मधुरा खिरे
पश्चिमी सूडान के उत्तरी दारफ़ुर प्रांत की राजधानी अल-फ़ाशेर शहर पर हाल ही में पैरामिलिट्री (अर्धसैनिक) बल 'रैपिड सपोर्ट फोर्स' (RSF) ने क़ब्ज़ा कर लिया है। अप्रैल 2024 से सेना के नियंत्रण वाले इस शहर को RSF ने घेर रखा था।
शहर में खाने-पीने और मदद के सामान की सप्लाई कट जाने से अकाल और भुखमरी बढ़ गई है। साथ ही, मारपीट, यौन हिंसा और दोनों तरफ़ से लगातार हो रहे ड्रोन और बम हमलों ने इस शहर को पूरी तरह बर्बाद कर दिया है। अब जब RSF ने शहर पर पूरा क़ब्ज़ा कर लिया है, तो ज़ुल्म और दहशत का एक नया दौर शुरू हो गया है। घर-घर जाकर पकड़-धकड़ जारी है और हत्याएं भी की जा रही हैं। अल-फ़ाशेर से 62 हज़ार लोग भाग चुके हैं।
येल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के मुताबिक़, यहां उन लोगों को निशाना बनाया जा रहा है जो अरब मूल के नहीं हैं। सैटेलाइट तस्वीरों में इस क़त्लेआम और तबाही के सबूत मिल रहे हैं। 2023 से सेना और पैरामिलिट्री फोर्स के बीच चल रहे इस संघर्ष में अब तक लगभग सवा लाख लोग मारे जा चुके हैं और एक करोड़ से ज़्यादा लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा है। लोग सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर राहत शिविरों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं।
संघर्ष का इतिहास
जनरल उमर अल-बशीर ने 1989 में तख़्तापलट करके सत्ता हथिया ली थी। उन्होंने इस्लामी क़ानूनों पर आधारित सख़्त शासन चलाया। विरोधियों को कुचलने, मीडिया पर नियंत्रण रखने और दारफ़ुर इलाक़े में नरसंहार के लिए उन्हें दोषी ठहराया गया था। 2003 में दारफ़ुर में अरब मूल के 'जंजावीद' नाम के एक घुमंतू गुट की मदद से अफ़्रीकी मूल के लोगों के आंदोलन को कुचल दिया गया। 2003 से 2005 के दौरान दक्षिणी दारफ़ुर में हुए युद्ध में लाखों लोग मारे गए।
इसी युद्ध में 'जंजावीद' गुट की तरफ़ से लड़ने वाले एक युवा लड़ाके ने अल-बशीर का ध्यान खींचा। वह लड़ाका था - मोहम्मद हमदान दगालो यानी 'हेमेदती'। बाद में बशीर ने इस गुट को 'सीमा सुरक्षा बल' का दर्जा दे दिया।
अल-बशीर ने 2013 में हेमेदती के नेतृत्व में 'रैपिड सपोर्ट फोर्स' (RSF) की स्थापना की। 2017 में हेमेदती ने एक विरोधी आदिवासी नेता से सूडान की कई सोने की खदानें ज़ब्त कर लीं और वह सूडान का सबसे बड़ा सोने का व्यापारी बन गया। सूडान का ज़्यादातर सोना दुबई जाता है, इसलिए संयुक्त अरब अमीरात (UAE) सूडान का व्यापारिक साझीदार था ही।
इसके अलावा, 2015 में यमन में सऊदी-अमीराती दखल के बाद सूडान सरकार ने सेना प्रमुखअब्दुल फ़तह अल-बुरहानके नेतृत्व में सेना की एक टुकड़ी यमन भेजी। कुछ महीनों बाद अमीरात ने हेमेदती के साथ एक अलग समझौता किया। उस समझौते के तहत हेमेदती ने RSF की एक बड़ी टुकड़ी दक्षिणी यमन में लड़ने के लिए भेजी। साथ ही, सऊदी अरब और यमन की सीमा पर सुरक्षा गार्ड भेजे। इससे उसे कमाई का एक और बड़ा ज़रिया मिल गया। धीरे-धीरे वह सूडान के सबसे अमीर लोगों में शामिल हो गया और RSF की ताक़त कई गुना बढ़ गई।
विवाद की वजह और मौजूदा हालात
बुरहान ने RSF को सेना में मिलाने का प्रस्ताव रखा था। उनका मानना था कि यह प्रक्रिया दो साल में पूरी होनी चाहिए, जबकि दगालो (हेमेदती) का कहना था कि विलय 10 साल बाद होना चाहिए। यही दोनों के बीच विवाद का मुख्य कारण बना। अब RSF ने पूरे दारफ़ुर प्रांत पर क़ब्ज़ा कर लिया है। जनता को भुखमरी, कुपोषण, बीमारी और ख़राब स्वास्थ्य सुविधाओं जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। विस्थापितों का गंभीर संकट खड़ा हो गया है।
अंतरराष्ट्रीय हित और राजनीति
अलग-अलग देश आर्थिक फ़ायदे, भू-राजनीतिक रणनीति, क्षेत्रीय स्थिरता और प्राकृतिक संसाधनों जैसे कई कारणों से बुरहान या हेमेदती में से किसी एक का पक्ष ले रहे हैं। उदाहरण के लिए, संयुक्त अरब अमीरात पर आरोप है कि वह आर्थिक फ़ायदे के लिए RSF को हथियार सप्लाई कर रहा है। सूडान के पूर्व में लाल सागर होने की वजह से, अंतरराष्ट्रीय व्यापार के नज़रिए से इस देश की भौगोलिक स्थिति बहुत अहम है।
इसीलिएरूस और ईरान 'पोर्ट सूडान' में नौसेना का अड्डा बनाना चाहते हैं। इसके लिए वे बुरहान की सेना का समर्थन कर रहे हैं।मिस्र और इथियोपियाकी सीमा सूडान से लगती है। वे क्षेत्रीय स्थिरता चाहते हैं, इसलिए उनका भी बुरहान को समर्थन है। दूसरी ओर, सूडान के पश्चिम में स्थित 'चाड' देश का RSF को समर्थन है। हितों के इस जाल में युद्धविराम की चर्चा में बड़ी बाधाएं आ रही हैं।
लोकतंत्र की अधूरी मांग
बढ़ती महंगाई के ख़िलाफ़ दिसंबर 2018 में अतबारा शहर में प्रदर्शन शुरू हुए और जल्द ही पूरे देश में फैल गए। 6 अप्रैल 2019 को हज़ारों लोग राजधानी खार्तूम में सेना मुख्यालय के सामने जमा हुए और वहां डेरा डालकर लोकतंत्र की मांग करने लगे। जनता के दबाव के कारण 11 अप्रैल 2019 को सेना और RSF ने हाथ मिलाकर अल-बशीर को सत्ता से हटा दिया।
सेना ने तीन महीने के लिए आपातकाल घोषित किया और दो साल के संक्रमण काल (transition period) की घोषणा की। कई महीनों की बातचीत और प्रदर्शनों के बाद, सैन्य और नागरिक नेताओं के बीच एक समझौता हुआ। इस समझौते के तहत, चुनाव होने तक अब्दुल्ला हमदोक अंतरिम प्रधानमंत्री बने। 2019 की क्रांति से लोकतंत्र की ओर क़दम बढ़ने लगे थे। लेकिन बाद में 2021 में फिर से तख़्तापलट हुआ और यह प्रक्रिया रुक गई। अप्रैल 2023 से, सूडानी सेना और RSF के बीच देश पर नियंत्रण पाने के लिए शुरू हुआ भीषण गृहयुद्ध अभी भी जारी है।
जीने का संघर्ष और मदद की अपील
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़, सूडान में लगभग तीन करोड़ लोगों का जीने के लिए संघर्ष जारी है और उन्हें तुरंत मदद की ज़रूरत है। कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने मदद की अपील की है। कई देशों से मदद आ तो रही है, लेकिन वह काफ़ी नहीं है। इस साल जितनी मदद राशि मिलने की उम्मीद थी, उसका सिर्फ़ 25 फ़ीसदी ही मिला है।
अंतरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन (IOM), यूनिसेफ, वर्ल्ड फूड प्रोग्राम और कई अन्य स्वयंसेवी संस्थाएं अंतरराष्ट्रीय समुदाय से और मदद का इंतज़ार कर रही हैं। सूडान में संघर्ष कम करने के लिए लगातार अंतरराष्ट्रीय कोशिशों की ज़रूरत है। इस संघर्ष की जटिलता और बाहरी तत्वों की भागीदारी की वजह से हल निकालना मुश्किल है, लेकिन बातचीत से रास्ता निकालना, अपराधों की ज़िम्मेदारी तय करना और लोगों तक मदद पहुंचाना, इन तरीक़ों से सूडानी जनता का दुख कम करने की कोशिश की जानी चाहिए।
(लेखिका अंतरराष्ट्रीय मामलों की जानकार हैं।)