शिवभक्तों के मसीहा बने डॉक्टर बाबू खान, 23 वर्षों से कर रहे कांवड़ियों की सेवा

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 19-07-2025
Doctor Babu Khan became the messiah of Shiva devotees, serving Kanwariyas for 23 years
Doctor Babu Khan became the messiah of Shiva devotees, serving Kanwariyas for 23 years

 

आवाज द वाॅयस/ नई दिल्ली

श्रावण का महीना आते ही पश्चिम उत्तर प्रदेश की सड़कों पर आस्था का अद्भुत संगम दिखाई देता है. कांवड़ यात्रा के दौरान हजारों-लाखों शिवभक्त गंगाजल लेने हरिद्वार और गंगाघाटों की ओर निकल पड़ते हैं. कांवड़ पथ पर हर ओर भगवा रंग लहराता है, डीजे पर बजते भजन और गूंजते ‘बोल बम’ के जयकारे वातावरण को आध्यात्मिक बना देते हैं.

इसी भीड़ में एक ऐसा चेहरा है जो पिछले 23 वर्षों से न केवल कांवड़ियों की थकान मिटा रहा है बल्कि हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल भी कायम कर रहा है. ये शख्स हैं डॉ. बाबू खान उर्फ बाबू मलिक, जो बागपत जिले के रहने वाले एक मुस्लिम डॉक्टर हैं और सावन के हर साल कांवड़ियों की सेवा के लिए अपने क्लिनिक का दरवाजा बंद कर देते हैं.

डॉ. बाबू खान का कहना है कि “जब मैं इन कांवड़ियों को गंगाजल लाकर भगवान शिव का अभिषेक करने के लिए तपस्या करते देखता हूं, तो मन में सेवा की भावना जागती है. इंसानियत सबसे बड़ा धर्म है, और यह सेवा मेरे लिए किसी पूजा से कम नहीं.”

यही कारण है कि हर साल कांवड़ यात्रा के समय वे अपनी मेडिकल टीम के साथ बागपत और आसपास के कांवड़ पथ पर निःशुल्क मेडिकल कैंप लगाते हैं.

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23 वर्षों से जारी सेवा का संकल्प

करीब 50 वर्षीय डॉ. बाबू खान का यह सफर 23 साल पहले शुरू हुआ था, जब उन्होंने पहली बार कांवड़ियों के बीच प्राथमिक इलाज का स्टॉल लगाया. उनकी सोच साफ थी—धर्म और मजहब से परे रहकर उन थके-हारे यात्रियों की मदद करना, जो शिवभक्ति की राह में कठिनाइयों का सामना कर रहे होते हैं.

आज उनका कैंप कांवड़ यात्रा का अभिन्न हिस्सा बन चुका है.उनके कैंप में मरहम-पट्टी, बैंडेज, ग्लूकोज, दर्दनिवारक इंजेक्शन, एंटीबायोटिक्स और प्राथमिक चिकित्सा की सभी सुविधाएं उपलब्ध रहती हैं. वे स्वयं यात्रियों की चोटों की ड्रेसिंग करते हैं. पैरों के फफोले साफ करते हैं. जरूरत पड़ने पर उन्हें आराम के लिए विश्राम स्थल भी उपलब्ध कराते हैं.

“डॉक्टर हूं, इंसान की सेवा ही मेरा धर्म”

डॉ. बाबू खान कहते हैं, “जब कोई कांवड़िया थकान या दर्द के कारण चलता नहीं, तो उसके चेहरे की तकलीफ मुझसे देखी नहीं जाती. मैं डॉक्टर हूं, और मरीज का दर्द ही मेरे लिए सबसे बड़ा धर्म है. मैं यह नहीं देखता कि सामने वाला किस धर्म का है. मेरे लिए वह इंसान है, और उसकी मदद करना मेरा फर्ज है.”

कांवड़ियों के बीच उनकी लोकप्रियता इतनी है कि कई यात्री हर साल उनसे मिलने और आशीर्वाद लेने आते हैं. कुछ यात्री बताते हैं कि उनके कैंप से दवा लेकर वे राहत महसूस करते हैं, और यह सेवा उन्हें गहरे तक छू जाती है.

‘जय भोलेनाथ’ का उद्घोष करने वाला एक मुस्लिम डॉक्टर

सावन के इस माहौल में जब डॉ. खान सफेद टोपी और लंबी दाढ़ी के साथ खड़े होकर जोर से ‘जय भोलेनाथ’ का उद्घोष करते हैं, तो हर कोई हैरान रह जाता है. उनका मानना है कि “ईश्वर की भक्ति और मानवता का संदेश किसी एक धर्म का नहीं होता. जब मैं ‘हर हर महादेव’ कहता हूं, तो यह मेरे दिल से निकलने वाली सच्ची श्रद्धा होती है.”

कांवड़ सेवा समिति का हिस्सा

बाबू खान न केवल कांवड़ियों की मदद करते हैं बल्कि वे कांवड़ सेवा समिति के सक्रिय पदाधिकारी भी .। वे बताते हैं कि समिति के साथ मिलकर हर साल हजारों कांवड़ियों के लिए निःशुल्क चिकित्सा सुविधा, पीने का पानी, ठंडा शरबत और प्राथमिक उपचार की व्यवस्था की जाती है. उनकी टीम दिन-रात यात्रियों की सेवा में लगी रहती है.

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कट्टरता पर करारा जवाब

डॉ. बाबू खान से जब पूछा जाता है कि उनकी इस सेवा पर कट्टरपंथी क्या सोचते हैं, तो वे मुस्कुराकर कहते हैं, “समाज में हर तरह के लोग होते हैं. लेकिन मेरा मानना है कि भाईचारे की मिसाल देना ही सबसे बड़ा जवाब है. अगर मेरी सेवा से किसी की जान बचती है या उसे राहत मिलती है, तो वही मेरी सबसे बड़ी जीत है.”

समाज में फैलता प्रेम और सौहार्द का संदेश

डॉ. खान की यह सेवा हिंदू-मुस्लिम सौहार्द की ऐसी मिसाल बन चुकी है, जिस पर बागपत ही नहीं, पूरा पश्चिम उत्तर प्रदेश गर्व करता है. कई बार स्थानीय प्रशासन भी उनकी सेवाओं की तारीफ कर चुका है. उनका कहना है कि “नफरत से कोई जीतता नहीं, इंसानियत ही असली धर्म है. अगर हम एक-दूसरे के दर्द को समझ लें, तो समाज में शांति और प्रेम अपने आप पनपने लगेंगे.”

कांवड़ियों की जुबानी बाबू खान की कहानी

कांवड़ियों का कहना है कि डॉ. खान का कैंप उनके लिए ‘जीवनदायिनी छांव’ की तरह है. कई यात्री बताते हैं कि जब रास्ते में किसी को चोट लग जाती है या अचानक तबीयत बिगड़ जाती है, तो डॉ. खान का कैंप ही पहला सहारा बनता है.

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भाईचारे का जीवंत प्रतीक

आज बाबू खान का नाम सिर्फ एक डॉक्टर का नहीं, बल्कि भाईचारे और मोहब्बत की आवाज बन चुका है. उनका मानना है कि “अगर इंसानियत जाग जाए तो धर्म की दीवारें खुद-ब-खुद गिर जाती हैं.”

डॉ. खान की यह सेवा हर साल सावन में प्रेम, सद्भाव और त्याग का संदेश देती है. वे कहते हैं, “मुझे गर्व है कि मैं इस सेवा के जरिए समाज में एकता का संदेश दे पा रहा हूं. हर साल जब कांवड़िए मुझे ‘धन्यवाद’ कहते हैं, तो यह मेरे लिए किसी पुरस्कार से कम नहीं.”