– इमान सकीना
इस्लामी जीवन-दृष्टि में नैतिकता केवल एक सामाजिक आवश्यकता नहीं, बल्कि ईश्वर से संबंध का अनिवार्य प्रतिबिंब है. इस्लाम की नींव में नैतिकता और सदाचार गहराई से समाहित हैं, जो न केवल धार्मिक अनुष्ठानों को दिशा देते हैं, बल्कि व्यक्ति के सामाजिक, राजनीतिक और व्यक्तिगत जीवन को भी गहराई से प्रभावित करते हैं.
इस्लाम एक ऐसा व्यापक नैतिक ढाँचा प्रस्तुत करता है जो आध्यात्मिकता और व्यवहारिकता को एकसूत्र में बाँधता है, जहाँ नैतिकता केवल बाहरी आचरण नहीं, बल्कि आंतरिक ईमानदारी और ईश्वर-चेतना की अभिव्यक्ति बन जाती है.
कुरान इस नैतिक दृष्टिकोण का केंद्रीय स्रोत है, जो सत्य, न्याय, करुणा, धैर्य और विनम्रता जैसे मूल्यों को बार-बार दोहराता है. यह न केवल व्यक्तिगत शुद्धता पर बल देता है, बल्कि सामाजिक जीवन में भी निष्पक्षता और भलाई के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है.
जैसे कि अल्लाह का आदेश है:"निश्चय ही, अल्लाह तुम्हें न्याय पर कायम रहने, भलाई करने और रिश्तेदारों को दान देने का आदेश देता है; और वह अनैतिकता, बुरे आचरण और अत्याचार से मना करता है..." (सूरह अन-नहल 16:90)
सुन्नत—पैगंबर मुहम्मद (सल्ल॰) का जीवन और व्यवहार—इस्लामी नैतिकता का सजीव उदाहरण प्रस्तुत करता है. उनके जीवन की हर बात—चाहे वह ईमानदारी हो, विनम्रता हो या दया—ऐसे व्यवहार का आदर्श बन गई जो एक नैतिक समाज के निर्माण के लिए आवश्यक है. उनकी सत्यनिष्ठा के कारण उन्हें 'अल-अमीन' (विश्वसनीय) कहा जाता था, यह उस समय की गवाही है जब वे अभी पैगंबर घोषित नहीं हुए थे.
फ़ितरा, अर्थात् मानव का जन्मजात स्वभाव, इस्लामी विचारधारा में इस सच्चाई की पुष्टि करता है कि हर इंसान अच्छाई की ओर झुकाव के साथ जन्म लेता है. कुरान कहता है:"अतः अपना मुख धर्म की ओर करो, सत्य की ओर झुके रहो. अल्लाह के उस फ़ित्रत पर अडिग रहो जिस पर उसने [सभी) लोगों को पैदा किया है." (सूरह अर-रूम 30:30)
यह भावना धार्मिक शिक्षाओं से और परिपक्व होती है, जिससे मनुष्य ईश्वरीय मार्गदर्शन के अनुसार जीवन जीने में सक्षम होता है.समय के साथ नैतिक प्रश्न बदलते हैं, लेकिन इस्लाम का इज्तिहाद का सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि कुरान और सुन्नत के आलोक में नए युग की जटिलताओं का समाधान किया जा सके.
विद्वान तर्क और नैतिक विवेक के आधार पर आधुनिक दुविधाओं का उत्तर तलाशते हैं, जिससे इस्लाम एक जीवंत और प्रासंगिक मार्गदर्शक बना रहता है.
इस्लामी नैतिकता के मूल सिद्धांतों में सबसे प्रमुख है न्याय (अदल). इस्लाम में न्याय केवल एक सामाजिक मूल्य नहीं, बल्कि एक ईश्वरीय आदेश है. मुसलमानों को आदेश दिया गया है कि वे सत्य और न्याय के पक्ष में खड़े हों, भले ही वह उनके अपने या उनके प्रियजनों के खिलाफ ही क्यों न हो. (सूरह अन-निसा 4:135)
करुणा और दया (रहमा) इस्लामी नैतिकता का हृदय हैं। कुरान ईश्वर को बार-बार अर-रहमान और अर-रहीम के रूप में प्रस्तुत करता है और मानवता से अपेक्षा करता है कि वे भी इसी दया का अनुकरण करें—चाहे वह माता-पिता, पड़ोसी, अनाथ या पशु ही क्यों न हों. कुरान की घोषणा है: "और मेरी दया हर चीज़ को घेरे हुए है." (सूरह अल-अराफ़ 7:156)
ईमानदारी और सच्चाई (सिदक़) वह आधार हैं जिस पर समाज में विश्वास टिका होता है. पैगंबर ने स्पष्ट किया कि झूठ पाप की ओर ले जाता है और पाप नरक की ओर. वहीं, सत्य पर चलना इंसान को भलाई और अंततः स्वर्ग की ओर ले जाता है. कुरान में स्पष्ट आदेश है: "ऐ ईमान वालों! अल्लाह से डरो और सच्चे लोगों के साथ रहो." (सूरह अत-तौबा 9:119)
हया, अर्थात् शालीनता और संकोच, इस्लामी आचरण में एक विशिष्ट स्थान रखता है. यह केवल शारीरिक व्यवहार तक सीमित नहीं, बल्कि विचारों, वाणी, दृष्टि और संबंधों में भी आत्म-संयम और सम्मान की भावना को दर्शाता है. कुरान आदेश देता है कि पुरुष और स्त्रियाँ अपनी निगाहें नीची रखें और शील की रक्षा करें. (सूरह अन-नूर 24:30-31)
जवाबदेही इस्लाम की नैतिकता का एक और आधारस्तंभ है. तक़वा (ईश्वर-चेतना) और एहसान (सर्वोत्तम आचरण) जैसे सिद्धांत इंसान को यह याद दिलाते हैं कि उसका हर कर्म दर्ज हो रहा है और अंतिम न्याय में प्रस्तुत किया जाएगा,"जो कोई कण भर भी अच्छाई करेगा, वह उसे देखेगा; और जो कोई कण भर भी बुराई करेगा, वह उसे देखेगा." (सूरह अज़-ज़लज़ला 99:7-8)
इस्लामी नैतिकता केवल सैद्धांतिक बातों तक सीमित नहीं, बल्कि यह रोज़मर्रा के जीवन में गहराई से व्याप्त है. व्यापार में ईमानदारी, नाप-तौल में न्याय और शोषण से परहेज़ एक मुसलमान की पहचान है. पारिवारिक जीवन में आपसी सम्मान, धैर्य और जिम्मेदारी को विशेष महत्व दिया गया है.
सामाजिक जीवन में, मुसलमानों से अपेक्षा की जाती है कि वे ज़रूरतमंदों की मदद करें, अत्याचार के खिलाफ खड़े हों और शांति व सह-अस्तित्व को बढ़ावा दें. राजनीतिक और प्रशासनिक दृष्टि से, इस्लाम शासकों को न्यायपूर्ण नेतृत्व, पारदर्शिता और जनहित को सर्वोच्च रखने की प्रेरणा देता है.
आधुनिक युग में, जहाँ जैव-नैतिकता, पर्यावरणीय संकट और सामाजिक अन्याय जैसे मुद्दे चुनौती बनकर खड़े हैं, इस्लामी नैतिकता शाश्वत मार्गदर्शन प्रदान करती है. कुरान की ख़िलाफ़त की अवधारणा पर्यावरण संरक्षण की प्रेरणा देती है, तो वहीं न्याय और समानता पर आधारित सिद्धांत मानवाधिकारों की बहस में भी दृढ़ता से गूँजते हैं.
इस्लामी नैतिकता, दरअसल, एक जीवंत परंपरा है—जो हर काल और परिस्थिति में इंसान को एक बेहतर, संतुलित और ईश्वर-सम्मुख जीवन जीने की राह दिखाती है. यह केवल जीवन के बाहरी स्वरूप को नहीं, बल्कि आंतरिक आत्मा को भी प्रकाशमान करती है.