मलिक असगर हाशमी
भारतीय विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में दो ऐसे व्यक्तित्व जिन्होंने अपने समय से कई कदम आगे जाकर देश को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया, वे थे डॉ. विक्रम साराभाई और डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम. दोनों न केवल वैज्ञानिक थे, बल्कि दूरदर्शी नेता भी थे जिन्होंने भारत को आत्मनिर्भरता और वैज्ञानिक श्रेष्ठता की ओर अग्रसर किया.
इन दोनों महान व्यक्तियों के बीच का संबंध केवल शिक्षक-शिष्य का नहीं था, बल्कि यह एक ऐसे मार्गदर्शन और प्रेरणा की कहानी है जिसने भारतीय अंतरिक्ष और रक्षा अनुसंधान की दिशा को स्थायी रूप से आकार दिया.
प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि
डॉ. विक्रम साराभाई का जन्म 1919 में एक विद्वान परिवार में हुआ था. बचपन से ही उनकी शिक्षा और वैज्ञानिक जिज्ञासा ने उन्हें असाधारण बनाया. उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा प्राप्त की, जहाँ उन्होंने विज्ञान की नवीनतम प्रगति को समझा और भारत को इन तकनीकों से लाभान्वित करने का संकल्प लिया. उनका जीवन सीखने और अन्वेषण के लिए समर्पित था.
वहीं दूसरी ओर, डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का जन्म तमिलनाडु के रामेश्वरम में एक साधारण परिवार में हुआ था. उन्होंने अपनी शिक्षा में कभी बाधा नहीं आने दी और बचपन से ही ज्ञान की प्यास और दृढ़ संकल्प से भरे थे. मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त करने के बाद उनका ध्यान भारत के नवजात अंतरिक्ष अनुसंधान कार्यक्रम की ओर गया.
पहली मुलाकात: नियति का अद्भुत खेल
डॉ. कलाम और डॉ. साराभाई की पहली मुलाकात एक आकस्मिक अवसर थी. टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च के प्रोफेसर एमजीके मेनन ने बैंगलोर में डॉ. कलाम के काम को देखा और उन्हें INCOSPAR (भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति) में रॉकेट इंजीनियर के पद के लिए साक्षात्कार के लिए बुलाया.
इस साक्षात्कार के दौरान डॉ. विक्रम साराभाई से उनका सामना हुआ.यह मुलाकात अप्रत्याशित थी और डॉ. कलाम पूरी तरह से तैयार नहीं थे, लेकिन डॉ. साराभाई, प्रोफेसर मेनन और परमाणु ऊर्जा आयोग के उप सचिव श्री सराफ ने साक्षात्कार के दौरान एक सकारात्मक और प्रेरणादायक माहौल बनाया.
डॉ. साराभाई ने डॉ. कलाम के वर्तमान ज्ञान से अधिक उनके विचारों, दृष्टिकोण और विकास की संभावनाओं को समझने में रुचि दिखाई. यह उनका एक दूरदर्शी और मानवीय नेतृत्व का परिचायक था, जिसने युवा कलाम के दिल और दिमाग दोनों को छू लिया.
डॉ. विक्रम साराभाई के नेतृत्व गुण: डॉ. कलाम का दृष्टिकोण
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने अपने जीवन और कार्यकाल में डॉ. विक्रम साराभाई के चार प्रमुख नेतृत्व गुणों को पहचाना, जो किसी भी संगठन के सबसे कनिष्ठ सदस्य को भी प्रेरित कर सकते थे:
सुनने के लिए तत्परता
डॉ. साराभाई ने युवाओं पर भरोसा किया और उनके विचारों को महत्व दिया. उन्होंने अपने अधीनस्थों को आत्मविश्वास दिया कि वे एक बड़ी टीम का हिस्सा हैं और उनमें नेतृत्व की क्षमता है. यह गुण भारतीय नेतृत्व की एक अनूठी विशेषता था, जो नवाचार और सहयोग को बढ़ावा देता था.
रचनात्मक सोच
साराभाई की दूरदर्शिता अद्भुत थी. वे दो असंबंधित विचारों को जोड़कर नई तकनीकी संभावनाओं का सृजन करते थे. उनका उद्देश्य कभी किसी देश की नकल नहीं करना, बल्कि जीवन की वास्तविक समस्याओं का समाधान खोजने के लिए प्रौद्योगिकी का विकास करना था.
उन्होंने भारत को उपग्रह प्रक्षेपण यान और RATO जैसी प्रणालियाँ विकसित करने का मार्ग दिखाया, जो न केवल तकनीकी बल्कि सैन्य दृष्टि से भी महत्वपूर्ण थीं.
टीम बनाने की क्षमता
डॉ. साराभाई को सही व्यक्ति चुनने की कला आती थी. वे टीम के सदस्यों का मनोबल बढ़ाते और असफलता के क्षणों में भी आशा और हास्य का संचार करते. उन्होंने कलाम जैसे युवा वैज्ञानिकों को प्रेरित किया कि वे अपनी पूरी क्षमता के साथ काम करें.
असफलता से परे देखना
जब डॉ. कलाम और उनकी टीम SLV (सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) के लिए जेटीसन प्रणाली के परीक्षण में असफल हुए, तो डॉ. साराभाई ने इसके पीछे गहरी समस्याओं को समझा और इसे सुधारने के लिए नई योजनाएँ बनाईं. उन्होंने थुंबा में रॉकेट इंजीनियरिंग विभाग की स्थापना की, जो भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की रीढ़ साबित हुआ.
मार्गदर्शन से नेतृत्व तक: डॉ. साराभाई का कलाम पर प्रभाव
डॉ. कलाम के अनुसार, डॉ. साराभाई उनके लिए केवल एक गुरु नहीं, बल्कि एक मार्गदर्शक और प्रेरणा स्रोत थे. उनके मार्गदर्शन में कलाम ने न केवल वैज्ञानिक कौशल सीखे, बल्कि जीवन के विभिन्न पहलुओं में संतुलन बनाना भी सीखा.
उनके बीच गहरा बौद्धिक और भावनात्मक संबंध था. साराभाई ने युवा कलाम को खुलकर सवाल पूछने, असफलताओं से सीखने और अपने सपनों को पूरा करने का उत्साह दिया. संकट के समय, डॉ. साराभाई ने कलाम का साथ दिया, उनकी प्रगति को प्रोत्साहित किया और सही दिशा दिखाने में मदद की.
विज्ञान और अध्यात्म का संगम: एक अनूठी कहानी
डॉ. कलाम ने एक घटना साझा की जो इस रिश्ते की गहराई को दर्शाती है. एक दिन चेन्नई के समुद्र तट पर एक व्यक्ति गीता का पाठ कर रहा था. एक युवक, जो विज्ञान का छात्र था, उसने उस व्यक्ति से पूछा कि वह ऐसी 'अवैज्ञानिक' किताब क्यों पढ़ता है जबकि लोग चंद्रमा तक जा रहे हैं.
उस व्यक्ति ने मुस्कुराकर कहा कि गीता में भी असीम शांति और ज्ञान है. उस युवक ने बाद में जाना कि वह व्यक्ति कोई और नहीं, बल्कि डॉ. विक्रम साराभाई थे. इस घटना से डॉ. कलाम का जीवन दर्शन भी प्रभावित हुआ और उन्होंने गीता को विज्ञान की उत्कृष्ट पुस्तक माना.
यह घटना केवल व्यक्तिगत नहीं थी, बल्कि यह दोनों महान वैज्ञानिकों के बीच ज्ञान, आध्यात्मिकता और विज्ञान के समन्वय को दर्शाती है.
भारतीय विज्ञान के इतिहास में उनका योगदान
डॉ. साराभाई ने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की नींव रखी और देश को वैज्ञानिक क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने का मार्ग प्रशस्त किया. उनकी दूरदर्शिता ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान को न केवल राष्ट्रीय स्तर पर बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी प्रतिष्ठित किया.
डॉ. कलाम ने इस विरासत को आगे बढ़ाते हुए मिसाइल विकास और रक्षा क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित किए. उनका समर्पण और नवाचार ने भारत को परमाणु और मिसाइल शक्ति के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर स्थापित किया.
डॉ. विक्रम साराभाई और डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का संबंध केवल गुरु-शिष्य का नहीं था, बल्कि यह एक ऐसी साझेदारी थी जिसने भारत के विज्ञान और प्रौद्योगिकी के भविष्य को आकार दिया. उनकी दूरदर्शिता, नेतृत्व, और अनूठी सोच ने देश को आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ाया और नई पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने.
दोनों महान वैज्ञानिकों ने दिखाया कि कैसे ज्ञान, विश्वास और प्रेरणा के माध्यम से हम न केवल अपने सपनों को पूरा कर सकते हैं, बल्कि पूरे राष्ट्र के भविष्य को उज्जवल बना सकते हैं. आज जब हम भारत की वैज्ञानिक प्रगति को देखते हैं, तो हमें इस रिश्ते की गहराई और इसके योगदान को याद रखना चाहिए.