ध्रुवीकरण की राजनीति में असल मुद्दे नदारत

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 27-11-2023
Real issues are missing in the politics of polarization
Real issues are missing in the politics of polarization

 

हरजिंदर

चुनाव सिर्फ चुनाव नहीं होते, वे राजनीति के नए तर्क गढ़ने का अखाड़ा भी बन जाते हैं. और जब सांप्रदायिक राजनीति का मामला होता है तो पार्टियां अक्सर मूल मसले को भुला कर एक ही तर्क के दो सिरों को पकड़ कर खींचतान में जुट जाती हैं.तेलंगाना में हुए चुनाव प्रचार के दौरान यह बहुत साफ तौर पर दिखाई दिया है. बेराजगारी और खास कर पढ़े लिखे नौजवानों की बेरोजगारी इस देश का एक बहुत बड़ा सच है. यह उच्च वर्ग और निचले वर्गों में सबमें है.

कुछ में ज्यादा है और कुछ में कम। खासकर दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों में पिछड़ेपन के साथ ही बेरोजगारी कुछ ज्यादा ही है. इसके लिए हमने आरक्षण जैसी व्यवस्थाएं भी की हैं लेकिन यह भी सच है कि इतनी बड़ी समस्या का समाधान सिर्फ इतने भर से ही नहीं होने वाला। तेलंगाना एक ऐसा राज्य है जहां अल्पसंख्यकों के लिए भी चार फीसदी आरक्षण का प्रावधान है, जिसे कुछ लोग बढ़ाकर 12 फीसदी करने की मांग भी कर रहे हैं.
 
इस हफ्ते भाजपा का चुनाव प्रचार करते हुए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि उनकी पार्टी जब तेलंगाना में सत्ता में आएगी तो वह अल्पसंख्यकों को मिलने वाला यह आरक्षण खत्म कर देगी. साथ ही यह भी जोड़ दिया कि आरक्षण का यह कोटा दलितों को दे दिया जाएगा.
 
यहां ध्यान देने की बात यह है कि गृहमंत्री ने रोजगार के अवसर बढ़ाने की बात नहीं कहीं बल्कि एक समुदाय के आरक्षण को दूसरे समुदाय को देने की बात कही है. यानी इसके रोजगार के अवसर उसको देने की बात.बेरोजगारी की इसी समस्या का दूसरा सिरा पकड़ा राज्य के मुख्यमंत्री केसीआर ने.
 
उन्होंने अल्पसंख्यकों के लिए अपनी पार्टी की नीतियों का हवाला देते हुए एक चुनावी रैली में कहा कि वे अल्पसंख्यकों यानी मुसलमानों के लिए एक विशेष आईटी पार्क बनाएंगे. इतना ही नहीं उन्होंने इसे बनाने की जगह भी बता दी. उन्होंने कहा कि यह आईटी पार्क पहाड़ी शरीफ के पास बनेगा.
 
चुनावी रैलियों में सिर्फ वादे किए जाते हैं, वे वादे जब जमीन पर उतरेंगे तो कैसे होंगे यह हम नहीं जान पाते. केसीआर ने यह साफ नहीं किया कि अल्पसंख्यकों के लिए आईटी पार्क बनाने का क्या अर्थ है.
 
क्या इसमें सिर्फ अल्पसंख्कों को ही आईटी कंपनी चलाने का मौका दिया जाएगा ? या यहां सिर्फ अल्पसंख्यकों को ही रोजगार मिलेगा ? या ये दोनों ही चीजें एक साथ होंगी ? यानी क्या वे कोई ऐसी व्यवस्था करेंगे जहां बहुसंख्यक समुदाय के लोगों के लिए दरवाजे बंद रहेंगे ?
 
दुनिया भर में एक ही समुदाय की उन घनी बस्तियों के लिए घैटो शब्द का इस्तेमाल होता है जो उस समुदाय के दायरे को सीमित कर देती हैं. क्या ऐसा ही कोई प्रयोग तेलंगाना में आईटी पार्क को लेकर होने वाला है ?इससे थोड़ा अलग लेकिन ऐसे ही तेवर वाला एक फैसला कुछ समय पहले हरियाणा की सरकार ने किया था.
 
इस फैसले में कहा गया था कि जो भी कंपनियां हरियाणा में कारोबार करेंगी उन्हें 75 फीसदी नौकरियां हरियाणा के नौजवानों को ही देनी होंगी. इस फैसले पर सबसे ज्यादा प्रतिक्रिया गुड़गांव की आईटी कंपनियों में हुई थी. यह भी बताया गया कि इसी कारण से कुछ नई कंपनियों ने गुड़गांव में अपनी इकाई लगाने का फैसला टाल दिया जिसका फायदा ग्रेटर नोएडा को मिला. हालांकि पिछले दिनों हाईकोर्ट में राज्य सरकार का यह फैसला ही परास्त हो गया.
 
आईटी सैक्टर एक ऐसा क्षेत्र है जो किसी पाबंदी और किसी खास घेरे में काम करने का आदी नहीं है, इसलिए केसीआर की कोशिश का नतीजा भी उसी दिशा में जा सकता जिसमें हरियाण सरकार का गया.
 
अगर वे अल्पसंख्यक समुदाय के नौजवानों को लेकर सचमुच चिंतित हैं तो उन्हें शिक्षा और स्किल डेवलपमेंट जैसी व्यवस्थाओं मजबूत करना चाहिए.लेकिन सच यह है कि चुनाव के समय ये सब नहीं सोचा जाता. केसीआर अगर अपनी तरह से वोटों का ध्रुवीकरण कर रहे थे तो अमित शाह अपनी तरह से.
 
( लेखक वरष्ठि पत्रकार हैं )