क्या इस्लाम ट्रांसजेंडर पहचान को मान्यता देता है? कुरआन, हदीस और समकालीन व्याख्याएँ

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 20-06-2025
What does Islam's teaching say about transgender people?
What does Islam's teaching say about transgender people?

 

इमान सकीना

इस्लाम, एक सम्पूर्ण जीवन पद्धति के रूप में, मानव पहचान के विभिन्न पहलुओं को संबोधित करता है, जिसमें लिंग से संबंधित विषय भी शामिल हैं.ट्रांसजेंडर पहचान – यानी ऐसे व्यक्ति जिनकी लैंगिक पहचान उनके जन्म के समय निर्धारित लिंग से अलग होती है – एक ऐसा मुद्दा है जिसे हाल के दशकों में अधिक प्रमुखता मिली है.

हालांकि "ट्रांसजेंडर" जैसे आधुनिक शब्द पारंपरिक इस्लामी ग्रंथों में स्पष्ट रूप से नहीं मिलते, लेकिन इस्लामी विद्वानों और फुक़हा (शरिया कानून के विशेषज्ञों) ने सदियों पहले से इस जैसे विचारों पर चर्चा की है.

इस्लाम दो प्रमुख जैविक लिंगों को स्वीकार करता है: पुरुष (धक़र) और महिला (उनथा).ये भेद केवल जैविक ही नहीं बल्कि धार्मिक आदेशों में भी गहराई से समाहित हैं, जैसे कि विरासत, नमाज़, पहनावे और पारिवारिक जिम्मेदारियाँ.

हालाँकि, इस्लाम एक तीसरे प्रकार के लोगों के अस्तित्व को भी मान्यता देता है, जिन्हें शास्त्रीय अरबी में "खुन्था" कहा जाता है.खुन्था वह व्यक्ति होता है जिसमें पुरुष और महिला दोनों के शारीरिक लक्षण पाए जाते हैं और जन्म के समय उनका लिंग स्पष्ट नहीं होता.इस्लामी विद्वानों ने खुन्था को दो प्रकारों में विभाजित किया है:

खुन्था मुशकिल – एक अस्पष्ट इंटरसेक्स व्यक्ति, जिसकी प्रमुख लिंग पहचान तय नहीं की जा सकती.

खुन्था ग़ैर मुशकिल – ऐसा इंटरसेक्स व्यक्ति जिसकी लिंग पहचान उम्र बढ़ने के साथ स्पष्ट हो जाती है.

इस्लामी कानून खुन्था व्यक्तियों के लिए विशेष नियमों को निर्धारित करता है ताकि उनकी गरिमा, अधिकार और सामाजिक समावेशन सुनिश्चित किया जा सके.इस श्रेणी की मान्यता यह दर्शाती है कि इस्लाम मानव सृजन में लिंग विविधता को समझता है.

जहाँ खुन्था जैविक इंटरसेक्स स्थितियों से संबंधित है, वहीं ट्रांसजेंडर पहचान मनोवैज्ञानिक और आत्मिक स्तर पर उस लिंग से पहचान बनाना है जो कि जन्म के समय निर्धारित लिंग से अलग हो.यह अंतर महत्वपूर्ण है,क्योंकि पारंपरिक इस्लामी कानून मुख्यतः इंटरसेक्स लोगों से संबंधित था, और "जेंडर डिस्फोरिया" (लैंगिक पहचान और जैविक लिंग में असामंजस्य) एक आधुनिक अवधारणा है.

फिर भी, कई समकालीन इस्लामी विद्वान खुन्था के लिए दिए गए इस्लामी करुणा और न्याय के आधार पर ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के मामलों पर भी विचार करते हैं, विशेष रूप से तब जब लिंग परिवर्तन वास्तविक मानसिक और भावनात्मक कष्ट के आधार पर किया गया हो और चिकित्सा सलाह से समर्थित हो.

इस्लाम में मानव गरिमा और ट्रांसजेंडर लोग

इस्लाम के मूल सिद्धांतों में से एक है मानव जीवन की पवित्रता और गरिमा.अल्लाह ने क़ुरआन में फ़रमाया:“निश्चित ही, हमने आदम की संतान को सम्मानित किया है...”(सूरह अल-इसरा, 17:70)

यह सम्मान सभी लोगों के लिए है, चाहे उनकी लैंगिक पहचान कुछ भी हो.इस्लाम दया, सहानुभूति और न्याय सिखाता है.भले ही असहमति हो, मुसलमानों को दूसरों के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करने का आदेश दिया गया है.पैग़म्बर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) समाज के सभी वर्गों के साथ उनके समावेशी और गरिमामय व्यवहार के लिए प्रसिद्ध थे, विशेषकर उनके साथ जो हाशिए पर थे.

हदीसों में ऐसे व्यक्तियों (मुखन्नथून) का भी उल्लेख मिलता है जो स्त्रियों जैसे व्यवहार करते थे.हालांकि, विपरीत लिंग की नकल को नापसंद किया गया, फिर भी इन व्यक्तियों को अपमानित या उत्पीड़ित नहीं किया गया.कुछ मामलों में जब यह स्पष्ट था कि उनमें महिलाओं के प्रति यौन रुचि नहीं थी, तो उन्हें महिलाओं के बीच अनुमति दी जाती थी.

मुस्लिम ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ता है: अपनी पहचान और अपने ईमान के बीच संतुलन बैठानाऔर सामाजिक बहिष्कार का सामना करना.इस्लाम नैतिक आदेश को बनाए रखने और करुणा दिखाने के बीच संतुलन का समर्थन करता है.इसलिए, किसी व्यक्ति को पूरी तरह नकारने की बजाय, सहानुभूति और ज्ञान-आधारित दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है.

समाज, विद्वानों और परिवारों को चाहिए कि वे:

इस्लामी, चिकित्सा और मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञों से जानकारी प्राप्त करें.

मज़ाक या अपमान से बचें, क्योंकि इस्लाम दूसरों को नुकसान पहुँचाने से मना करता है.

मानसिक स्वास्थ्य का समर्थन करें और व्यक्तियों को इस्लामी दृष्टिकोण से जीवन जीने में मार्गदर्शन दें.

इस्लाम की बुनियाद में यह विश्वास है कि अल्लाह सब कुछ जानने वाला, सबसे दयालु और न्याय करने वाला है.हर इंसान को उद्देश्य के साथ बनाया गया है और उसे सम्मान के साथ पेश आना चाहिए.मुस्लिम समुदाय की यह जिम्मेदारी है कि अपने धार्मिक सिद्धांतों को बनाए रखते हुए, समाज के हर सदस्य की देखभाल और सहयोग करे.

जैसा कि पैग़म्बर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया:“अल्लाह के नज़दीक सबसे प्यारा इंसान वह है, जो दूसरों के लिए सबसे अधिक लाभकारी हो.”(अल-मुअजम अल-अवसत)

हालाँकि ट्रांसजेंडर पहचान पर इस्लामी फ़िक़्ह (क़ानून) में विद्वानों के बीच मतभेद हो सकते हैं, लेकिन रहमत (दया), इंसाफ़ (न्याय), और इंसानी गरिमा जैसे सार्वभौमिक मूल्य किसी भी चर्चा के केंद्र में होने चाहिए.यही इस्लाम की असली आत्मा है.