इस प्रदर्शन में विभिन्न विचारधाराओं, धार्मिक समूहों, छात्र संगठनों, नागरिक समाज कार्यकर्ताओं और राजनीतिक नेताओं की व्यापक भागीदारी रही, जिसने इसे और अधिक प्रभावशाली बना दिया.
प्रदर्शनकारियों ने स्पष्ट कहा कि गाजा पर सैन्य या राजनीतिक नियंत्रण स्थापित करने की इजरायली योजना न केवल अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है, बल्कि पहले से गंभीर मानवीय संकट को और भयावह बना देगी.
इस विरोध में शामिल लोग अलग-अलग सामाजिक और धार्मिक पृष्ठभूमियों से थे, लेकिन सबका संदेश एक ही था – न्याय, शांति और मानवाधिकारों की रक्षा, बड़ी संख्या में छात्रों, शिक्षाविदों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और महिलाओं ने भागीदारी की.
वक्ताओं ने इस बात पर ज़ोर दिया कि फिलिस्तीन के साथ एकजुटता केवल मुस्लिम समाज तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हर उस व्यक्ति की जिम्मेदारी है जो शांति और मानवता में विश्वास रखता है.
गाजा की भयावह स्थिति पर प्रकाश डालते हुए प्रदर्शनकारियों ने बताया कि अक्टूबर 2023 से अब तक लगभग एक लाख फिलिस्तीनी, जिनमें महिलाएँ और बच्चे भी शामिल हैं, मारे जा चुके हैं। घरों, अस्पतालों, स्कूलों और शरणार्थी शिविरों को व्यवस्थित रूप से निशाना बनाया गया है.
गाजा की स्वास्थ्य सेवाएँ और साफ-सफाई व्यवस्था लगभग ध्वस्त हो चुकी हैं, जबकि नाकाबंदी के कारण भोजन, पानी और ईंधन की भीषण कमी है. उन्होंने चेताया कि यदि तत्काल कदम नहीं उठाए गए तो यह स्थिति अकाल का रूप ले सकती है.
प्रदर्शन के दौरान कई ठोस माँगें रखी गईं. इनमें अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा तत्काल युद्धविराम सुनिश्चित करना, गाजा में मानवीय गलियारे खोलना, भारत और विश्व शक्तियों द्वारा इजरायल की कार्रवाइयों की निंदा और सैन्य-रणनीतिक सहयोग समाप्त करना, इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय के गिरफ्तारी वारंट का समर्थन करना, संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव के अनुसार फिलिस्तीन को स्वतंत्र और संप्रभु राज्य का दर्जा दिलाने के प्रयास तेज करना और भारत द्वारा उत्पीड़ितों के समर्थन की अपनी परंपरा को निभाना शामिल हैं.
साथ ही नागरिक समाज से इजरायली उत्पादों के बहिष्कार और जागरूकता अभियानों को तेज करने की अपील भी की गई.वक्ताओं ने मुस्लिम देशों से भी आह्वान किया कि वे संयुक्त राज्य अमेरिका और इजरायल पर अधिकतम दबाव डालकर रक्तपात रोकने में निर्णायक भूमिका निभाएँ.
उन्होंने कहा कि नरसंहार जैसे अपराध के सामने चुप्पी अस्वीकार्य है और सरकारों, संस्थाओं तथा व्यक्तियों को अपनी नैतिक और संवैधानिक जिम्मेदारियों के अनुरूप कार्य करना चाहिए.
सभा को संबोधित करने वालों में जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के अध्यक्ष सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी, जमीयत उलमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना हकीमुद्दीन कासमी, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. अपूर्वानंद, प्रो. वी.के. त्रिपाठी, पूर्व राज्यसभा सांसद मोहम्मद अदीब, वरिष्ठ वकील लारा जयसिंह, एनएफआईडब्ल्यू महासचिव निशा सिद्धू, वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष रईसुद्दीन, एसआईओ के अध्यक्ष अब्दुल हफ़ीज़ और कई अन्य प्रमुख लोग शामिल थे.
सभी वक्ताओं ने गाजा की त्रासदी को रोकने के लिए त्वरित अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप की आवश्यकता पर बल दिया और भारत सरकार से अपील की कि वह अपनी नैतिक और ऐतिहासिक परंपरा के अनुरूप उत्पीड़ितों के पक्ष में खड़ी हो.दिल्ली का यह विरोध प्रदर्शन न केवल फिलिस्तीन के समर्थन में आवाज़ है बल्कि मानवता के पक्ष में एक सशक्त पुकार भी है.
India rises for Gaza
— Jamaat-e-Islami Hind (@JIHMarkaz) August 22, 2025
Thousands from all walks of life came together in the heart of India’s capital today, condemning Israel’s brutal plans for total control over Gaza and calling out the silence of global powers. With nearly 100,000 Palestinians killed since 2023 and Gaza on the… pic.twitter.com/FdTkAF9pRS
यह इस बात का प्रमाण है कि भारत में विभिन्न पृष्ठभूमि के लोग मिलकर शांति, न्याय और मानवीय गरिमा के लिए खड़े हो सकते हैं. संदेश साफ है – नरसंहार और दमन स्वीकार्य नहीं, और स्थायी समाधान केवल न्याय और शांति की स्थापना से ही संभव है.