भक्ति चालक/ पुणे
भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन (BMMA) की तरफ़ से बहुपत्नी प्रथा (एक से ज़्यादा शादियां करना) के ख़िलाफ़ एक बड़ी लड़ाई शुरू की गई है। आने वाली 25नवंबर को मुंबई के मराठी पत्रकार संघ में होने वाली एक अहम प्रेस कॉन्फ्रेंस में, 2,500 मुस्लिम महिलाओं के सर्वे पर आधारित एक विस्तृत रिपोर्ट और किताब जारी की जाएगी। इस सर्वे के ज़रिए बहुपत्नी प्रथा की वजह से मुस्लिम महिलाओं की ज़िंदगी पर होने वाले गंभीर असर को सामने लाया जाएगा।
इस सर्वे में शामिल 2,500 महिलाओं में ऐसी कई महिलाएं हैं, जिनके पति ने दूसरी शादी की है। इसमें पति की पहली और दूसरी, दोनों पत्नियां शामिल हैं। इस अध्ययन में यह जांचा गया है कि इस प्रथा का महिलाओं की आर्थिक, सामाजिक और ख़ास तौर पर मानसिक और शारीरिक सेहत पर क्या बुरा असर पड़ता है।
भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 82और पहले की भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 494 के तहत, देश में एक से ज़्यादा शादी करना ग़ैर-क़ानूनी है। लेकिन, यह क़ानून मुस्लिम समाज पर लागू नहीं होता। अदालतों में भी इस बारे में स्पष्टता की कमी है। इसलिए, मुस्लिम पुरुषों में यह समझ बन गई है कि वे दूसरी शादी कर सकते हैं।
बहुपत्नी प्रथा को ग़ैर-क़ानूनी बनाने वाला क़ानून मुसलमानों पर भी लागू हो
भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की सह-संस्थापक नूरजहां सफ़िया ने 'आवाज़ मराठी' को बताया, "इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से हम सरकार से मांग करेंगे कि बहुपत्नी प्रथा को ग़ैर-क़ानूनी करार देने वाला देश का क़ानून मुस्लिम समाज पर भी समान रूप से लागू किया जाए।
इस आंदोलन का मुख्य मक़सद यह है कि मुस्लिम महिलाओं को भी इस क़ानून का संरक्षण मिले और समाज में एक से ज़्यादा शादी करने की प्रथा पर पूरी तरह रोक लगे। हमारी बस यही मांग है कि सरकार इसके लिए क़ानून में ज़रूरी बदलाव करे।"
इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन के साथ-साथ 'इंडियन मुस्लिम्स फॉर सेक्युलर डेमोक्रेसी' (IMSD) और महाराष्ट्र का एक सुधारवादी संगठन 'मुस्लिम सत्यशोधक मंडल'भी शामिल होंगे। इन संस्थाओं के सहयोग से यह अहम रिपोर्ट लोगों तक पहुंचाई जाएगी।
मुस्लिम सत्यशोधक मंडल के अध्यक्ष डॉ. शमसुद्दीन तंबोली ने भी 'आवाज़ मराठी' को अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, "भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की इस मुहिम को हमारा पूरा समर्थन है। 18 अप्रैल 1966को हमीद दलवाई (महाराष्ट्र के एक महान समाज सुधारक) ने मुस्लिम महिलाओं का पहला मोर्चा निकाला था, जिसमें उन्होंने यह सवाल उठाया था। जैसे जुबानी तलाक़ (तीन तलाक़) एक गंभीर मुद्दा था, वैसे ही पर्सनल लॉ में बहुपत्नी प्रथा की व्यवस्था मुस्लिम महिलाओं पर होने वाला अन्याय और भेदभाव है। क़ानूनी मान्यता होने की वजह से समाज में इसका इस्तेमाल होता है।"
उन्होंने आगे कहा, "बीएमएमए ने पहल करके वैज्ञानिक तरीक़े से इसका अध्ययन किया और सर्वे किया है। घटनाओं की संख्या कितनी है, इससे ज़्यादा अहम यह है कि महिलाओं पर अन्याय करने वाली वह प्रथा चालू है और इसलिए यह क़ानून रद्द होना चाहिए, यही हमारी मांग है। पीड़ित मुस्लिम महिलाओं के सवाल पर इस संस्था ने जो भूमिका ली है, उसे मुस्लिम सत्यशोधक मंडल का समर्थन है।"