गुलाम कादिर
भारतीय सेना अपनी पेशेवर क्षमता, धर्मनिरपेक्ष संरचना और विविधता के लिए जानी जाती है.लेकिन हाल के वर्षों में सोशल मीडिया और कुछ लेखों में एक प्रश्न बार-बार उठता रहा है —"भारतीय सेना में मुस्लिम रेजिमेंट क्यों नहीं है?" यह सवाल केवल जिज्ञासा नहीं, बल्कि कई बार राजनीतिक, सामाजिक और सांप्रदायिक रंग भी ले लेता है.
कुछ कथाओं के अनुसार, भारत में 1965 तक एक "मुस्लिम रेजिमेंट" मौजूद थी, जिसे बाद मेंभारतीय सेना से हटा दिया गया.इस दावे के पीछे कई घटनाओं का उल्लेख किया जाता है, जैसे 1947 में गोरखा सैनिकों की हत्या, मुस्लिम सैनिकों का पाकिस्तान चले जाना, और 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान एक कथित विद्रोह.लेकिन क्या इन घटनाओं का कोई ठोस ऐतिहासिक आधार है? आइए, तथ्यों के साथ इस पूरे मामले की गहराई से पड़ताल करें.
1. क्या भारतीय सेना में "मुस्लिम रेजिमेंट" थी?
ब्रिटिश काल में भारतीय सेना जाति, धर्म और क्षेत्र आधारित रेजिमेंटों में विभाजित थी.उस दौरान कुछ रेजिमेंटों में मुस्लिम सैनिकों का बहुलांश अवश्य था — जैसे129 बलूच रेजिमेंट, 5/13 फ्रंटियर फोर्स राइफल्सऔर10/14 पंजाब रेजिमेंट.
लेकिन ये “मुस्लिम रेजिमेंट” नाम से नहीं जानी जाती थीं.भारत के विभाजन (1947) के समय अधिकांश मुस्लिम-बहुल रेजिमेंट्स कोपाकिस्तानको सौंप दिया गया था.भारत में औपचारिक रूप से"मुस्लिम रेजिमेंट" नामक कोई इकाई नहीं थी.
2. 1947: गोरखा सैनिकों की हत्या — क्या यह सच है?
कुछ कथाओं में दावा किया जाता है कि15 अक्टूबर 1947 को मुस्लिम सैनिकों ने एक गोरखा कंपनी पर हमला किया और कई सैनिकों की हत्या कर दी.इसमें एक अफसर, कैप्टन रघुबीर सिंह थापा, को यातना देकर मारने की बात कही जाती है.
इस घटना का उल्लेख"Pakistan's Military Collapse" जैसी कुछ पुस्तकों और व्यक्तिगत खातों में किया गया है, लेकिनकोई आधिकारिक सैन्य रिपोर्ट या निष्पक्ष ऐतिहासिक प्रमाण इस दावे की पुष्टि नहीं करता.यह भी कहा जाता है किनेहरू सरकार ने इस घटना को "दबाया", लेकिन इस पर भी कोई पुख्ता दस्तावेज़ उपलब्ध नहीं हैं.
3. विभाजन के बाद मुस्लिम सैनिकों का पाकिस्तान जाना
1947 के भारत-पाक विभाजन के समयहजारों मुस्लिम सैनिकोंने पाकिस्तान जाने का विकल्प चुना — यह एक व्यवस्थित और स्वीकृत प्रक्रिया थी.लेकिन यह कहना कि उन्होंने “भारत से गद्दारी की” या विद्रोह किया, इतिहास की एकतरफा व्याख्याहै.विभाजन की स्थिति बेहद अस्थिर थी, और दोनों ओर हजारों लोग अपनी आस्था, पहचान और सुरक्षा के आधार पर निर्णय ले रहे थे.
4. 1965 युद्ध में मुस्लिम रेजिमेंट का विद्रोह — तथ्य या अफ़वाह?
कुछ कहानियाँ कहती हैं कि 1965 के भारत-पाक युद्ध में एक "मुस्लिम रेजिमेंट" ने पाकिस्तान के खिलाफ लड़ने से इनकार कर दिया और पलायन कर गई.कहा जाता है कि प्रधानमंत्रीलाल बहादुर शास्त्रीने रेजिमेंट को भंग कर दिया.
यह दावा पूरी तरह सेअसत्यहै.1965 के युद्ध में भारतीय सेना के मुसलमान सैनिकों नेसाहस और निष्ठासे लड़ाई लड़ी. बटालियन ऑफ द गार्ड्स, सिख रेजिमेंट, राजपूताना राइफल्सजैसी सभी रेजिमेंटों में मुस्लिम सैनिक शामिल थे.भारतीय सेना ने कभी किसी सैनिक की पदस्थापना धर्म के आधार पर निर्धारित नहीं की.
लाल बहादुर शास्त्री द्वारा किसी "मुस्लिम रेजिमेंट" को भंग करने का कोई प्रमाण नहीं है — न ही सरकारी अभिलेखों में, न ही रक्षा मंत्रालय के दस्तावेजों में.
5. भारतीय सेना की वर्तमान संरचना — धर्मनिरपेक्ष और समावेशी
आज भारतीय सेना में मुस्लिम, सिख, ईसाई, हिन्दू, जैन, बौद्ध — सभी धर्मों के लोग सेवा कर रहे हैं.उनकी तैनाती क्षमता, योग्यता और अनुभव के आधार पर होती है, धर्म के आधार पर नहीं.
सेना की नीति है — “Unit cohesion is more important than communal identity.” यही वजह है कि जातीय रेजिमेंटों को धीरे-धीरे बहुजातीय और मिश्रित बनाया जा रहा है.
इतिहास को समझें, अफवाहों से बचें
"मुस्लिम रेजिमेंट" को लेकर जो दावे सोशल मीडिया या कुछ लेखों में किए जाते हैं, वेअपूर्ण, संदर्भहीन और कभी-कभी झूठे हैं.भारतीय सेना की साख इस बात पर टिकी है कि वह हर सैनिक को उसकी वर्दी, कर्तव्य और निष्ठा से पहचानती है, न कि उसकी जाति या धर्म से.
यह जरूरी है कि हम इतिहास को प्रमाणों के आधार पर समझें, न कि अफवाहों या पूर्वाग्रहों के आधार पर.