पानी पर कब्जे की लड़ाई या सहयोग ?

Story by  प्रमोद जोशी | Published by  [email protected] | Date 21-03-2023
पानी पर कब्जे की लड़ाई या सहयोग ?
पानी पर कब्जे की लड़ाई या सहयोग ?

 

permodप्रमोद जोशी

जनवरी के महीने में जब भारत ने पाकिस्तान को सिंधु जलसंधि पर संशोधन का सुझाव देते हुए एक नोटिस दिया था, तभी स्पष्ट हो गया था कि यह एक नए राजनीतिक टकराव का प्रस्थान-बिंदु है. सिंधु जलसंधि दुनिया के सबसे उदार जल-समझौतों में से एक है. भारत ने सिंधु नदी से संबद्ध छह नदियों के पानी का पाकिस्तान को उदारता के साथ इस्तेमाल करने का मौका दिया है. अब जब भारत ने इस संधि के तहत अपने हिस्से के पानी के इस्तेमाल का फैसला किया, तो पाकिस्तान ने आपत्ति दर्ज करा दी.

माना जाता है कि कभी तीसरा विश्वयुद्ध हुआ, तो पानी को लेकर होगा. जीवन की उत्पत्ति जल में हुई है. पानी के बिना जीवन संभव नहीं, इसीलिए कहते हैं ‘जल ही जीवन है.’ जल दिवस 22मार्च को मनाया जाता है. इसके पहले 14मार्च को दुनिया में ‘एक्शन फॉर रिवर्स दिवस’ मनाया गया है. नदियाँ पेयजल उपलब्ध कराती हैं, खेती में सहायक हैं और ऊर्जा भी प्रदान करती हैं.

इन दिवसों का उद्देश्य विश्व के सभी देशों में स्वच्छ एवं सुरक्षित जल की उपलब्धता सुनिश्चित कराना है. साथ ही जल संरक्षण के महत्व पर भी ध्यान केंद्रित करना है. दुनिया यदि चाहती है कि 2030तक हर किसी तक स्वच्छ पेयजल और साफ़-सफ़ाई की पहुँच सुनिश्चित हो, जिसके लिए एसडीजी-6लक्ष्य को प्राप्त करना है, तो हमें चार गुना तेज़ी से काम करना होगा.

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चीन का नियंत्रण

हाल के वर्षों में चीन का एक बड़ी आर्थिक-सामरिक शक्ति के रूप में उदय हुआ है. जल संसाधनों की दृष्टि से भी वह महत्वपूर्ण शक्ति है. दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में बहने वाली सात महत्वपूर्ण नदियों पर चीन का प्रत्यक्ष या परोक्ष नियंत्रण है. ये नदियाँ हैं सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र, इरावदी, सलवीन, यांगत्जी और मीकांग. ये नदियां भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार, लाओस और वियतनाम से होकर गुजरती हैं.

पिछले साल, पाकिस्तान और नाइजीरिया में आई बाढ़, या अमेजन और ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी आग से पता लगता है कि पानी का संकट हमारे जीवन को पूरी तरह उलट देगा. हमारे स्वास्थ्य, हमारी सुरक्षा, हमारे भोजन और हमारे पर्यावरण को ख़तरे में डाल देगा.

साझा समस्याएं

पानी की भूमिका जब इतनी व्यापक है, तब स्वाभाविक रूप से राजनीतिक जीवन में उसकी भूमिका को खोजने की जरूरत है. पानी के इस्तेमाल और संरक्षण को लेकर भारत के नेपाल, बांग्लादेश, चीन और भूटान के साथ अनिवार्य रिश्ते हैं, क्योंकि हम पड़ोसी हैं. हमारे पानी के साझा प्राकृतिक-स्रोत हैं और उनसे जुड़ी समस्याएं भी साझा हैं. हम चाहें, तो तमाम समस्याओं के समाधान मिल-जुलकर कर सकते हैं.

दक्षिण एशिया की तीन सबसे महत्वपूर्ण नदियाँ, सिंध, गंगा और ब्रह्मपुत्र अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को पार करके बहती हैं. दो या तीन देशों में नदियों का विस्तार समस्याएं पैदा करता है. सब कुछ नकारात्मक ही नहीं है. सकारात्मक गतिविधियाँ और संभावनाएं भी हैं. मसलन भारत के नेपाल, भूटान और बांग्लादेश के साथ पानी के सदुपयोग और उससे बिजली तैयार करने के समझौते हैं. पनबिजली परियोजनाएं पर्यावरण हितैषी होने के अलावा पानी के प्रबंधन में भी सहायक होती हैं.

समस्याओं के अतिशय राजनीतिकरण के कारण समाधान के रास्तों में अड़ंगे हैं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जल से जुड़ी तमाम संधियाँ हैं. संयुक्त राष्ट्र के संधारणीय विकास के 2030के लक्ष्यों में पानी की उपलब्धि भी एक लक्ष्य है, पर अभी तक कोई ऐसी वैश्विक व्यवस्था नहीं नजर नहीं आती है, जो समाधान पेश करे.

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भारत-पाकिस्तान

वैश्विक विसंगतियों की कल्पना करने के पहले हम अपने आसपास देखेंगे, तो दुनिया की कहानी समझ में आएगी. भारत ने पाकिस्तान को नोटिस दिया है कि हमें सिंधुजल संधि में बदलाव करना चाहिए, ताकि विवाद ज्यादा न बढ़ने पाए. 25जनवरी को दिए गए इस नोटिस में 90दिन का समय दिया गया है. 24अप्रेल को यह समय पूरा होगा.

उसके आगे क्या होगा, यह समय बताएगा, पर इतना तय है कि पानी के सवाल जल्दी तय होने वाले नहीं हैं. इस मसले ने पानी के सदुपयोग से ज्यादा राजनीतिक-पेशबंदी की शक्ल अख्तियार कर ली है. पाकिस्तान में इस बात का शोर है कि भारत हमारे ऊपर पानी के हथियार का इस्तेमाल कर रहा है, जबकि भारत में माना जा रहा है कि हमने पाकिस्तान को बहुत ज्यादा रियायतें और छूट दे रखी हैं, उन्हें खत्म करना चाहिए.

भारतीय संसद की एक कमेटी ने 2021में सुझाव दिया था कि इस संधि की व्यवस्थाओं पर फिर से विचार करने और तदनुरूप संशोधन करने की जरूरत है. उससे पहले जम्मू-कश्मीर विधानसभा भी इस आशय के प्रस्ताव पास कर चुकी थी. कुल मिलाकर पाकिस्तान को उसकी आतंकी गतिविधियों का सबक सिखाने की माँग लगातार की जा रही है. 

नदियों के पानी के बँटवारे के विवाद भारत और पाकिस्तान के आंतरिक राज्यों के बीच भी हैं, पर वे विवाद अंतरराष्ट्रीय विवाद नहीं बनते, पर पानी के महत्व को रेखांकित करते हैं. भारत में जल विवादों के हल के लिए न्यायाधिकरण भी है, फिर भी विवादों का हल नहीं निकल पाए हैं. पाकिस्तान में भी पंजाब और दूसरे राज्यों के बीच पानी के बँटवारे को लेकर झगड़े हैं.

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भारत-नेपाल

एक अमेरिकी एजेंसी की स्टडी के अनुसार नेपाल के पास 40,000मेगावॉट से ज्यादा पनबिजली की क्षमता है. इस क्षमता का पूरा इस्तेमाल किया जाए तो इससे न सिर्फ नेपाल की बिजली की मांग पूरी होगी. बल्कि बची हुए बिजली को दक्षिण एशिया के पड़ोसी देशों को निर्यात भी किया जा सकेगा. यह काम भारत की सहायता से हो सकता है, पर भारत और नेपाल के बीच जल-संसाधनों के इस्तेमाल को लेकर विवाद हैं.

दोनों देशों के बीच महाकाली, अपर करनाली और अरुण पनबिजली परियोजनाओं के समझौते हैं. पिछले साल मई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेपाल के लुंबिनी गए थे. उस दौरान भारत और नेपाल के बीच छह समझौते हुए जिनमें पनबिजली परियोजनाएं प्रमुख रहीं.

बदलती धारा

नदियाँ अक्सर अपना रास्ता भी बदलती हैं. नेपाल और भारत से होकर बहने वाली कई नदियों के साथ ऐसा है. उनके रास्ता बदलने से भी कई प्रकार की समस्याएं जन्म लेती हैं. उत्तरी बिहार से होकर गुजरने वाली कोसी नदी नेपाल से उतरती है. वह रास्ता भी बदलती है और करीब-करीब हर साल इसमें बाढ़ आती है. हर साल नेपाल से पीना छोड़ने की शिकायतें आती हैं.

ऐसी ही समस्या नारायणी या गंडक नदी की है. क़रीब 200साल पहले इस नदी को दोनों देशों की सीमा के तौर पर निर्धारित किया गया था. नदी के पूर्वी भाग को एक देश का अधिकार क्षेत्र मान लिया गया और पश्चिमी भाग को दूसरे देश का. कालांतर में नदी ने अपना रास्ता बदलना शुरू किया और कुछ साल में वह पूर्वी इलाक़े के भीतर की तरफ बहने लगी.

पूर्वी छोर का एक इलाक़ा धीरे-धीरे नदी के पश्चिमी छोर पर आ गया और दोनों देशों के बीच सीमा विवाद पैदा हो गया जो अनसुलझा है. दोनों देशों के बीच सीमा विवाद में फँसा हुआ इलाक़ा है सुस्ता, जिस पर नेपाल और भारत दोनों ही दावा करते हैं. एक समय सुस्ता के लोग फसलें उगाया करते थे. लेकिन सीमा विवाद के चलते अब वहां कोई खेती नहीं होती.

ऐसा ही एक और विवाद सिकटा परियोजना से जुड़ा है, जहाँ नेपाल एक नहर का निर्माण कर रहा है. श्रावस्ती के सिधाई में एक नया तटबंध भी बनाया जा रहा है. इसके जरिए बाढ़ के समय राप्ती नदी की दिशा भारत की ओर मोड़ने की कोशिश है. इससे नेपाल के साथ नया जल विवाद पैदा हो सकता है.

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भारत-बांग्लादेश

भारत और बांग्लादेश दशकों से नदी जल को लेकर आमने-सामने रहे हैं. तीस्ता और गंगा के पानी के बँटवारे को लेकर लंबे समय से विवाद चला आ रहा है. इन दोनों ही नदियों के पानी पर मछुआरों, किसानों और नाविकों की जिंदगियां टिकी हुई हैं.

1996में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा और बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना ने 1996में एक समझौते पर दस्तखत किए थे. तीस्ता के जल को लेकर कोई संधि नहीं हुई है, जो 1986से दोनों देशों के बीच मतभेद और विवाद की वजह बनी हुई है.

एक संधि के जरिए दोनों देशों को कुछ फीसदी पानी देने पर सहमति बन गई थी, लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के पीछे हट जाने से संधि नहीं हो सकी है. इस दौरान दोनों देशों के बीच कुशियारा नदी जल संधि हुई है, जो सकारात्मक कदम है.

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भारत-चीन

लद्दाख में पिछले तीन साल से जारी तनाव के बीच चीन ने हिमालयी क्षेत्र में पानी की जंग छेड़ने की कोशिश की है. जवाब में भारत ने भी अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाने की घोषणा की है. तिब्बत से निकलने वाली ब्रह्मपुत्र नदी पर (जिसे तिब्बत में यारलुंग जांगबो कहते हैं) भारत की सीमा के पास चीन बाँध बना रहा है. इससे आशंका है कि पूर्वोत्तर के राज्यों और बांग्लादेश में सूखे के हालात पैदा हो सकते हैं.

खबरें यह भी हैं कि चीन ने ब्रह्मपुत्र नदी की सहायक जियाबुकू का पानी रोक दिया है. इस नदी पर भी चीन जल विद्युत परियोजना पर काम कर रहा था, जो 2019में पूरी भी हो गई है.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पानी के उपयोग को लेकर कई संधियां हैं. पानी के उपभोग को लेकर 1997में हुई संयुक्त राष्ट्र की संधि दो या इससे ज्यादा देशों में बहने वाली नदी के प्रवाह के प्रबंध की व्यवस्थाएं हैं. चीन ने इस संधि को स्वीकार नहीं किया है. चीन और भारत दोनों ने ही इसपर हस्ताक्षर नहीं किए हैं.

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भूटान में सहयोग

जल संसाधनों के बेहतर इस्तेमाल में केवल दो देशों की राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के कारण ही अड़ंगा नहीं लगता है. सहयोग की मंशा होने के बावजूद कई बार परिस्थितियाँ साथ नहीं देतीं. ऐसा ही एक उदाहरण भारत-भूटान सहयोग से जुड़ा है.भारत की सहायता से निर्मित मंगदेछु जलविद्युत परियोजना को सिविल इंजीनियरिंग में उत्कृष्टता के लिए 2020 का ब्रुनेल पदक से सम्मानित किया गया.

यह पुरस्कार ब्रिटेन के इंस्टीट्यूट ऑफ सिविल इंजीनियर्स ने प्रदान किया। इस परियोजना पर 4,500करोड़ रुपये की लागत आयी थी, जिसमें भारत ने 70प्रतिशत ऋण और 30प्रतिशत अनुदान के माध्यम से वित्त पोषण किया.17 अगस्त, 2019 को अपनी भूटान की यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 720 मेगावॉट की मंगदेछु जलविद्युत परियोजना का उद्घाटन किया था. 

द्विपक्षीय सहयोग के सबसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक ‘पनबिजली विकास’ के महत्त्व को भारत एवं भूटान दोनों ने पहचाना है और जलविद्युत परियोजनाओं के विकास पर काफी बल दिया है।भारत ने भूटान में चुखा, कुरिछू, ताला और मंगदेछु परियोजना पर काम किया है. जून 2020 में खोलांगछू नदी पर परियोजना से जुड़े एक समझौते पर दस्तखत हुए थे.

पंद्रह साल पहले भूटान ने अपनी पनबिजली क्षमता को 2020तक बढ़ाकर 10,000मेगावॉट तक करने का निश्चय किया था. इस कार्यक्रम के तहत पुनात्सांगछू-1और पुनात्सांगछू-2जैसी विशाल परियोजनाओं पर भी काम चल रहा है, पर वे समय से काफी पीछे हैं.

( लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं )

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