दिल में तक़वा, व्यवहार में आदाब : मुस्लिम समाज का असली सार

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 24-10-2025
Taqwa in the heart, Adab in behavior: The true essence of Muslim society
Taqwa in the heart, Adab in behavior: The true essence of Muslim society

 

ईमान सकीना

इस्लाम में, अदब—जो शिष्टाचार(आदाब), नैतिकता और नैतिक आचरण जैसे गुणों का समावेश करता है,किसी भी आस्तिक के चरित्र की नींव और एक स्वस्थ मुस्लिम समाज का सार है.यह सिर्फ़ बाहरी व्यवहार या विनम्र हाव-भाव का प्रदर्शन नहीं है, बल्कि व्यक्ति के आंतरिक ईमान (आस्था) और तक़वा (अल्लाह की चेतना) का सच्चा प्रतिबिंब है.जिस तरह से एक मुस्लिम दूसरों का अभिवादन करता है, बोलता है, खाता हैया यहाँ तक कि सोचता है, आदाब जीवन के हर पहलू का मार्गदर्शन करता है.पैगंबर मुहम्मद (सल्ल.) ने ज़ोर दिया था कि अच्छे शिष्टाचार सच्चे धर्मपरायणता की निशानी हैं.

उन्होंने फ़रमाया कि “तुममें से सबसे प्रिय वे हैं, जिनका शिष्टाचार सबसे अच्छा है.” (सुनन अल-तिर्मिज़ी, 2018).यह स्पष्ट करता है कि अदब इस्लामी पहचान और सामाजिक सद्भाव का एक मूल तत्व है, न कि कोई वैकल्पिक गुण.

क़ुरआन मजीद में बार-बार नेक आचरण और अच्छे चरित्र के महत्व पर प्रकाश डाला गया है.अल्लाह तआला का आदेश है: “और लोगों से अच्छी बात कहो.” (सूरह अल-बक़रह, 2:83).यह आज्ञा दर्शाती है कि सभी मानवीय बातचीत सम्मान और दयालुता पर आधारित होनी चाहिए.क़ुरआन पैगंबर (सल्ल.) की भी महान चरित्र के आदर्श के रूप में प्रशंसा करता है, फ़रमाता है: “और वास्तव में, आप एक महान नैतिक चरित्र पर हैं.” (सूरह अल-क़लम, 68:4).

इस प्रशंसा से यह स्पष्ट होता है कि नैतिक उत्कृष्टता आस्था के केंद्र में है.पैगंबर (सल्ल.) का जीवन आदाब का जीता-जागता उदाहरण था, जिसमें कमज़ोरों के प्रति दया और सबके प्रति विनम्रता थी.इस्लाम में अच्छे शिष्टाचार को मज़बूत आस्था की निशानी माना गया है.पैगंबर (सल्ल.) ने कहा: “ईमान में सबसे उत्तम मोमिन वह है, जो चरित्र में सबसे अच्छा है.” (सुनन अबू दाऊद, 4682).इससे साबित होता है कि आस्था केवल नमाज़ या रोज़ा जैसी इबादत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आपसी व्यवहार तक फैली हुई है, जो आंतरिक विश्वास को बाहरी कार्य से जोड़ती है.

आदाब की ख़ासियत इसकी सार्वभौमिकता है.यह माता-पिता, पड़ोसियों, बुज़ुर्गों, बच्चों और यहाँ तक कि अजनबियों सहित हर मानवीय रिश्ते पर लागू होता है.माता-पिता के प्रति अदब का सबसे ऊँचा रूप है, जिसके लिए क़ुरआन आदेश देता है कि “उनके लिए दया से विनम्रता का पंख झुकाओ और कहो, ‘मेरे रब, उन पर दया कर जैसे उन्होंने मुझे बचपन में पाला था.’” (सूरह अल-इस्रा, 17:24).

पड़ोसियों के प्रति पैगंबर (सल्ल.) का कथन है कि “वह मोमिन नहीं है जिसका पड़ोसी उसकी शरारत से सुरक्षित न हो” (सहीह अल-बुख़ारी, 6016), जो सामुदायिक सद्भाव और मददगार होने पर ज़ोर देता है.इसी तरह, कमज़ोरों और ग़रीबों के प्रति अदब दिखाना नैतिक शक्ति और सहानुभूति को दर्शाता है, क्योंकि इस्लाम अहंकार की निंदा करता है.

परिवार के भीतर अदब शांति और स्नेह लाता है; पैगंबर (सल्ल.) ने कहा, “तुममें से सबसे अच्छे वे हैं, जो अपने परिवार के लिए सबसे अच्छे हैं” (सुनन अल-तिर्मिज़ी, 3895), जिससे परिवार अच्छे शिष्टाचार का पहला विद्यालय बन जाता है.

आदाब के सबसे स्पष्ट संकेतों में से एक बोलने का तरीक़ा है.इस्लाम सिखाता है कि शब्द या तो घाव भर सकते हैं या नुकसान पहुँचा सकते हैं, इसलिए पैगंबर (सल्ल.) ने फ़रमाया: “जो कोई अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान रखता है, उसे अच्छी बात कहनी चाहिए या चुप रहना चाहिए.” (सहीह अल-बुख़ारी, 6136).

विनम्रता, सच्चाई और विनम्रता सामाजिक संघर्षों को रोकती हैं.व्यवहार में आदाब—जैसे अस्सलाम अलैकुम कहकर अभिवादन करना, गपशप से बचना, और दूसरों के साथ गरिमापूर्ण व्यवहार करना—सम्मान और शांति का माहौल बनाता है.व्यापक सामाजिक संदर्भ में, आदाब न्याय, सहयोग और शांति को बढ़ावा देता है; इस्लामी शिष्टाचार द्वारा निर्देशित समाज ईमानदारी और निष्पक्षता को महत्व देता है.यहाँ तक कि पर्यावरण के प्रति अदब—बर्बादी से बचना, जानवरों के प्रति दया दिखाना, और सफ़ाई बनाए रखना—भी नैतिक कर्तव्य का हिस्सा है.

इस्लामी सभ्यता में, शिक्षा (तर्बियाह) हमेशा आदाब के साथ जुड़ी रही है, क्योंकि इमाम अल-ग़ज़ाली जैसे विद्वानों ने ज़ोर दिया कि शिष्टाचार के बिना ज्ञान अधूरा है.उनके अनुसार, कम ज्ञान वाला एक अच्छा शिष्टाचार वाला व्यक्ति, आदाब के बिना ज्ञानी व्यक्ति से बेहतर है, क्योंकि शिष्टाचार ज्ञान को अहंकार और दुरुपयोग से बचाता है.

आज के युग में, जहाँ भौतिकवाद और व्यक्तिवाद नैतिकता पर हावी हो रहे हैं, आदाब का पुनरुत्थान पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है.जब आदाब हमारे कार्यों को नियंत्रित करता है, तो संघर्ष कम होते हैं, रिश्ते फलते-फूलते हैं, और समुदाय दयालु बन जाते हैं.आदाब को पुनर्जीवित करना इस्लाम के सार को पुनर्जीवित करना है: अल्लाह से प्रेम, मानवता के लिए करुणा, और व्यवहार में अनुशासन.पैगंबर (सल्ल.) के अनुसार: “क़ियामत के दिन मोमिन की तराज़ू पर अच्छे चरित्र से ज़्यादा भारी कुछ नहीं होगा.” (सुनन अल-तिर्मिज़ी, 2003).इस प्रकार, आदाब पर आधारित समाज शांति, गरिमा और ईश्वरीय आशीर्वाद का समाज है.