डॉ. सैयद ज़फ़र महमूद
यूपीएससी द्वारा आयोजित सिविल सेवा परीक्षा के 2025के परिणामों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए हमें हर वर्ष की तरह केवल कुछ मिनटों के विश्लेषण तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि इस परिणाम को अपने लिए एक मील का पत्थर मानना चाहिए.हममें से प्रत्येक को स्वयं से पूछना चाहिए कि आज से पहले वर्ष के शेष 364दिनों में स्थिति को सुधारने के लिए मैंने व्यक्तिगत रूप से क्या कदम उठाए?
इस संबंध में, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यूपीएससी के माध्यम से सिविल सेवाओं में शामिल होने वाले लोगों की संख्या हाल के वर्षों में देश भर में सात या आठ साल पहले की तुलना में कम हो गई है.उस समय यह संख्या बढ़कर 1,250 हो गई थी, लेकिन तीन साल पहले यह घटकर 650 हो गई. फिर बढ़ी, लेकिन प्रवृत्ति नीचे की ओर है.
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि केंद्र सरकार ने अपनी नीति में एक और बदलाव किया है.एक आईएएस अधिकारी सेवा में शामिल होने के सत्रह साल बाद केंद्र में संयुक्त सचिव बनता है.लेकिन पिछले कई वर्षों से सरकार संयुक्त सचिव के पदों को भरने के लिए बड़ी कंपनियों से सीधी भर्ती कर रही है, जिसे लैटरल एंट्री कहा जाता है.यह भी सिविल सेवाओं में भर्ती की संख्या में देशव्यापी गिरावट का एक कारण है.
तीसरा बिन्दु हाल के वर्षों में हमारे प्यारे वतन में आए पर्यावरण परिवर्तन से संबंधित है, जिसके बारे में हम अच्छी तरह से जानते हैं, लेकिन हम यह भी जानते हैं कि स्थितियाँ उतनी बुरी नहीं हैं जितनी पवित्र पैगम्बर (सल्लल्लाहू अलैहि व सल्लम) के मिशन के प्रारंभिक काल में मक्का में थीं.
हां, फर्क इतना है कि हमने आजादी के बाद के छह-सात दशक शांति और सुकून में बिताए.हमने उस लम्बे, बहुमूल्य समय का उपयोग राष्ट्र को आंतरिक रूप से नियमित रूप से मजबूत करने के लिए नहीं किया.हमने कुछ शैक्षणिक संस्थान बनाए हैं, लेकिन अब हम यह भी देख रहे हैं कि ये संस्थान तभी काम कर पाएंगे जब देश के शासन में हमारी उचित हिस्सेदारी होगी.
आजादी के बाद कई दशकों तक हमने यूपीएससी सिविल सेवा और इसी तरह की अन्य केंद्रीय और प्रांतीय प्रतियोगी परीक्षाओं में अपने युवाओं की भागीदारी पर कोई ध्यान नहीं दिया.न ही हमें इस बात का अहसास हुआ कि हर बार संसदीय व विधानसभा क्षेत्रों तथा लाखों शहरी व ग्रामीण निकायों (नगर निगम, नगर पालिका बोर्ड, जिला परिषद, पंचायत समिति, ग्राम पंचायत) के वार्डों के परिसीमन में छेड़छाड़ करके हमें भीतर से कमजोर किया जा रहा है.जाहिर है, जब जागरूकता ही नहीं थी तो हम सुधारात्मक कार्रवाई कैसे कर सकते थे?
उस विस्मृति के परिणामस्वरूप, हम आज न्याय के समय में हैं, और अल्लामा इकबाल के अनुसार, अब हमें ऐसे कार्य करने हैं जिन्हें हम ईश्वर के कार्यालय में प्रस्तुत कर सकें.ये कार्य ही राष्ट्र को स्थायी आंतरिक शक्ति प्राप्त करने में सक्षम बनाएंगे, जिससे 22वीं सदी के आते-आते राष्ट्र की स्थिति में सुधार होगा.
पचास साल पहले, पिछली सदी में, चौधरी मुहम्मद आरिफ के कहने पर देश के शुभचिंतकों ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय जाकर वहां के सबसे योग्य छात्रों को सिविल सेवा परीक्षा में भाग लेने के लिए संगठित किया था.बाद में वहां एक आवासीय कोचिंग अकादमी भी स्थापित की गई.
इस बीच, दिल्ली में चौधरी मुहम्मद आरिफ ने इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर की स्थापना के लिए संघर्ष किया और 1982 में, जैसे ही उन्हें दिल्ली में लोदी रोड पर जमीन और दो पुराने जीर्ण-शीर्ण बंगलों का कब्जा मिला, उन्होंने देश भर से अपने बच्चों को वहां भेजना शुरू कर दिया और उन्हें प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग लेने में सहायता प्रदान करना शुरू कर दिया, क्योंकि यह कार्य केंद्र की स्थापना के मुख्य उद्देश्यों में से एक था.यह कार्य बहुत सफल रहा .लगभग 200 युवा सरकारी विभागों में काम करने लगे.
उसके बाद 1991 में हकीम अब्दुल हकीम और सैयद हामिद ने हमदर्द फाउंडेशन के तहत दिल्ली के तालीमाबाद में सिविल सेवा अध्ययन केंद्र की स्थापना की.फिर 2006में जस्टिस राजेंद्र सच्चर कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद ज़कात फाउंडेशन ऑफ़ इंडिया ने दिल्ली में सर सैयद कोचिंग एंड गाइडेंस सेंटर की स्थापना की.
इस बीच, दिल्ली की जामिया मिलिया इस्लामिया, हैदराबाद की मौलाना आज़ाद उर्दू यूनिवर्सिटी और मुंबई की हज कमेटी ऑफ इंडिया ने भी इस काम के लिए संस्थागत कदम उठाए.इन सभी प्रयासों के परिणामस्वरूप, हमारे युवाओं में यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षाओं में बैठने के महत्व के बारे में जागरूकता अधिक व्यापक हो गई है और उनके लिए संस्थागत कोचिंग सुविधाओं की कोई कमी नहीं है.
नतीजा ये हुआ कि आज़ादी से लेकर 2016 तक, UPSC सिविल सेवा में हमारी हिस्सेदारी का जो जादू था, जो 2.5 प्रतिशत था, वो टूट गया, शुक्र है, और ये 5 प्रतिशत को पार कर गया.लेकिन अब, जब हम 21 वीं सदी के दूसरे दशक के अंत की ओर बढ़ रहे हैं, देश में बदलते माहौल और यूपीएससी सिविल सेवा के वार्षिक प्रवेश में गिरावट को देखते हुए, हमारे लिए अपनी रणनीति का विस्तार करना और भी अधिक महत्वपूर्ण हो गया है.यूपीएससी सिविल सेवा के अलावा, राष्ट्र की आंतरिक मजबूती के लिए कई मंच हैं.
देश में 25से अधिक प्रांतीय लोक सेवा आयोग और इतनी ही संख्या में उच्च न्यायालय हैं.इन सभी के माध्यम से हर साल बड़ी संख्या में सरकारी रिक्तियां भरी जाती हैं.इसके अलावा, केन्द्रीय कर्मचारी चयन आयोग हर साल करीब पचास हजार भर्तियां करता है.
इन सब बातों को एक साथ जोड़कर देखने पर पता चला कि चार से पांच लाख सरकारी पदों को भरने के लिए हर साल आयोजित की जाने वाली परीक्षाओं में आजादी के 78साल बाद भी राष्ट्र को शामिल करने के लिए कोई संस्थागत प्रयास नहीं किया गया है.
इस कमी को दूर करने के लिए, ज़कात फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने लखनऊ, बहराइच और भोपाल में सर सैयद कोचिंग और मार्गदर्शन केंद्र की शाखाएं स्थापित कीं, क्योंकि इन जगहों पर, अल्लाह से प्यार करने वालों ने ज़ेडएफआई के आह्वान का जवाब दिया, संपत्ति और वित्तीय सहायता प्रदान की और हर तरह से खुद को पेश किया.
अल्हम्दुलिल्लाह, सफलताएं शुरू हो गई हैं.बहराइच में पचास लड़कों के लिए निःशुल्क आवास की भी व्यवस्था है.याद रखें कि उपरोक्त अधिकांश केन्द्रीय एवं प्रान्तीय परीक्षाओं में उम्मीदवारी के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता केवल 12वीं कक्षा है.और कई भर्तियों के लिए केवल ऑनलाइन लिखित परीक्षा होती है, साक्षात्कार नहीं होता। और लिखित परीक्षा की मार्किंग भी कंप्यूटर ही करता है.
वर्तमान में कक्षा 9-10में पढ़ने वाले बच्चों के लिए सप्ताह में तीन दिन एक घंटे की कक्षाओं के साथ विशेष ऑनलाइन कोचिंग प्रदान करता है.ताकि बच्चे इन परीक्षाओं से परिचित हो सकें और उनकी तैयारी कर सकें.ये बच्चे 12वीं पास करने के बाद प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल हो सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें सरकारी सत्ता, सरकारी आवास, अच्छा वेतन आदि मिलता है.बाद में, वे उच्च शैक्षणिक डिग्री भी प्राप्त कर सकते हैं और आगे की परीक्षाओं में बैठ सकते हैं.
दरअसल, सहायता की जरूरत मिल्लत द्वारा संचालित स्कूलों, जहां कक्षा 9 से 12 तक के बच्चे पढ़ रहे हैं, के प्रशासन से बात करके उन्हें स्कूल के एक बड़े कमरे में प्रोजेक्टर और स्क्रीन लगाने के लिए राजी करना और इन बच्चों के लिए सप्ताह में तीन दिन सिर्फ एक घंटे के लिए जेडएफआई की.ऑनलाइन कक्षाओं में शामिल होने की व्यवस्था करना है.इसके अतिरिक्त, पिछले बारह वर्षों से परिसीमन विभाग भी कार्यरत है, जिस पर बाद में विस्तार से चर्चा की जाएगी, ईश्वर की इच्छा से.
(डॉ. सैयद ज़फ़र महमूद,अध्यक्ष, ज़कात फाउंडेशन ऑफ इंडिया, नई दिल्ली)