देस-परदेस : सेना की जागीर बनता पाकिस्तान

Story by  प्रमोद जोशी | Published by  [email protected] | Date 18-11-2025
Country-Pardes: Pakistan becoming a fiefdom of the military
Country-Pardes: Pakistan becoming a fiefdom of the military

 

dप्रमोद जोशी

पाकिस्तान की संसद ने अपने थलसेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर को असाधारण शक्तियां देने तथा देश के सुप्रीम कोर्ट को दूसरे दर्जे पर रखने के इरादे से तुर्त-फुर्त एक संविधान संशोधन किया है, जो फौरन लागू भी हो गया.

संविधान में 27 वाँ संशोधन गुरुवार 13 नवंबर को राष्ट्रपति के दस्तखत होने के बाद कानून बन गया, जिससे देश की व्यवस्था बुनियादी तौर पर बदल गई है. पहले कहा जाता था कि दुनिया में पाकिस्तान की सेना ऐसी है, जो एक देश की मालिक है. अब कहा जा सकता है कि आसिम मुनीर ऐसे सेनाध्यक्ष हैं, जो पाकिस्तान के मालिक हैं.

पाकिस्तानी सेना ने लंबे समय से देश की वास्तविक सत्ता भोगी, कभी तख्तापलट के माध्यम से सत्ता पर कब्जा किया है तो कभी पर्दे के पीछे से प्रभाव डाला है. पर अब जो हुआ है, वह हैरतंगेज़ है.

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सेना का नया पद

नेशनल असेंबली ने बुधवार 12नवंबर को हंगामे से भरे सत्र के दौरान दो-तिहाई बहुमत से विवादास्पद 27वें संविधान संशोधन विधेयक को पास कर दिया. इस संशोधन का उद्देश्य रक्षा बलों के प्रमुख का एक नया पद सृजित करना और एक संवैधानिक न्यायालय की स्थापना करना है.

अब वहाँ के सेनाध्यक्ष देश के सबसे ताकतवर व्यक्ति बन गए हैं. एक और संशोधन के कारण सुप्रीम कोर्ट अब संविधान से जुड़े मुकदमों की सुनवाई नहीं कर सकेगा. उसकी जगह एक नए संघीय संवैधानिक न्यायालय का गठन शुरू हो गया है. 

मुनीर, जो नवंबर 2022से सेना प्रमुख के रूप में कार्यरत हैं, अब पाकिस्तान नौसेना और वायुसेना के भी प्रमुख होंगे. फील्ड मार्शल का उनका पद और वर्दी आजीवन रहेगी. थल सेनाध्यक्ष, तीनों रक्षा बलों के प्रमुख भी होंगे. राष्ट्रीय सामरिक कमान का प्रमुख पाकिस्तानी आर्मी से होगा. इस प्रकार वायुसेना और नौसेना के ऊपर भी थलसेना का वर्चस्व स्थापित हो गया है.

ताउम्र सुरक्षित

एक बार कोई व्यक्ति फील्ड मार्शल बना दिया गया, तो वह आजीवन इस पद पर रहेगा और उसके विरुद्ध किसी भी प्रकार का आपराधिक मुकदमा नहीं चलाया जा सकेगा. सेना और प्रशासन की संरचना ऐसी बना दी गई है, जो लंबे समय तक आसिम मुनीर की निजी जागीर जैसी बनी रहेगी.

संयुक्त चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी के अध्यक्ष का पद 27नवंबर को समाप्त हो जाएगा. एक तरह से यह नागरिक-प्रशासन का तख्ता पलट है, जिसकी पूर्व-पीठिका 1956में नागरिक शासन ने ही तैयार की है.

भारत की तरह पाकिस्तान में भी संविधान सभा बनी थी, जिसने 12मार्च 1949को संविधान के उद्देश्यों और लक्ष्यों का प्रस्ताव तो पास किया, पर संविधान नहीं बन पाया.

एक तरफ भारत ने आज़ाद होते ही जहाँ सारी बागडोर असैनिक-प्रशासन को सौंपी थी, वहीं पाकिस्तान अपनी आज़ादी के नौ साल बाद 1956में अपना पहला संविधान बना पाया. इतना भी ठीक था, पर वह सरकार दो साल की ही मेहमान रही.

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सेना को सत्ता का तोहफा

23 मार्च 1956 को इस्कंदर मिर्ज़ा देश के राष्ट्रपति बनाए गए. उन्हें जम्हूरी तरीके से चुना गया था, पर 7 अक्तूबर 1958 को उन्होंने अपनी ही लोकतांत्रिक सरकार बर्खास्त कर दी और मार्शल लॉ लागू कर दिया.

उनकी राय में मुल्क के लिए लोकतंत्र मुफीद नहीं था. उनके अनुसार जिस देश में साक्षरता की दर 15फीसदी हो वहाँ लोकतंत्र नहीं चल सकता.

इस्कंदर मिर्जा ने जिन जनरल अयूब खां को चीफ मार्शल लॉ प्रशासक बनाया उन्होंने 20दिन बाद 27अक्तूबर को सरकार का तख्ता पलट कर मिर्ज़ा साहब को बाहर किया और खुद राष्ट्रपति बन गए.

अब वही कहानी

अब वही कहानी करीब-करीब उसी तरीके से दोहराई जा रही है. पाकिस्तान सरकार अभी तक अपनी व्यवस्था को ‘हाइब्रिड व्यवस्था’ कहती रही है, अब लगता है कि वहाँ नए किस्म की ‘सुपर हाइब्रिड व्यवस्था’ जन्म ले रही है.

अब वहाँ तख्तापलट नहीं हो रहा है, बल्कि नागरिक सरकार तश्तरी पर रखकर सेना को सत्ता सौंप रही है और वहाँ की संसद इसके लिए संविधान में संशोधन कर रही है.

सरकार सशस्त्र बलों में फील्ड मार्शल, वायुसेना मार्शल और फ्लीट एडमिरल के पदों पर पदोन्नत कर सकेगी. हालाँकि अभी तक केवल दो व्यक्तियों को फील्ड मार्शल के पद मिले हैं. एक अयूब खान को और अब आसिम मुनीर को. वायुसेना और नौसेना में किसी को यह पद नहीं मिला है.

फील्ड मार्शल का पद और उसके विशेषाधिकार आजीवन होंगे. इसका मतलब यह भी है कि ऐसे पदाधिकारियों के विरुद्ध देश की किसी अदालत में कभी मुकदमा नहीं चल सकेगा. यह बदलाव के संविधान के अनुच्छेद 243में बदलाव के ज़रिए अब हुआ है.

इस बदलाव के बाद सेना प्रमुख आसिम मुनीर का रुतबा और राजनीतिक महत्व बहुत ज्यादा बढ़ गया है. उन्हें मई में भारत के साथ हुए चार दिन के संघर्ष के कुछ ही दिनों बाद फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत किया गया था.

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इतनी तेजी

प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने, जो आसिम मुनीर के साथ राजकीय यात्रा पर बाकू, अजरबैजान में थे, रविवार 9नवंबर को इस्लामाबाद लौटने के पहले ही विदेश से कैबिनेट की वर्चुअल बैठक बुलाई.

सरकार और उसके सहयोगियों के साथ विचार-विमर्श के बाद, सोमवार को सीनेट में एक संशोधित मसौदा पेश किया गया और उसी शाम उसे पारित कर दिया गया. 13नवंबर को इसपर राष्ट्रपति के दस्तखत भी हो गए.

इस संशोधन ने संविधान के अनुच्छेद 243में संशोधन करके रक्षा बलों के प्रमुख (सीडीएफ) का एक नया पद सृजित करता है, जो सेना प्रमुख के पास होगा. यह पद एक तरह से भारत से चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के तर्ज पर है, पर व्यावहारिक रूप से दोनों में ज़मीन-आसमान का फर्क है.

तीनों सेनाओं के ऊपर

यह संशोधन थलसेना प्रमुख को वायुसेना और नौसेना के ऊपर कर देता है. इसके पहले तक संयुक्त चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी (सीजेसीएससी) के अध्यक्ष का एक पद था, जो 27नवंबर को खत्म हो जाएगा.

1947 में आज़ादी के बाद से, पाकिस्तान की सेना, ख़ासकर आर्मी, राष्ट्रीय जीवन की सबसे शक्तिशाली संस्था रही है. चार तख्तापलटों और दशकों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष सैन्य शासन ने इस प्रभाव को और मज़बूत किया है, और थलसेना प्रमुख लंबे समय से देश का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति रहा है.

आसिम मुनीर नवंबर 2022 में सेना प्रमुख बने और इस साल 20मई को उन्हें पाँच सितारा रैंक पर पदोन्नत किया गया. यह काम भारत के साथ चार दिवसीय संघर्ष समाप्त होने के मात्र 10दिन बाद हुआ.

इसके पहले अयूब खान, जिया-उल-हक और परवेज़ मुशर्रफ तक ने देश के सर्वोच्च पद हासिल किए, पर खुद को कानूनों के ऊपर वे नहीं कर पाए. परवेज मुशर्रफ को इसी वज़ह से जीवन के अंतिम वर्षों में अपमान का सामना करना पड़ा. 

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मुकदमा नहीं चलेगा

इसके पहले पाकिस्तानी संविधान के अनुसार, अनुच्छेद 248में यह प्रावधान था कि ‘राष्ट्रपति या राज्यपाल के विरुद्ध उनके कार्यकाल के दौरान किसी भी न्यायालय में कोई भी आपराधिक कार्रवाई नहीं की जाएगी,’ लेकिन पद से हटने के बाद, उन्हें ऐसे कोई विशेषाधिकार प्राप्त नहीं होते हैं.

फौजी जनरलों को ऐसी कोई छूट भी नहीं थी. फील्ड मार्शल की उपाधि को विशुद्ध रूप से सम्मानजनक माना जाता था, जिसमें कोई अतिरिक्त शक्तियाँ या विशेषाधिकार नहीं होते थे. अब इस बदलाव के बाद अनिवार्य रूप से यह पद मान्यता प्राप्त संवैधानिक पद बन गया है.

इस संशोधन के बाद राष्ट्रीय सामरिक कमान (एनएससी) के कमांडर का पद भी बनाया गया है, जो अन्य कार्यों के अलावा, देश की परमाणु कमान के लिए भी ज़िम्मेदार है. एनएससी के प्रमुख की नियुक्ति केवल सेना प्रमुख/सीडीएफ के परामर्श से सेना से ही की जाएगी.

अब पाँच सितारा रैंक वाले अधिकारी को हटाने के लिए संसद में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी, जबकि निर्वाचित सरकार संसद में साधारण बहुमत के खिलाफ मतदान करने पर सत्ता खो देगी. सरकार के प्रमुख के पास कानूनों से बचत का कोई रास्ता नहीं होगा, पर पाँच सितारा अधिकारी को आजीवन आपराधिक मुकदमे से छूट प्राप्त होगी.

सवाल ही सवाल

आलोचक इसे आर्मी के संस्थागत कब्जे के रूप में भी देखते हैं. पूर्व रक्षा सचिव सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल आसिफ यासीन मलिक ने चेतावनी दी है, ‘वायुसेना और नौसेना पर अधिकार के साथ एक थलसेना अधिकारी को रक्षा बलों के प्रमुख के रूप में रखकर तैयार की गई इस प्रणाली में खतरे हैं. यह संशोधन रक्षा ढांचे को मजबूत करने के बजाय किसी व्यक्ति को लाभ पहुंचाने के लिए तैयार किया गया है.

यह खतरा देश की सैन्य संस्कृति के मूल में बैठा है. थलसेना, वायुसेना और नौसेना के बीच पहले से ही गहरी प्रतिद्वंद्विता है. वायुसेना और नौसेना ने लंबे समय से भूमि-केंद्रित कमान के तहत अपनी स्वायत्तता को अपने अधीन करने की कोशिशों का विरोध किया है.

एक महत्वपूर्ण सवाल यह है कि वायुसेना और नौसेना में स्थानांतरण, पोस्टिंग और पदोन्नति को कौन नियंत्रित करेगा. क्या दोनों सेवा प्रमुख आसानी से उस अधिकार को छोड़ देंगे?

एक और काल्पनिक परिदृश्य है: ‘अगर वायुसेना का प्रमुख मार्शल या नौसेना मार्शल एडमिरल है, जबकि सीओएएस चार सितारा जनरल है, तब भी क्या वे चार सितारा सेना अधिकारी के अधीन होंगे?’

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न्यायिक परिवर्तन

संशोधन के बाद संविधान से संबंधित मामलों से निपटने के लिए एक संघीय संवैधानिक न्यायालय की स्थापना हो गई है. मौजूदा सर्वोच्च न्यायालय केवल पारंपरिक सिविल और आपराधिक मामलों से ही निपटेगा.

इस व्यवस्था के विरोध में सुप्रीम कोर्ट के दो जजों ने इस्तीफे दे दिए हैं. संभव है कि कुछ और इस्तीफे हों, पर इससे कुछ नहीं होने वाला है. विपक्षी गठबंधन तहरीक तहफ्फ़ुज़ आईन-ए-पाकिस्तान (टीटीएपी) ने प्रस्तावित संशोधन के खिलाफ देशव्यापी विरोध आंदोलन की घोषणा की थी, लेकिन अभी तक कोई बड़ा विरोध प्रदर्शन नहीं हुआ है.

संघीय संवैधानिक न्यायालय (एफसीसी) का नेतृत्व उसके अपने मुख्य न्यायाधीश करेंगे. इसमें पाकिस्तान के चारों प्रांतों के साथ-साथ इस्लामाबाद से भी समान संख्या में न्यायाधीश होंगे. इसके जज 68वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होंगे, जबकि सुप्रीम कोर्ट के 65वर्ष में होते हैं.

अब राष्ट्रपति को पाकिस्तान न्यायिक आयोग (जेसीपी) के प्रस्ताव पर एक न्यायाधीश का एक हाईकोर्ट से दूसरे हाईकोर्ट में तबादला करने की शक्ति भी मिल गई है. पिछले वर्ष 26वें संशोधन के पारित होने के बाद, इस तबादले का अधिकार राष्ट्रपति को मिल गया था, पर उसके लिए जज की सहमति जरूरी थी.

अब जज की सहमति के बिना भी जेसीपी की सिफारिश पर किसी न्यायाधीश का तबादला हो सकेगा. जज इनकार करेगा, तो उसे जेसीपी के सामने अपने कारण पेश करने का मौका दिया जाएगा. यदि कारण होंगे, तो जज को सेवानिवृत्त होना पड़ेगा.

(लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं)


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