हरजिंदर
बरखा बहार के दिनों में अक्सर ऐसा नहीं होता. उत्तर भारत के कईं हिस्सों में मानसून ने अभी तक दस्तक नहीं दी है. पिछले हफ्ते तक यहां कई जगह गर्म लू चल रही है और दिल्ली का तापमान तो 43डिग्री सेंटीग्रेट को पार कर गया है.
जुलाई में ऐसे तापमान अपवाद जरूर है लेकिन वैसे इतना तापमान भारत के लिए कोई नई बात नहीं है. लेकिन जब पारा इस उंचाई तक पहंुचता है तो जीना तो हर किसी के लिए दूभर हो जाता है,
लेकिन ठीक उसी समय जो अमेरिका और कनाडा में हुआ उसके सामने तो हमारे ये कष्ट बहुत मामूली ही लगते हैं. कनाडा के मशहूर शहर वैंकुवर में जो हुआ वह तो चैकाने वाला भी है और परेशान करने वाला भी. वैंकुअर में दिन का तापमान 47डिग्री सेंटीगे्रट को भी पार कर गया.
दिल्ली के लिए 43डिग्री का तापमान परेशान करने वाला हो सकता है, लेकिन वैंकुअर में जो हुआ उससे इसकी तुलना नहीं हो सकती. मई-जून में जब वैंकुअर सबसे गर्म होता है तो भी वहां अधिकतम तापमान 25डिग्री सेंटीग्रेट के आस-पास ही रहता है, जो भारत के किसी हिल स्टेशन से भी कम है जहां हम अक्सर गर्मी से राहत के लिए जाते हैं.
सर्दियों में तो इस शहर में न्यूनतम तापमान अक्सर शून्य से नीचे चला जाता है, न्यूनतम तापमान का वहां का रिकाॅर्ड -17डिग्री तक जाता है. ऐसे ठंडे शहर में जब गर्मियां आती हैं तो लोग उसका बांहे खोलकर स्वागत करते हैं.
लेकिन इस बार जून-जुलाई में कनाडा और खासकर वैंकुअर व ब्रिटिश कोलंबियां के आसमान से गर्मी ऐसी बरसी की लोग तौबा कर उठे. यही हाल कनाडा से लगे अमेरिका के वाशिंग्टन और ओरेगान का भी रहा.
कनाडा में ब्रिटिश कोलंबिया के एक गांव में तो तापमान 49.6डिग्री सेंटीग्रेट तक पहंुच गया. आमतौर पर वैज्ञानिक यह मानते हैं कि 50डिग्री सेंटीग्रेट से ज्यादा का तापमान अत्यंत घातक हो जाता है.
यह ऐसा तापमान है जिसमें लोगों के लिए जीना तक मुश्किल होने लगता है. तापमान ने भले ही इस सीमा को नहीं पार किया लेकिन उसने अमेरिका और कनाडा को दिन में तारे जरूर दिखा दिए.
हजारों लोग बीमार हुए. किसी की चमड़ी झुलस रही थी तो किसी को डीहाईड्रेशन हो रहा था, इस सबसे अचानक ही हाईपर टेनशन का शिकार होने वाले लोगों की संख्या भी कम नहीं थी. इन शहरों की सारी एंबुलेंस चैबीसों घंटे मरीजों को लाने और ले जाने में व्यस्त हो गईं,
अस्पतालों के सारे बिस्तर भर गए और एकबारगी लगा कि कुदरत का यह हमला कोविड-19के हमले से भी भयानक साबित होने वाला है. बेतहाशा गर्मी की वजह से वाशिंग्टन में 20लोगों की जान गई तो ओरेगान में 76लोगों की. कनाडा में तो मरने वालों की संख्या सैकड़ों में थी.
मौसम वैज्ञानिक अब इस बहस में उलझे हैं कि अचानक और बेतहाशा बढ़ गई इस गरमी को क्या नाम दिया जाए. इसे ग्लोबल वार्मिंग का नतीजा माना जाए या फिर मौसम की ऐसी अति माना जाए जो अपवाद स्वरूप कईं बार आ जाती है.
अचानक इतनी गर्मी क्यों बढ़ गई इसके लिए कईं तरह की थ्योरी भी सामने आ रही है. दूसरी तरफ पर्यावरण की बात करने वालों का कहना है कि निसंदेह यह मौसम की अति है, लेकिन मौसम के ऐसे अत्याचार पिछले कुछ समय में काफी ज्यादा बढ़ गए हैं जो दरअसल ग्लोबल वार्मिंग का ही एक नतीजा है.
अमेरिका और कनाडा के जिन शहरों में मौसम ने यह अति दिखाई उनके वाशिंदों के पास बेतहाशा गर्मी से निपटने का पिछला कोई अनुभव नहीं है. गर्मी से बचने के इन्फ्रास्ट्रक्चर न तो इन शहरों की संस्थाओं के पास हैं और न ही निजी तौर पर लोगों के पास.
अभी तक वहां इसकी जरूरत भी नहीं रही. जहां अधिकतम तापमान 25डिग्री से उपर जाता ही नहीं वहां भला कौन अपने घर में एयरकंडीश्नर लगवाएगा. यही कारण था कि लोगों का कष्ट कुछ ज्यादा ही बड़ा हो गया. जब अचानक ही गर्मी से लोगों की जान जाने लगी तो बहुत से लोगों को शहरों के उन आॅडीटोरियम और थियेटर वगैरह में जगह दी गई जहां एयरकंडीश्नर की व्यवस्था थी.
पर्यावरण को बचाने के लिए अभी तक विश्व स्तर पर जितने भी प्रयास चल रहे हैं उनमें मुख्य कोशिश कार्बन उत्सर्जन को घटाने की है ताकि ग्लोबल वार्मिंग की तेजी को कुछ थामा जा सके. हालांकि न ही यह काम कहीं भी पूरी गंभीरता से हो रहा और न ही ज्यादातर लोग ऐसा मानते हैं कि इससे सारी समस्या खत्म हो जाएगी.
लेकिन इन प्रयासें में इस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा कि अगर ग्लोबल वार्मिंग का असर सचमुच दिखने लगेगा तो इससे प्रभावित होने वाले लोगों को कैसे बचाया जाएगा या उन्हें कैसे तुरंत राहत दी जाएगी. इस गर्मी ने पश्चिमी देशों की राहत व्यवस्थाओं की पोल भी खोल दी है.
ऐसे स्थितियों से निपटने की तैयारी इन जगहों पर इसलिए भी नहीं थी कि वे माने बैठे थे कि अगर ग्लोबल वार्मिंग वास्तव में कभी आएगी भी तो इतने ठंडे इलाकों में वह सबसे बाद में पहंुचेगी. पहले तो उसका निशाना एशिया और अफ्रीका के देश ही होंगे.
ब्रिटिश पत्रिका द इकाॅनमिस्ट के ताजा अंक में एक लेख छपा है जिसमें यह कल्पना की गई है कि अगर ग्लोबल वार्मिंग 20साल बाद सन 2041में वास्तव में आ जाती है तो भारत के हैदराबाद जैसे शहर का क्या होगा ? हैदराबाद के लिए सन 2041की जो कल्पना की गई है वैसी स्थितियां तो पश्चिम जगत में आज ही दिखने लगी हैं.
अमेरिका और कनाडा में अचानक आन पड़ी बेतहाशा गर्मी ने यह तो बता दिया है कि ग्लोबल वार्मिंग के खतरे से कोई भी सुरक्षित नहीं है और यह खतरा सबसे पहले कहां दिखेगा इसकी कोई भविष्यवाणी भी नहीं की जा सकती.