूज हमें याद दिलाता है कि परिवार ही जीवन की सबसे बड़ी शक्ति है.

यह पर्व हमें पारिवारिक रिश्तों की पवित्रता का महत्व सिखाता है. भाई को बहन की रक्षा का वचन देना केवल प्रतीक नहीं, एक नैतिक कर्तव्य है. यह पर्व परिवार को जोड़ने का अवसर है, चाहे दूरी कितनी भी क्यों न हो. भाई दूज का तिलक केवल रीति नहीं, आशीर्वाद और प्रेम का प्रतीक है.