क्या पाकिस्तान आंतरिक और बाह्य संकटों के चौराहे पर है?

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 24-10-2025
Is Pakistan at the crossroads of internal and external crises?
Is Pakistan at the crossroads of internal and external crises?

 

शंकर कुमार

पिछले सप्ताह अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच सात दिनों तक चली भीषण झड़पों में दर्जनों लोगों की मौत हो गई, जिनमें तीन अफगान क्रिकेटर भी शामिल थेऔर हजारों नागरिकों को अपने घर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा.इसके बाद दोहा में हुई वार्ता के दौरान दोनों देशों ने संघर्षविराम पर सहमति जताई.लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या यह संघर्षविराम स्थायी होगा?

तालिबान शासित अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच गहरे अविश्वास के चलते इस संघर्षविराम के टूटने की पूरी संभावना बनी हुई है.इसके कई कारण हैं.पहला, अफगानिस्तान डुरंड रेखा को पाकिस्तान के साथ सीमा नहीं मानता.1893 में ब्रिटिश और रूसी प्रभाव क्षेत्रों के बीच एक बफर ज़ोन के तौर पर बनाई गई यह रेखा आज भी विवाद का विषय है.अफगान तालिबान इसे अफगान भूभाग मानते हैं, और इसका असर क़तर के विदेश मंत्रालय के बयान में ‘सीमा’ शब्द हटाए जाने में देखा गया.

दूसरा, पाकिस्तान तालिबान पर तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) को पनाह देने का आरोप लगाता है, जिसे अफगानिस्तान सिरे से नकारता है.तीसरा, अफगान तालिबान मानते हैं कि 2001 में अमेरिका और नाटो सेनाओं को पाकिस्तान ने अपनी जमीन दी थी, जिससे उन्हें सत्ता छोड़नी पड़ी.

चौथा, तालिबान के भारत की ओर झुकाव से भी पाकिस्तान असहज है.हाल ही में अफगान कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी की भारत यात्रा को इस बदलते समीकरण का प्रतीक माना गया.1947 से ही दोनों देशों के बीच अविश्वास और कटुता बनी रही है। ऐसे में इनसे अच्छे पड़ोसी रिश्तों की उम्मीद करना दिन में तारे देखने जैसा है.

भीतर से उभरती दरारें

पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह अपने अंदर के संकटों को नजरअंदाज कर रहा है.पाकिस्तान अक्सर अफगान तालिबान पर टीटीपी को संरक्षण देने का आरोप लगाकर खुद को पीड़ित दिखाने की कोशिश करता है, लेकिन वह अपने देश में मौजूद असंतोष और हिंसा की अनदेखी करता है.

खैबर पख्तूनख्वा, जहां पख्तून बहुसंख्या में हैं, वहां हिंसा आम हो चुकी है.पाकिस्तान सेना के मुताबिक, 15 सितंबर 2025 तक इस प्रांत में 1425 लोगों की हत्या हो चुकी थी, जिनमें 303 सैनिक और 73 पुलिसकर्मी शामिल थे.
यहां के लोग लंबे समय से पाकिस्तान सरकार और सेना पर भेदभाव और दमन का आरोप लगाते आ रहे हैं.22 सितंबर 2025 को पाकिस्तान एयरफोर्स ने तिराह घाटी के मत्रे डेरा गांव पर हवाई हमला कर 30 नागरिकों को मार डाला, जिनमें महिलाएं और बच्चे शामिल थे.जनवरी से सितंबर 2025 तक, खैबर पख्तूनख्वा ने पूरे देश की हिंसा से जुड़ी 71% मौतें झेली हैं और 67% हिंसक घटनाएं यहीं हुईं.

बलूचिस्तान, जो प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है, दूसरा सबसे अशांत प्रांत है.21 अक्टूबर को बलूच सशस्त्र संगठनों और पाकिस्तानी सेना के बीच झड़प में दर्जनों सैनिक मारे गए.सेना के नेतृत्व में किए गए ड्रोन हमलों में कई नागरिकों की मौत हुई.CRSS के मुताबिक, इस प्रांत में पिछले साल की तुलना में हिंसा में 25% वृद्धि हुई है.

बलूच लोगों को उनके संसाधनों से वंचित कर दिया गया है.भूख, बेरोजगारी, और गरीबी ने यहां डेरा जमा लिया है.FAO की रिपोर्ट के अनुसार, बलूचिस्तान, सिंध और खैबर पख्तूनख्वा में करीब 1.1 करोड़ लोग खाद्य संकट से जूझ रहे हैं.बलूच नेशनल मूवमेंट के अनुसार, जून 2025 तक 33 फर्जी मुठभेड़ों और 84 जबरन गायब किए जाने के मामले दर्ज किए गए.

सिंध और पीओके में असंतोष

सिंध भी अब पाकिस्तान से आज़ादी की मांग करने वाला दूसरा प्रांत बन गया है। 7 अक्टूबर को सिंध में जाफर एक्सप्रेस ट्रेन में धमाका हुआ, जिससे कई लोग घायल हो गए.यहां के लोग अपनी संस्कृति और पहचान के दमन का आरोप लगाते हैं.उर्दू थोपे जाने और आर्थिक शोषण ने उनकी असंतोष की आग को और भड़काया है.

पाक अधिकृत कश्मीर (PoK) में भी हालात बिगड़ते जा रहे हैं.मंगला डैम से उत्पन्न बिजली पर मनमानी करों के खिलाफ मुज़फ्फराबाद, कोटली और मीरपुर में बड़े प्रदर्शन हुए.आंदोलनों को दबाने के लिए सेना ने फायरिंग की, जिसमें 10 लोग मारे गए.बाद में सरकार को प्रदर्शनकारियों की सभी मांगें माननी पड़ीं, लेकिन स्थायी समाधान के लिए समावेशी राजनीति, आर्थिक राहत और संस्थागत सुधार की आवश्यकता है.

बाहरी मोर्चों पर भी झगड़े

पाकिस्तान की असली समस्या उसका जमीनी हकीकत से न जुड़ पाना है.परमाणु ताकत होने के दंभ में वह खुद को आतंकवाद का शिकार दिखाता है, जबकि वह खुद इन तत्वों को पनाह देता है.

2024 की शुरुआत में ईरान और पाकिस्तान के बीच सीमा पर हवाई हमले हुए.ईरान ने कहा कि उसने जैश अल-अदल के ठिकानों पर हमला किया, जिसके जवाब में पाकिस्तान ने भी जवाबी हमला किया, जिसमें कई लोग मारे गए.2017 में पाकिस्तान ने एक ईरानी ड्रोन को मार गिराया था.2018 में जैश अल-अदल ने 12 ईरानी सुरक्षाकर्मियों को अगवा कर लिया था.

ईरान ने पाकिस्तान पर बार-बार आतंकवाद को समर्थन देने का आरोप लगाया है.दिसंबर 2018 में ईरान के तत्कालीन विदेश मंत्री ने पाकिस्तान को “विदेशी समर्थन प्राप्त आतंकवाद” का गढ़ कहा था.

भारत के साथ भी पाकिस्तान की नीति हमेशा शत्रुतापूर्ण रही है.हाल ही में पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने भारत को “निर्णायक जवाब” की धमकी दी.22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों के हमले में 26 नागरिकों की मौत के बाद भारत ने “ऑपरेशन सिंदूर” शुरू किया, जिसमें पाकिस्तान के नौ आतंकी ठिकानों को तबाह किया गया.बाद में पाकिस्तान की ओर से संघर्षविराम की गुहार लगाई गई। भारत ने स्पष्ट किया कि अब आतंकवाद युद्ध की तरह लिया जाएगा.

आर्थिक रूप से कंगाल होते हुए भी पाकिस्तान ने रक्षा बजट में 20% की वृद्धि की है, जबकि वह IMF के बेलआउट पर निर्भर है.भारत से शत्रुता ने पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचाया है.फिर भी पाकिस्तान अपने पुराने गलतियों से सीखने को तैयार नहीं दिखता.

निष्कर्ष

भीतरू असंतोष, सामाजिक विद्रोह, आर्थिक संकट और हर पड़ोसी से बिगड़ते रिश्ते इस ओर इशारा करते हैं कि पाकिस्तान अंदर और बाहर, दोनों मोर्चों पर बुरी तरह जूझ रहा है। अगर जल्द ही सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए, तो देश की एकता और अस्तित्व पर गंभीर खतरा मंडरा सकता है.