आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) अब सिर्फ सिलिकॉन वैली का कोई जुमला नहीं रह गया है. यह हमारे रोज़मर्रा के जीवन को उस तरह से बदल रहा है जिसकी कल्पना भी दस साल पहले मुश्किल थी. ग्राहक सेवा में चैटबॉट से लेकर मेडिकल रिपोर्ट पढ़ने वाले एल्गोरिद्म तक, AI उन क्षेत्रों में भी प्रवेश कर चुका है जिन्हें कभी इंसानों के लिए सुरक्षित माना जाता था. और इसी के साथ एक बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है,कौन सी नौकरियाँ खतरे में हैं ?
सबसे पहले असर उन नौकरियों पर दिख रहा है जिनमें दोहराव होता है. ग्राहक सेवा कॉल्स अब बॉट्स से हल की जा रही हैं, सुपरमार्केट में सेल्फ-चेकआउट सिस्टम आ गए हैं, और सड़कों पर ड्राइवरलेस ट्रकों की टेस्टिंग हो रही है ताकि ड्राइवरों पर निर्भरता कम हो सके.
लेकिन सफेदपोश (white-collar) नौकरियाँ भी इससे अछूती नहीं हैं. AI अब कानूनी कॉन्ट्रैक्ट बना सकता है, बैलेंस शीट का विश्लेषण कर सकता है और रिपोर्ट्स तैयार कर सकता है,वो भी एक इंसान से कहीं तेज़.
ऑक्सफोर्ड के शोधकर्ताओं कार्ल फ्री और माइकल ऑसबोर्न ने कभी अनुमान लगाया था कि अमेरिका की लगभग 47% नौकरियाँ ऑटोमेट की जा सकती हैं. वहीं, Goldman Sachs का कहना है कि AI अमेरिकी वर्कफोर्स के 6–7% को प्रभावित कर सकता है, जबकि वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (2025) का अनुमान है कि दुनियाभर में लगभग 90 लाख नौकरियाँ खत्म होंगी, लेकिन 1.1 करोड़ नई नौकरियाँ भी पैदा होंगी.
हालांकि, यह सिर्फ जगह लेने की कहानी नहीं है. AI कई क्षेत्रों में नए अवसर भी ला रहा है,जैसे हेल्थकेयर टेक्नोलॉजी, साइबरसिक्योरिटी और उन्नत मैन्युफैक्चरिंग. McKinsey का अनुमान है कि AI साल 2030 तक विश्व स्तर पर 5 करोड़ नई नौकरियाँ ला सकता है, खासकर वहाँ जहाँ मशीनों की निगरानी के लिए इंसानी हस्तक्षेप जरूरी है.
वहीं, हार्वर्ड रिसर्च के अनुसार, लगभग आधी एंट्री-लेवल सफेदपोश नौकरियाँ AI से खतरे में हैं.कुछ पेशे ऐसे हैं जो अभी भी मानवीय बने हुए हैं. शिक्षक AI की मदद से पर्सनलाइज्ड लर्निंग दे सकते हैं, लेकिन छात्रों को अब भी उनकी ज़रूरत है.
डॉक्टर तेज़ डायग्नोसिस के लिए AI का उपयोग करते हैं, लेकिन मरीज़ के बिस्तर पर मानव करुणा की कोई मशीन बराबरी नहीं कर सकती. अधिकतर मामलों में AI इंसान का विकल्प नहीं है, बल्कि एक ऐसा औज़ार है जो इंसान का काम करने का तरीका बदलता है.
असल चिंता पूरी बेरोज़गारी की नहीं, बल्कि "स्किल मismatch" की है. OECD ने "जॉब पोलराइज़ेशन" को लेकर चेतावनी दी है,जहाँ मिड-स्किल की नौकरियाँ खत्म होती जा रही हैं और सिर्फ या तो कम वेतन वाली मैनुअल जॉब्स या फिर उच्च-तकनीकी जॉब्स बच रही हैं.
Harvard Gazette ने हाल ही में बताया कि कानून, कंसल्टिंग और फाइनेंस जैसे क्षेत्रों की एंट्री-लेवल नौकरियाँ बड़ी संख्या में या तो बदलेगी या पूरी तरह से खत्म हो सकती हैं. यदि समय रहते रीस्किलिंग कार्यक्रम नहीं शुरू किए गए, तो यह बदलाव असमानता को और बढ़ा सकता है.
आने वाले वर्षों में निरंतर प्रशिक्षण लोगों के लिए विकल्प नहीं, आवश्यकता बन जाएगा.इतिहास गवाह है कि तकनीक नौकरियाँ पूरी तरह से नहीं मिटाती,वह उन्हें बदल देती है. AI भी यही करेगादोहराव वाले काम अपने ज़िम्मे लेगा और रचनात्मकता, सहानुभूति और नेतृत्व की ज़रूरत वाले क्षेत्रों में नई भूमिकाएँ पैदा करेगा.
असली चुनौती यह है कि समाज इस बदलाव के लिए कितनी जल्दी और कैसे तैयार होता है. अगर सरकारें, कंपनियाँ और आम लोग सही तैयारी करें, तो AI एक ऐसा साथी बन सकता है जो इंसानों को रोज़मर्रा की थकाऊ ज़िम्मेदारियों से मुक्त कर नए अवसरों की ओर ले जाए.
लेकिन अगर इस बदलाव को नजरअंदाज़ किया गया, तो यह असमानता को और गहरा कर सकता है और लाखों लोगों को पीछे छोड़ सकता है.तकनीक तेज़ी से आगे बढ़ रही है. अब सवाल यह है,क्या हम भी उतनी ही तेज़ी से आगे बढ़ सकते हैं ?