हरजिंदर
इन दिनों जब लद्दाख कईं कारणों से चर्चा में है तो कारगिल भी सुर्खियों में आ गया है. लद्दाख में दो पड़ोसी जिले हैं लेह और कारगिल. दोनों का भूगोल तकरीबन एक जैसा है, लेकिन समाज अलग किस्म का है. लेह में बौद्ध समुदाय के लोग बहुसंख्क हैं, जबकि इसके विपरीत कारगिल में मुस्लिम समुदाय के लोगों का बहुमत है. कारगिल के ज्यादातर मुसलमान शिया हैं और वे सब इमामिया समुदाय के हैं.
कारगिल इसी वजह से हैरत में डालता है कि जबकि उसके आस-पास ज्यादातर सुन्नी बहुमत वाले इलाके हैं तो फिर इतने सारे शिया कारगिल में कैसे आ गए?माना जाता है कि कारगिल में 15वीं और 16 सदी में सबसे पहले शिया आए और यहां आने वाले ये लोग तीन तरह के थे. सबसे पहले तो पश्चिम एशिया के शिया व्यापारी यहां पहंुचे. जिसे चीन का रेशम मार्ग कहा जाता है, कारगिल का इलाका उससे बहुत दूर नहीं है.
इसी दौरान कुछ आक्रमणकारी भी यहां अपने शासन का विस्तार करते हुए पहंुचे जिनमें से कईं यहीं पर बस गए. इसके बाद 16वीं सदी में मीर शमसुद्दीन अरकी नाम के एक इस्लामिक विद्वान यहां ईरान से पहंुचे. उन्होंने कारगिल से शुरू करके गिलगित और बाल्टिस्तान की कईं यात्राएं की. उन्होंने इस्लाम का प्रचार किया और कईं लोग उनकी सक्रियता की वजह से शिया बने.
कारगिल के मुसलमान इस मामले में भी अलग हैं कि लंबे समय तक कारगिल जम्मू कश्मीर राज्य का हिस्सा रहा. यह राज्य कईं दशकों से आतंकवाद की चपेट में है. आतंकी संगठनों ने बहुत से कश्मीरी नौजवानों का ब्रेन वाश करके उन्हें आंतकवादी बना दिया, लेकिन वह कारगिल ही था जहां के नौजवान आमतौर पर इससे दूर ही रहे.
जब संविधान के अनुच्छेद 370 और 35ए को निष्प्रभावी बनाया गया तो लद्दाख में एक और अंतरविरोध दिखा. कारगिल में इसे लेकर विरोध प्रदर्शन हुए और लेह में इस फैसले को लेकर जश्न मनाए गए.इतना ही नहीं.
शुरू में यह दूरी बढ़ती दिखाई दी. एक समय वह भी आया जब बौद्धों और मुसलमानों के बीच दंगों की खबरे भी आईं.लेकिन लद्दाख के बौद्ध और शिया दोनों ही शांतिप्रिय समुदाय हैं, इसलिए यह तनाव ज्यादा चला नहीं. जल्द ही सुलह हो गई
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चीजें सामान्य होने लगीं. फिर एक समय वह भी आया जब कारगिल के शिया समुदाय के लोगों ने गोंपा यानी बौद्ध मंदिर के लिए जगह दी. साठ साल से चल रहा विवाद इतनी आसानी से हल हो जाएगा ऐसा किसी ने सोचा भी नहीं था.
लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा देने के बाद एक और चीज यह हुई कि जल्द ही कारगिल और लेह के लोगों को अहसास हो गया कि विभाजन से उन्हें कंुछ मिला नहीं है. वे दोनों एक ही स्थिति में हैं.
यही वजह है कि इस समय लद्दाख में जो आंदोलन चल रहा है उसमें दोनों समुदाय एक साथ मिलकर खड़े हैं. दोनों में ही एक जैसा असंतोष है. एक और बात ध्यान रखने की है कि इस दौरान दंगा लेह में हुआ, कारगिल में नहीं.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)