कोल्ड वाॅर के बाद की हथियारों की सबसे बड़ी होड़ शुरू

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 21-06-2022
कोल्ड वाॅर के बाद की हथियारों की सबसे बड़ी होड़ शुरू
कोल्ड वाॅर के बाद की हथियारों की सबसे बड़ी होड़ शुरू

 

मेहमान का पन्ना

हरजिंदर 

अभी कुछ दिन पहले तक यूक्रेन के राष्ट्रपति वोल्डोमरजेलेन्स्की दुनिया भर के देशों से हथियार मांग रहे थे, ताकि वे रूस के हमले का मुकाबला कर सकें. हथियार उन्हें मिलने भी शुरू हो गए हैं. पड़ोसी पोलैंड ने यूक्रेन को 200 से ज्यादा टैंक भेजे हैं. यूक्रेन के लिए इस समय सबसे महत्वपूर्ण पोलैंड ही है. दुनिया भर से वहां जो हथियार भेजे जा रहे हैं वे बरसतेपौलैंड ही वहां पहुंच रहे हैं.

इस रास्ते से अमेरिकाके एडवांस मल्टी रॉकेट लांचर सिस्टम वहां पहुंच गए हैं. कई तरह की मिसाइल और तोपें भी भेजी गई है. अभी अमेरिका से और हथियार भी आएंगे. अमेरिकी कांग्रेस ने यूक्रेन को 40 अरब डॉलर की मदद देेनेका प्रस्ताव अभी पिछले महीने ही पास किया था.

जर्मनी, इटली और ब्रिटेन से भीऐसी मदद पहुंचती है. और तो और तुर्की ने भीयुद्व में इस्तेमाल होने वाले ड्रोन भेजे हैं. इन हथियारों नेरूस की परेशानियां बढ़ा दी हैं, लेकिन इससे यूक्रेन कीपरेशानियां खत्म नहीं हुई हैं.इस जंग में भी वही हो रहा है जो दुनिया की हर जंग में होताहै. युद्ध जब होता है तो सभी परेशान होते हैं.

बस वही लोग खुश होते हैंजो हथियारों का कारोबार करते हैं. यूक्रेन की जंग शुरूहोते ही हथियार बनाने वाली कंपनियों के वारे न्यारे हो गए हैं. नए आर्डर मिलने के साथ ही वहां दिन रात काम शुरू हो गया है. जबकि महामारी की वजह से कुछ समय पहले तक वहां कामकाज पूरीतरह ठप्प था.

कुछ कंपनियां तो बंद होने के कगार पर थीं.पश्चिमी देशों की हथियार बनाने वाली कंपनियों की दिक्कत यह हैकि यूरोप वगैरह में हथियारों की मांग काफी समय से कम थी. इनकी ज्यादा खरीदारी ईरान, पाकिस्तान और भारत जैसे देश कर रहे थे.

इन देशों की ज्यादातर आपूर्ति रूस चीन और इज़राइल जैसेदेशों से हो रही थी. हथियारों के निर्यात केमामले में पश्चिमी देशों की कंपनियों को कई तरह की पाबंदियों का सामाना भी करनापड़ता है. जिससे उनके हाथ अक्सर बंधे रहते हैं.

यूक्रेन की लड़ाई ने यह तस्वीर बदल दी है. अब यूरोप में ही हथियारों की भारी मांग है. सामने किसी तरह की कोई पाबंदी भी नहीं है.मामला सिर्फ यूक्रेन और रूस के युद्ध का ही नहीं है. पश्चिमी यूरोप की पिछले दो तीन साल की सक्रियता देखें तोलगता है कि अगर यह युद्ध न होता तो भी हथियारों की होड़ शुरू होनी ही थी.

यूरोपीय संघ काफी समय से इसकी तैयारियां कर रहा था.पश्चिमी यूरोप के सभी देश नाटो का हिस्सा हैं, इसलिए वे अभी तक अपनी सुरक्षा के बारे में नाटो के दायरेमें रह कर ही सोचते रहे हैं. लेकिन पिछले अमेरिकीराष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस समीकरण को थोड़ा गड़बड़ा दिया.

उन्होंने ‘अमेरिका फस्र्ट‘ की नीति पर इतना जोर दिया कियूरोपीय संघ को चिंता होने लग गई. यह चिंता तभी शुरू हो गईथी, जब रूस ने क्रीमिया पर कब्जा जमा लिया था. इसने यह बता दिया था कि अमेरिकी मदद को लेकर आप हमेशाआश्वस्त नहीं रह सकते.

नाटो से अलग अपनी सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम करने के लिएयूरोपीय संघ ने सुरक्षा शोध के लिए एक संस्था बनाई है. एक डिफेंस एक्शन प्लान भी पहले ही बन चुका है. इस पर इस समय 186 अरब यूरो का खर्चा हो रहा है.

इसके लिए जो हाई लेवल ग्रुप बनाया गया है उसमें रक्षाविशेषज्ञों के अलावा सात ऐसे लोग भी शामिल हैं, जो सीधे तौर परहथियार बनाने वाली कंपनियों से जुड़े हैं. एक यूरोपियनडिफेंस इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट प्लान भी बना है. जिसके तहत 302 कंपनियों को 48 करोड़ यूरो की मदद सीधे दीगई है.

यह तरीका आमतौर पर युद्ध के समय ही अपनायाजाता है, या तब जब युद्धका खतरा सामने हो.  दूसरी तरफ जर्मनी, ब्रिटेन और इटली जैसे पश्चिमी यूरोप के सबसे बड़े देशों नेअपने रक्षा बजट को भी काफी बढ़ा लिया है. लेकिन क्या इसबढ़े हुए खर्च से यूरोप के ये देश ज्यादा सुरक्षित हो जाएंगे ?

रक्षा बजट में बढ़ोतरी और हथियारों की ज्यादा खरीद कभी भीसुरक्षा की गारंटी नहीं होती. इससे सिर्फ हथियारों काकारोबार करने वालों का मुनाफा ही बढ़ता है. यही हो रहा है. शीत युद्ध के बाद की हथियारों की सबसे बड़ी होड़ अब शुरू होचुकी है.

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. यह उनके विचार हैं. )