ख़दीजा अल-कुबरा: मक्का की गलियों से उठी वो आवाज़, जिसने इतिहास की दिशा बदली

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 19-11-2025
Khadija al-Kubra: The voice that rose from the streets of Mecca and changed the course of history
Khadija al-Kubra: The voice that rose from the streets of Mecca and changed the course of history

 

जेब अख्तर

छठी सदी का अरब, जहां औरतों की ज़िंदगी घर की चारदीवारी तक सिमटी थीऔर शिक्षा या आज़ादी का कोई ख़याल तक नहीं था। ऐसे वक़्त में एक महिला सामने आई, जिसने हालात से समझौता नहीं किया, बल्कि उन्हें बदल दिया। वह थीं ख़दीजा बिंत ख़ुवैलिद (रज़ि), जिन्होंने अपने पहले पति की मृत्यु के बाद न सिर्फ़ व्यापार संभाला, बल्कि मक्का की सबसे प्रतिष्ठित कारोबारी बनीं। फिर, उसी आत्मविश्वास के साथ उन्होंने वह कदम उठाया जिसकी उस दौर में कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। उन्होंने खुद से विवाह का प्रस्ताव दिया मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को।

उस समाज में, जहां महिलाओं की आवाज़ दबा दी जाती थी, ख़दीजा ने अपनी आवाज़ को न सिर्फ़ बुलंद किया, बल्कि उसे सम्मान और असर का दर्जा दिलाया। लेकिन आज उनको क्यों याद करें? दरअसल उनकी कहानी बताती है कि सच्ची उद्यमिता का मतलब केवल कारोबार खड़ा करना नहीं, बल्कि अपने हालात और सोच की दीवारें तोड़ देना भी है।

यही नहीं, ख़दीजा बिंत ख़ुवैलिद (रज़ि) की पूरी जिंदगी आज की भारतीय महिला, खासकर मुस्लिम महिलाओं के लिए एक ताकत, एक सीख से कहीं बढ़कर है। कैसे, आइये इसे समझते हैं।

आत्मनिर्भरता की मिसाल

ख़दीजा ने अपने पिता ख़ुवैलिद के निधन के बाद पारिवारिक व्यापार अपने हाथों में लिया। उनके ऊंटों के काफ़िले मक्का से लेकर सीरिया, यमन और बसरा तक जाते थे- मसालों, कपड़ों, सुगंध और अनाज के सौदे करते हुए। वे अपने एजेंटों की ईमानदारी और दक्षता के लिए जानी जाती थीं। इतिहासकार इब्न सअद लिखते हैं- “मक्का के बाज़ार में अगर किसी नाम की गारंटी होती थी, तो वह ख़दीजा का नाम था।”

भारतीय संदर्भ में देखें तो ख़दीजा बिंत ख़ुवैलिद (रज़ि) आज भी मुस्लिम महिलाओं के लिए ताक़त और प्रेरणा का प्रतीक हैं। उनकी कहानी बताती है कि आत्मनिर्भरता कोई आधुनिक सोच नहीं, बल्कि यह हमारी परंपरा की जड़ों में मौजूद है। आज जब केरल की नज़रीन बानू मसाला निर्यात में अपनी पहचान बना रही हैं, या अलीगढ़ की शाहीन मुनव्वर “इक़रा डिज़ाइन्स” के ज़रिए घर-घर में रोज़गार पहुँचा रही हैं- तो ये सब उसी विरासत की झलक हैं जो सदियों पहले मक्का की गलियों में शुरू हुई थी।

ईमानदारी और साख- कामयाबी की असली पूंजी

ख़दीजा अपने समय की सबसे भरोसेमंद व्यापारी मानी जाती थीं। उन्होंने कभी सौदेबाज़ी में छल या दिखावे का सहारा नहीं लिया। उनकी सोच साफ़ थी- “सौदे में सच्चाई रखो, बरकत खुद आएगी।”

यही ईमानदारी उन्हें युवा मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की ओर आकर्षित करती थी, क्योंकि वे भी अपने सच्चरित्र और सत्यनिष्ठा के लिए प्रसिद्ध थे। आज की भारत की महिला उद्यमियों में भी वही भावना दिखती है।

हैदराबाद की रुख़साना हबीब ने “ट्रू ट्रेडर्स” के नाम से ऑनलाइन कारोबार शुरू किया, जहां वे “trust over trend” को अपना ब्रांड सिद्धांत मानती हैं। इसी तरह लखनऊ की हिना अहमद का बेकरी ब्रांड “हिना’ज़ होम बाइट्स” सिर्फ़ स्वाद नहीं, बल्कि भरोसे का प्रतीक बन गया- क्योंकि वे हर ग्राहक के लिए शुद्धता और पारदर्शिता को सर्वोपरि रखती हैं।इन कहानियों में वही सबक है जो ख़दीजा ने सिखाया- “Reputation is the real capital.”

विजन जो अवसर पहचानने वाला था

ख़दीजा की दूरदर्शिता का सबसे उल्लेखनीय उदाहरण यह था कि उन्होंने युवा मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को अपने व्यापारिक काफ़िले का प्रमुख बनाया। यह सिर्फ़ एक व्यावसायिक फ़ैसला नहीं था, बल्कि उनकी गहरी समझ का सबूत था। उन्होंने प्रतिभा में लिंग नहीं, काबिलियत देखी। और यही साझेदारी आगे चलकर एक ऐसी आध्यात्मिक क्रांति में बदल गई जिसने पूरी दुनिया का रास्ता बदल दिया।

और ये बहुत अप्रत्याशित नहीं है कि भारत की कुछ समकालीन महिलाएं भी इसी सोच को जी रही हैं। जैसे केरल की मिन्हा राशिद, जिन्होंने “थ्रेड्स ऑफ़ होप” नाम से एक कोऑपरेटिव शुरू किया, जहां 200से ज़्यादा स्थानीय महिलाएं हैंडक्राफ्ट बनाकर आत्मनिर्भर हो रही हैं।मिन्हा कहती हैं, “हम मुनाफ़े से ज़्यादा, आत्मविश्वास की पूंजी बना रहे हैं।” यही सोच ख़दीजा की थी,  दूसरों को आगे बढ़ाने का नजरिया ही सच्चा लीडरशीप है।

मुनाफ़े के साथ मकसद भी- Profit with Purpose

ख़दीजा ने अपने मुनाफ़े का बड़ा हिस्सा गरीबों, अनाथों और विधवाओं की मदद में लगाया।इतिहासकारों के अनुसार, उन्होंने मक्का के कठिन दौर में सैकड़ों परिवारों को आर्थिक सहारा दिया। और जब पैगंबर पर सामाजिक बहिष्कार (boycott) का समय आया, उन्होंने अपना पूरा धन उस संघर्ष में झोंक दिया। आज की “social entrepreneurship” इसी सोच की आधुनिक अभिव्यक्ति है। दिल्ली की सना खान ने “मदर’ज़ बास्केट” नाम से ऐसा वेंचर शुरू किया जहां ग्रामीण महिलाएं ऑर्गेनिक फ़ूड बनाती हैं, और मुनाफ़े का हिस्सा बच्चों की शिक्षा में जाता है।यह वही दर्शन है- Profit with Purpose।

संघर्ष, संतुलन और धैर्य

ख़दीजा की ज़िंदगी संघर्षों से भरी थी। पहले पति की मृत्यु, व्यापार की ज़िम्मेदारी, समाज की आलोचनाएं, और फिर इस्लाम के शुरुआती दौर का आर्थिक बहिष्कार। पर उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने अपने घर को सहारे का केंद्र बनाया, पैगंबर का मनोबल बढ़ाया, और अपनी आर्थिक समझ से नए समाज की नींव को मज़बूत किया। आज की भारतीय मुस्लिम महिलाएं जब काम, परिवार और सामाजिक अपेक्षाओं के बीच संतुलन साधती हैं, तो वही जज़्बा दिखता है। दरअसल महिलाओं की असली ताक़त उसके धैर्य और दिशा में होती है।

एक विरासत जो सरहदों से परे है

ख़दीजा अल-कुबरा (रज़ि.) इस्लाम पर यकीन करने वाली पहली महिला थीं, पर उससे भी बढ़कर, वे दुनिया की पहली दर्ज की गई (documented) व्यवसायी महिला मानी जाती हैं। उनकी प्रेरणा सीमाओं या धर्म तक सीमित नहीं, बल्कि इंसानियत और आत्मनिर्भरता की मिसाल है।

आज भारत में मुस्लिम महिलाएं कपड़ों से लेकर टेक्नोलॉजी तक हर क्षेत्र में अपनी जगह बना रही हैं। उदाहरण के लिए यहां मुंबई की फातिमा बानो, जो “टेकफ़ॉरहर” के ज़रिए महिलाओं को कोडिंग सिखा रही हैं, उनका नाम लिया जा सकता है। या जोधपुर की अफ़रीन शेख, जो बायोफ्यूल उत्पादन में स्टार्टअप चला रही हैं। इन सबकी कहानियों में कहीं-न-कहीं ख़दीजा की ही विरासत सांस लेती है।उनकी ज़िंदगी हमें यही सिखाती है, “ईमान और नैतिकता के साथ हासिल की गई सफलता ही असली सफलता है।”

आलिमों की नज़र में ख़दीजा

1.            इब्न हिशाम (Ibn Hisham) लिखते हैं, “जब पैग़ंबर मुहम्मद ने उनके कारोबार में ईमानदारी दिखाई, तो ख़दीजा ने उन्हें अपने सौदे सौंपने शुरू किए।”

2.            इब्न इस्हाक़ (Ibn Ishaq) के मुताबिक, “ख़दीजा मक्का की उन गिनी-चुनी महिलाओं में थीं जो न सिर्फ़ पूंजी की मालिक थीं, बल्कि हर साझेदारी में अपनी राय रखती थीं। उनका हर सौदा ईमान पर टिका होता था।”

3.            अल-तबरी (Al-Tabari) के लफ्जों में, “मक्का से निकलने वाले आधे कारवाँ ख़दीजा के नाम से जाने जाते थे। उनका व्यापार सीरिया, यमन और मिस्र तक फैला था।”

4.            अल-मक़रीज़ी (Al-Maqrizi) लिखते हैं, “ख़दीजा अपने कर्मचारियों के साथ न्याय और करुणा से पेश आती थीं। मुनाफ़े को वे दूसरों की मदद का जरिया मानती थीं।”

5.            मुहम्मद हमीदुल्लाह का मानना है, “ख़दीजा का कारोबारी नजरिया इतना साफ़ था कि आज के कारोबारी मॉडल भी उनसे बहुत कुछ सीख सकते हैं।”

6.            डॉ. तारिक रमदान (Tariq Ramadan) लिखते हैं, “ख़दीजा की सबसे बड़ी विरासत यह थी कि उन्होंने कारोबार में नैतिकता को केंद्र में रखा। सफलता उनके लिए भरोसे और ज़िम्मेदारी का दूसरा नाम थी।”