नजरियाः हम भी मुंह में जुबान रखते हैं

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 25-07-2021
मोहन भागवत
मोहन भागवत

 

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प्रो. अख्तर उल वासे

अपने दो दिवसीय असम दौरे के दौरान एक भाषण में, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि एक नया बहुमत हासिल करने के लिए 20वीं शताब्दी की शुरुआत से ही मुसलमानों के बीच जनसंख्या वृद्धि दर बढ़ाने का एक जान-बूझकर प्रयास किया गया था और इसके माध्यम से पाकिस्तान की स्थापना की जा सकी, जबकि तथ्य यह है कि मुस्लिम लीग का गठन करने वाले बंगाल के विभाजन के निर्णय से निराश थे. दूसरे, यह आम तौर पर सभी इतिहासकारों द्वारा स्वीकार किया जाता है कि ‘फूट डालो और राज करो’ की ब्रिटिश नीति मुस्लिम लीग के उदय और विभाजन के लिए जिम्मेदार थी.

इसमें कोई संदेह नहीं है कि विभाजन एक दुर्भाग्यपूर्ण त्रासदी थी और यद्यपि यह अंग्रेजों की भ्रामक राजनीति थी. हिंदुओं में महासभा के एक अलहदा मुस्लिम रियासत बनाए जाने के अजमेर रेजोल्यूशन, मोहम्मद अली जिन्ना, कुछ मुस्लिम जागीरदारों और कुछ नौकरीपेशा लोगों के बीच एक अलग मुस्लिम राज्य महासभा बनाने का संकल्प हुआ. लेकिन यह कहना सही नहीं है कि जनसंख्या वृद्धि किसी भी साजिश का आधार है.

ऐसा लगता है कि असम के वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत विस्व सरमा ने मुस्लिम क्षेत्रों में जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए 1,000 की आबादी पर जनसंख्या सेना के गठन की घोषणा की थी. इसके अलावा, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दो से अधिक बच्चों के शासन के तहत जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए घोषित कानून इसे एक तार्किक औचित्य देने का एक प्रयास है.

हम यहां यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि बढ़ती जनसंख्या निश्चित रूप से देश और इसके निवासियों के लिए एक बड़ी समस्या है और इसके लिए इस समस्या के समाधान के लिए एक प्रभावी परिवार नियोजन रणनीति होनी चाहिए. लेकिन किसी एक संप्रदाय को निशाना बनाना ठीक नहीं है.

अगर जनसंख्या सेना बनानी है, तो सिर्फ मुसलमानों के लिए ही क्यों? सवाल यह है कि इस देश में जनसंख्या वृद्धि के लिए केवल 20 प्रतिशत मुसलमान ही जिम्मेदार नहीं हो सकते हैं. भारत में सभी सरकारी और गैर-सरकारी एजेंसियों ने पुष्टि की है कि मुसलमानों की आबादी में उल्लेखनीय गिरावट आई है और यह आश्चर्य की बात नहीं है.

जैसे ही मुस्लिमों के पास शिक्षा और धन आएगा, महिलाओं की शिक्षा में विशेष रूप से वृद्धि होगी, जिसके परिणामस्वरूप यह जागरूकता पैदा करनी होगी कि परिवार नियोजन करना चाहिए. स्वैच्छिक परिवार नियोजन सबसे अच्छा तरीका है. यदि योजना स्वैच्छिक नहीं, बल्कि जबरदस्ती है, तो हमने सबसे खराब हाल 1975 और 1977 में आपातकाल की अवधि के दौरान देखा है, जब संजय गांधी ने जनसंख्या दर को नियंत्रित करने के लिए एक आंदोलन चलाया, जिसके परिणामस्वरूप 1977 में ‘आयरन लेडी’ प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके प्रिय संजय गांधी सहित पूरी कांग्रेस पार्टी की लुटिया डूब गई थी.

हमें लोगों को यह समझाने के लिए धर्म, राष्ट्रीयता, भाषा और क्षेत्र के भेद से ऊपर उठने की जरूरत है कि परिवार नियोजन उनके पक्ष में है, न कि दहशत पैदा करने के लिए. आइए हम यहां और मोहन भागवत के शब्दों में एक बात स्पष्ट कर दें कि अब भारत में कोई एक धार्मिक समूह हावी नहीं हो सकता है. न हिंदू और न ही मुसलमान, बल्कि भारतीय हावी होंगे.

संघप्रमुख ने यह भी कहा कि सीएए भारतीय मुसलमानों को नुकसान नहीं पहुंचाएगा. तो क्या मुसलमानों को उन धार्मिक समूहों की सूची से हटाना तर्कसंगत और न्यायसंगत है, जिन्हें उत्पीड़न के आधार पर नागरिकता दी गई है? सवाल यह है कि आप ऐसा कानून क्यों नहीं बनाते, जिसमें धार्मिक अलगाव न हो, बल्कि सिर्फ इतना कहा जाए कि हर इंसान जो अत्याचार और अन्याय का शिकार है, उसे हमेशा की तरह भारत माता की गोद में रखा जा सकता है.

आपको यह अधिकार है कि आप जिसे चाहें नागरिकता दे सकते हैं, न कि तथ्यों के आधार पर जिसे आप चाहते हैं. एक विशेष धार्मिक समूह, मुसलमानों को अलग-थलग करके आप क्या इनाम अर्जित करना चाहते हैं? यह ध्यान देना दिलचस्प है कि खुद असम के वर्तमान भाजपा मुख्यमंत्री सीएए से पूरी तरह सहमत नहीं हैं, का कहना है कि वह ‘असमिया पहचान’ के लोगों के प्रति दृष्टिकोण और नीति के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं. वे सहमत नहीं हैं और इस संबंध में वे न केवल मुसलमानों के साथ, बल्कि बंगाली हिंदुओं और ईसाइयों के साथ भी भेदभाव की ओर इशारा कर रहे हैं.

सरसंघचालक के 4 जुलाई को गाजियाबाद के मेवाड़ विश्वविद्यालय परिसर में दिए गए भाषण और उसमें बताए गए तथ्यों का हममें से अधिकांश लोगों ने समर्थन किया है और आज भी उनके पास उतना ही दिमाग और खुलापन है. लेकिन असम में आरएसएस प्रमुख का बयान एक बार फिर इस देश के कुछ बहुसंख्यकों के मन में मुसलमानों के बारे में जो शंका पैदा की गई है, उसे ताजा कर देता है. हम फिर से कहना चाहेंगे कि हम मुसलमानों के हित को भारत के हित से अलग नहीं मानते.

जो भारत के हित में है, वही मुसलमानों के हित में है. देश का बंटवारा गलत था और यह न तो भारत के लिए सही था और न ही मुसलमानों के पक्ष में, लेकिन जो अपराध सामूहिक है, उसका सिर्फ एक संप्रदाय पर दोष नहीं दिया जाना चाहिए. इस देश के कल्याण, बेहतरी और विकास के लिए हम सभी को मिलकर काम करना चाहिए, , लेकिन यह तब होगा जबः

आ मिलेंगे सीना चाकान चमन से सीना चाक 
 
(लेखक मौलाना आजाद विश्वविद्यालय, जोधपुर के अध्यक्ष और जामिया मिलिया इस्लामिया के प्रोफेसर एमेरिटस हैं.)