इस्लाम में रिज़्क का गहरा आध्यात्मिक अर्थ

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 28-11-2025
The Deep Spiritual Meaning of Rizq in Islam
The Deep Spiritual Meaning of Rizq in Islam

 

ईमान सकीना

इस्लाम की शिक्षाओं में कई गहरी और अर्थपूर्ण अवधारणाएँ मिलती हैं, जिनमें से रिज़्क यानी रोज़ी-रोटी या अल्लाह का दिया हुआ प्रावधान एक ऐसी हकीकत है जो इंसान को सुकून, हिम्मत और आध्यात्मिक मजबूती देती है। रिज़्क सिर्फ़ धन-दौलत तक सीमित नहीं, बल्कि जीवन को सहारा देने वाली हर नेमत-सेहत, समय, अवसर, रिश्ते, ज्ञान और दिल का सुकून,सब कुछ इसी का हिस्सा है। जब इंसान रिज़्क की इस गहराई को समझ लेता है, तो उसका नजरिया बदल जाता है। वह संतोष के साथ जीना, उद्देश्यपूर्ण मेहनत करना और अल्लाह पर बेपनाह भरोसा रखना सीख जाता है।

यह एहसास दिल में बस जाता है कि दुनिया में जो कुछ हमें मिलता है, वह आकस्मिक नहीं बल्कि अल्लाह की हिकमत और रहमत से तय किया हुआ है। मन की बेचैनी धीरे-धीरे कम होती है, लालच की जगह उदारता पैदा होती है और इंसान जिंदगी को इज़्ज़त, मक़सद और सुकून के साथ गुजारना सीख जाता है—यह जानते हुए कि हर नेमत उसी की तरफ़ से है जो सबसे बेहतर जानता है।

इस्लाम बताता है कि अल्लाह ही अर-रज़्ज़ाक़ है, यानी सबका रिज़्क देने वाला। क़ुरआन बार-बार इस सच को याद दिलाता है ताकि इंसान अपनी उम्मीदें इंसानों या हालात से न बांधे, बल्कि असली भरोसा अल्लाह पर रखे। अल्लाह फरमाता है कि ज़मीन पर कोई भी चलने वाला ऐसा नहीं जिसकी रोज़ी अल्लाह पर न हो। यह आयत न सिर्फ़ अल्लाह के वादे को, बल्कि उसकी रहमत और उसकी निगरानी को भी जाहिर करती है। हर जीव अल्लाह के इल्म, देखभाल और मेहरबानी में शामिल है। जिस रिज़्क का जो हकदार है, वह उससे छूट नहीं सकता।

इसके साथ ही इस्लाम यह भी बताता है कि इंसान को मेहनत करनी चाहिए। नबी ﷺ ने सिखाया कि हलाल तरीक़े से रोज़ी तलाश करना और अपनी कोशिश करना ज़रूरी है, लेकिन साथ-साथ यह भी समझना चाहिए कि हमारी कोशिश हमारा फर्ज़ है, जबकि रिज़्क अल्लाह का फैसला है। यही सोच इंसान को काम और तवक्कुल के बीच संतुलित बनाती है, और यहीं से आध्यात्मिक पुख़्तगी जन्म लेती है।

आम तौर पर लोग रिज़्क को सिर्फ़ पैसे से जोड़ते हैं, लेकिन इस्लाम इसकी बहुत व्यापक और खूबसूरत समझ पेश करता है। पैसा, व्यवसाय, घर और सामान जितने जरूरी हैं, उतनी ही बड़ी नेमतें सेहत, ताक़त, साफ दिमाग, सीखने के अवसर, अच्छे रिश्ते, नेक औलाद, प्यार करने वाले लोग, समय, मौके और दिल का सुकून भी हैं। कई बार इंसान अमीर नहीं होता, लेकिन इन नेमतों की वजह से बेहद खुशहाल और समृद्ध होता है। नबी ﷺ ने भी हमें बताया कि असली दौलत सामान की बहुतायत नहीं, बल्कि दिल का अमीर होना है।

इस्लाम हलाल कमाई पर बहुत जोर देता है। ईमानदारी, न्याय और सच्चाई से कमाया हुआ धन भले कम हो, लेकिन उसमें बरकत होती है। इसके विपरीत धोखे, झूठ या अन्याय से कमाया हुआ माल संख्यात्मक रूप से बढ़ सकता है, लेकिन उसकी रूहानियत घट जाती है। यह सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक मामला भी है, क्योंकि हराम कमाई इंसान के दिल को प्रभावित करती है।

नबी ﷺ ने बताया कि जिसका खाना, कपड़ा और कमाई हराम से आई हो, उसकी दुआओं का असर कम हो जाता है। इससे साफ होता है कि हलाल रिज़्क दिल की पवित्रता और अल्लाह के साथ रिश्ते का एक अहम हिस्सा है।

जीवन में कई दफा इंसान को रिज़्क के मामले में कठिनाइयों और अनिश्चितता का सामना करना पड़ता है-नौकरी जाना, आर्थिक तनाव, अवसर देर से मिलना या किसी मुश्किल का आ जाना। इस्लाम इन हालात को अल्लाह द्वारा छोड़े जाने का संकेत नहीं मानता। बल्कि कभी-कभी यह परीक्षाएँ होती हैं, सुरक्षा का साधन होती हैं या बेहतर दिशा में ले जाने का तरीका।

अल्लाह कभी-कभी इंसान से कुछ रोक लेता है ताकि उसे अहंकार से बचाया जाए, उसे किसी बेहतर अवसर की ओर मोड़ा जाए, उसकी शख्सियत को मज़बूत किया जाए या यह याद दिलाया जाए कि दुनिया की दौलत असली मक़सद नहीं, बल्कि अल्लाह की करीब़ी असली सफलता है। इसलिए रिज़्क का बढ़ना हमेशा अल्लाह की खुशी की निशानी नहीं और न कम होना उसकी नाराज़गी का प्रमाण। हर इंसान का रिज़्क उसकी भलाई, उसकी परीक्षा और उसकी तरक्की के हिसाब से लिखा गया है।

अल्लाह ने वादा किया है कि अगर इंसान शुक्र करता है, तो वह उसकी नेमतों को बढ़ा देता है। शुक्र इंसान की सोच बदल देता है। वह विपरीत परिस्थितियों में भी मौजूद नेमतों को पहचानने लगता है और भविष्य की लालसा में खोने के बजाय वर्तमान का एहसास करता है।

संतोष, यानी क़नाअत, उसे चिंता और बेचैनी से बचाता है और उसे एक गहरी मजबूती देता है। कभी-कभी अल्लाह रिज़्क बढ़ाकर नहीं, बल्कि बरकत बढ़ाकर इंसान को मालामाल कर देता है। जो थोड़ा होता है, वह काफी हो जाता है, टिकता है और ज्यादा फायदा देता है।

नबी ﷺ ने फरमाया कि अगर तुम अल्लाह पर सच्चे दिल से भरोसा करो, तो वह तुम्हें उसी तरह रोज़ी देगा जैसे परिंदों को देता है,वे सुबह भूखे निकलते हैं और शाम को पेट भरे लौटते हैं। यह मिसाल बताती है कि भरोसा मेहनत को बंद नहीं करता; दोनों साथ-साथ चलते हैं। परिंदे उड़ते हैं, तलाश करते हैं, मेहनत करते हैं, लेकिन डरते नहीं। इसी तरह मोमिन को भी कोशिश करनी है, मगर चिंता के बिना। इस्लाम यह भी बताता है कि सदक़ा, दुआ, इस्तिग़फ़ार, दया और नेकी जैसे काम रिज़्क के नए दरवाज़े खोल सकते हैं। इंसान को अक्सर ऐसी जगह से नेमतें मिलती हैं जहाँ का उसने कभी अंदाज़ा भी नहीं लगाया होता।