हैदराबाद : 24 हज़ार बच्चों की ज़िंदगी सँवारने वाले ग़ियासुद्दीन बाबूख़ान अब नहीं रहे

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 26-08-2025
Hyderabad: Giyasuddin Babukhan, who improved the lives of 24 thousand children, is no more
Hyderabad: Giyasuddin Babukhan, who improved the lives of 24 thousand children, is no more

 

आवाज द वाॅयस/ हैदराबाद

तेलंगाना और दूरदराज़ के ग़रीब बच्चों के लिए शिक्षा का सहारा बनने वाले ग़ियासुद्दीन बाबूख़ान अब हमारे बीच नहीं रहे. सोमवार को उनके इंतक़ाल के बाद उसी रात उन्हें सुपुर्दे-ख़ाक कर दिया गया. बाबूख़ान साहब की मौत से न केवल हैदराबाद सन्न है, बल्कि पूरे तेलंगाना के एक बड़े तबके में मातम पसरा हुआ है.

उनके जाने की खबर इतनी सदमे वाली रही कि जैसे ही यह सामने आई, असदुद्दीन ओवैसी से लेकर जमाअत-ए-इस्लामी हिंद तक तमाम संगठनों और जागरूक मुसलमानों ने सोशल मीडिया पर गहरा अफ़सोस जताया.

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25 अगस्त 2025 को हैदराबाद ने अपना एक ऐसा नगीना खो दिया, जिसने शहर की आधुनिक स्काईलाइन तो गढ़ी ही, साथ ही शिक्षा, परोपकार और समाजसेवा के क्षेत्र में ऐसी मिसाल छोड़ी, जिसकी गूँज आने वाली पीढ़ियों तक सुनाई देगी.

रियल एस्टेट की दुनिया में अपनी मेहनत और दूरदर्शिता से बाबूख़ान एंटरप्राइज़ेज़, मोग़ल बिल्डर्स एंड प्लानर्स और बाबूख़ान प्रॉपर्टीज़ जैसी कंपनियाँ खड़ी करने वाले बाबूख़ान साहब ने हैदराबाद को आधुनिक इमारतें, कारोबारी ढाँचे और दफ़्तर दिए, जो आज शहर की पहचान का अहम हिस्सा हैं.

मगर उनकी शख़्सियत केवल व्यावसायिक सफलता तक सीमित नहीं थी,वे समाज की बेहतरी और ख़ासतौर पर शिक्षा के क्षेत्र में अपनी गहरी आस्था और समर्पण के लिए जाने जाते थे.

ग़ियासुद्दीन बाबूख़ान की सबसे बड़ी पहचान उनकी समाजसेवा रही. उन्होंने हैदराबाद ज़कात एंड चैरिटेबल ट्रस्ट (HZCT) और फ़ाउंडेशन फ़ॉर इकोनॉमिक एंड एजुकेशनल डेवलपमेंट (FEED) जैसे संस्थानों को मज़बूत किया.

1992 में जब HZCT की शुरुआत महज़ 11 लाख रुपये ज़कात से हुई थी, तब किसी ने नहीं सोचा था कि एक दिन यही संस्था 106 स्कूलों में 24 हज़ार से अधिक बच्चों को शिक्षा उपलब्ध कराएगी.

इन बच्चों में ज़्यादातर तेलंगाना के दूरदराज़ इलाक़ों से आते हैं. यह उपलब्धि बाबूख़ान साहब की दूरदर्शिता, मेहनत और उस यक़ीन की गवाही देती है, जो उन्होंने हमेशा शिक्षा को समाज की तरक़्क़ी का असली रास्ता मानकर जताया.

इसी सोच से उन्होंने हैदराबाद इंस्टिट्यूट ऑफ़ एक्सीलेंस की नींव रखी, जिसका मक़सद था योग्य लेकिन आर्थिक रूप से कमज़ोर छात्रों को उच्च शिक्षा देकर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करना.

उनकी सेवाओं को सरकार ने भी सराहा। 2014 में तेलंगाना सरकार ने उन्हें मौलाना अबुल कलाम आज़ाद राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाज़ा, जो अल्पसंख्यक समाज के शैक्षणिक और आर्थिक उत्थान के लिए उनके लंबे योगदान का सम्मान था। लेकिन बाबूख़ान साहब को केवल पुरस्कारों से नहीं आंका जा सकता.

वे दान और परोपकार की जीवंत मिसाल थे। उनका मानना था कि सच्चा दान वही है, जो किसी इंसान को आत्मनिर्भर बनाए और उसे अपने पैरों पर खड़े होने का हौसला दे. यही सोच उन्हें आम कारोबारियों से अलग करती थी और समाज का रहनुमा बना देती थी.

उनके इंतक़ाल की ख़बर ने पूरे हैदराबाद को ग़मगीन कर दिया. एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि बाबूख़ान साहब का निधन शहर के लिए बहुत बड़ी क्षति है और वे ग़रीबों व वंचितों को शिक्षित करने की अपनी कोशिशों के लिए हमेशा याद किए जाएँगे. जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए “सच्चा शिक्षा-प्रेमी और मुस्लिम समाज का रहनुमा” बताया.

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सोमवार की रात ईशा की नमाज़ के बाद उनका जनाज़ा मस्जिद-ए-ब़क़ी, रोड नंबर 12, बंजारा हिल्स में अदा किया गया। शहर की जानी-मानी हस्तियाँ, समाजसेवी और आम नागरिक बड़ी तादाद में उन्हें अंतिम विदाई देने पहुँचे। यह नज़ारा साबित करता था कि बाबूख़ान साहब महज़ एक कारोबारी नहीं थे, बल्कि इस शहर की रूह का अहम हिस्सा बन चुके थे..

ग़ियासुद्दीन बाबूख़ान का जाना न केवल उनके परिवार और दोस्तों के लिए, बल्कि पूरे हैदराबाद के लिए एक अपूरणीय क्षति है. उन्होंने अपने जीवन से यह पैग़ाम दिया कि संपत्ति और शोहरत का असली मक़सद तभी पूरा होता है, जब वह समाज की बेहतरी और इंसानियत की सेवा में खर्च हो.

उनकी ज़िंदगी हमें याद दिलाती है कि ऊँची-ऊँची इमारतों से नहीं, बल्कि उन ज़िंदगियों से असली विरासत बनती है, जिन्हें इंसान अपने काम से बेहतर बना सके. ग़ियासुद्दीन बाबूख़ान ने यही किया और इसी वजह से उनका नाम आने वाली पीढ़ियों के लिए हमेशा प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा.