रियो शिखर सम्मेलन भारत के लिए रहा सकारात्मक

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 16-07-2025
Rio Summit ends on a positive note for India; can BRICS be another pole
Rio Summit ends on a positive note for India; can BRICS be another pole

 

सुषमा रामचंद्रन
 
रियो डी जेनेरियो में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन की शुरुआत भले ही एक सहज शुरुआत के साथ हुई हो, लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसे एक हाई-प्रोफाइल शिखर सम्मेलन बनाने में अहम भूमिका निभाई. हालाँकि शिखर सम्मेलन का एजेंडा जलवायु परिवर्तन जैसे अपेक्षाकृत गैर-विवादास्पद मुद्दों पर केंद्रित था, उन्होंने चेतावनी दी कि "अमेरिका-विरोधी" प्रवृत्ति दिखाने वाले किसी भी सदस्य पर उच्च शुल्क लगाए जाएँगे.
 
ऐसी आशंकाओं के बावजूद, रियो घोषणापत्र ने अपना ध्यान मुख्यतः वैश्विक दक्षिण से जुड़े मुद्दों पर केंद्रित रखा. जहाँ तक भारत का सवाल है, उसके पास शिखर सम्मेलन के परिणामों से संतुष्ट होने के पर्याप्त कारण थे.
 
घोषणापत्र में पहलगाम आतंकवादी हमले की कड़ी निंदा की गई और साथ ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में व्यापक सुधार के आह्वान का समर्थन किया गया. इसमें बहुपक्षीय विकास बैंकों के साथ-साथ विश्व व्यापार संगठन (WTO) की नियम-आधारित व्यापार प्रणाली में सुधार का भी आग्रह किया गया.
 
हालांकि, व्यापक भू-राजनीतिक संदर्भ में, इस शिखर सम्मेलन का मूल्यांकन एक अलग आधार पर किया जाएगा. यह इस बात पर निर्भर करेगा कि क्या दस सदस्यीय समूह वैश्विक नेतृत्व के लिए एक वैकल्पिक ध्रुव बनने का दावा करता है. यह मुद्दा अभी तक पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो पाया है. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग, दोनों की अनुपस्थिति में रियो सम्मेलन की चमक फीकी पड़ गई. हाल ही में उनकी गिरफ़्तारी के लिए जारी एक अंतरराष्ट्रीय वारंट के कारण शी जिनपिंग की यात्राओं पर रोक लगा दी गई है.
 
जहाँ तक शी जिनपिंग की बात है, तो 2012 से धार्मिक रूप से नियमित रूप से आयोजित होने वाले इस सम्मेलन में उनके न आने के कारणों पर काफ़ी अटकलें लगाई जा रही हैं. कुछ चीनी पर्यवेक्षक उत्तराधिकार की लड़ाई की बात कर रहे हैं, जबकि अन्य केवल चीनी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की व्यस्तता की ओर इशारा करते हैं.
 
इस खालीपन को कुछ हद तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भरा, जिन्होंने आतंकवाद से निपटने की ज़रूरत के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र प्रणाली की चरमराती संरचना पर भी बात की. कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) के इस युग में, उन्हें लगा कि यह अकल्पनीय है कि वैश्विक संस्थानों को 80 वर्षों में एक बार भी अपग्रेड नहीं किया गया. उन्होंने इसकी तुलना 21वीं सदी के सॉफ़्टवेयर को 20वीं सदी के टाइपराइटरों पर चलाने जैसा बताया. अंतिम वक्तव्य में न केवल संयुक्त राष्ट्र, बल्कि विश्व व्यापार संगठन और बहुपक्षीय विकास बैंकों में सुधार के उनके आह्वान की प्रतिध्वनि थी.
 
वैश्विक दक्षिण के साथ अनुचित व्यवहार पर उनकी टिप्पणियाँ उस समूह के लिए थीं जो 2009 में मूल पाँच देशों - ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका - द्वारा गठित होने के बाद से काफ़ी विस्तृत हो गया है. पिछले दो वर्षों में अब छह अन्य देश - मिस्र, इथियोपिया, ईरान, संयुक्त अरब अमीरात और इंडोनेशिया - भी इसमें शामिल हो गए हैं. इसके अलावा, रियो शिखर सम्मेलन में दस देशों ने भाग लिया, जिन्हें रणनीतिक साझेदार के रूप में परिभाषित किया गया है. इनमें बेलारूस, क्यूबा, मलेशिया, नाइजीरिया और वियतनाम शामिल हैं.
 
भौगोलिक और वैचारिक दोनों ही दृष्टि से इस समूह की विविधता का अर्थ है कि इस मंच के माध्यम से दुनिया में बहुध्रुवीयता का निर्माण एक चुनौती होगी. मेज़बान ब्राज़ील ने इस बार शिखर सम्मेलन के एजेंडे को वैश्विक शासन में सुधार, जलवायु परिवर्तन, बहुपक्षवाद को मज़बूत करने और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसे अपेक्षाकृत गैर-विवादास्पद मुद्दों तक सीमित रखा.
 
हालाँकि, अंतिम घोषणापत्र में ईरान, यूक्रेन और मध्य पूर्व सहित कई वैश्विक विवादों के साथ-साथ भारत में हुए आतंकवादी हमले को भी शामिल किया गया. इस हमले की निंदा से नई दिल्ली खुश तो हुआ, लेकिन ईरान पर हुए हमलों की भी आलोचना की गई, हालाँकि अमेरिका या इज़राइल का ज़िक्र तक नहीं किया गया. शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के विपरीत, भारत ने इस आलोचना से खुद को अलग नहीं रखा है, जिसका स्पष्ट कारण हाल ही में भारत-अमेरिका के बीच संबंधों में आई कमी है.
 
फिर भी, इस समूह की एकरूपता की कमी ने अमेरिका को इसे एक उभरते हुए शक्ति केंद्र के रूप में देखने से नहीं रोका है. डोनाल्ड ट्रंप का सार्वजनिक आक्रोश इस तेज़ी से बढ़ते हुए संगठन से संभावित खतरे की धारणा से उपजा है. पिछले रूस शिखर सम्मेलन के बाद चेतावनी दी गई थी कि डॉलर-विमुद्रीकरण चाहने वालों पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगाया जाएगा. इस बार खतरा ब्रिक्स की "अमेरिका-विरोधी" नीतियों का समर्थन करने वाले किसी भी देश पर दस प्रतिशत टैरिफ लगाने का है.
 
पहले की धमकी पर भारत की प्रतिक्रिया समझौतापूर्ण रही थी क्योंकि विदेश मंत्री जयशंकर ने डी-डॉलरीकरण में किसी भी रुचि से इनकार किया था. रूस और चीन ने अब यह कहते हुए प्रतिक्रिया व्यक्त की है कि समूह का अन्य देशों के प्रति कोई आक्रामक इरादा नहीं है, लेकिन भारत ने कोई टिप्पणी नहीं की है. यह हाल ही में ट्रंप द्वारा पैदा की गई अनावश्यक परेशानियों के कारण द्विपक्षीय संबंधों में आई ठंडक को दर्शाता है. ये परेशानियाँ भारत-पाकिस्तान युद्धविराम का लगातार दावा करने के साथ-साथ इस देश की टैरिफ नीतियों पर लगातार कटाक्ष करने के रूप में रही हैं.