हरजिंदर
सैर सपाटे के लिए वहां जाने वाले लोगों को नेपाल कईं बार एक पहेली लगता है. आमतौर पर जो लोग कहीं जाने से पहले वहां के बारे में काफी कुछ पढ़ लेते हैं उन्हें आंकड़ों से पता लगता है कि हिंदू और बौद्ध धर्म के बाद इस्लाम नेपाल का तीसरा बड़ा धर्म है. नेपाल में इस समय मुस्लिम समुदाय की आबादी पांच फीसदी से ज्यादा है. इसके बाद अलग तरह की पूजा पद्वति वाले कीरत समुदाय के लोग हैं जिनकी आबादी तीन फीसदी से ज्यादा है.
ईसाई पांचवे नंबर पर आते हैं जिनकी आबादी वहां दो फीसदी से भी कम है.सैलानी जब नेपाल पहंुचते हैं तो उन्हें वहां जगह-जगह पर गिरजाघर दिखते हैं, लेकिन उसके मुकाबले मस्जिदें बहुत कम नजर आती हैं. ईसाई ज्यादा दिखते हैं और मुसलमान बहुत कम. इसलिए नेपाल जाने वाले कुछ लेखकों ने यह सवाल भी पूछा है कि नेपाल के मुसलमान इतने अदृश्य क्यों हैं ?
यह मामला दरअसल नेपाल के इतिहास और भूगोल से जुड़ा है. पर्यटक आमतौर पर या तो नेपाल की राजधानी काठमांडू और उसके आस-पास जाते हैं या पोखरा के क्षेत्र में जाते हैं या फिर एवरेस्ट बेस कैंप के रास्ते का नेपाल देखते हैं. ये सब नेपाल के वे हिमालयी पर्वतीय इलाके हैं जहां घूमने की दिलचस्पी ही पर्यटकों को आकर्षित करती है.
हिमालय के इन इलाकों में मुसलमानों की आबादी स्थानीय तौर पर एक दो फीसदी के बीच है. इनमें भी ज्यादातर वे मुसलमान हैं जो कभी व्यापार आदि कि लिए कश्मीर से आकर यहां बस गए थे.
नेपाल की स्थानीय आबादी की तरह ही इन पहाड़ी क्षेत्रों में रहना उनके लिए बहुत सहज था और इसीलिए वे यहां आसानी से बस भी गए. यह भी कहा जाता है कि राणा वंश के शासनकाल में व्यापार और अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए उन्हें वहां रहने को प्रोत्साहित किया गया.
उनके मुकाबले स्थानीय तौर पर ईसाइयों की आबादी ज्यादा है. खासकर बड़े पहाड़ी नगरों और कस्बों के आस-पास. जहां कभी अंग्रेज आकर बसे. उनके साथ ही मिश्नरी भी आए. जिन्होंने चर्च भी बनवाए और थोड़ा बहुत धर्म परिवर्तन भी करवाया. लेकिन यह सब बीसवीं सदी के पूर्वार्ध में ही हुआ.
नेपाल में मुसलमानों की ज्यादातर आबादी तराई क्षेत्र में रहती है. जहां के लोगों को वहां मधेसी कहा जा जाता है. ये वे लोग हैं जो दशकों पहले और कईं मामलों में तो सदियों पहले उत्तर प्रदेश और बिहार से वहां जाकर बस गए थे.
वहां बसने वाले इन लोगों में सिर्फ हिंदू ही नहीं थे मुसलमान भी थे. नेपाल की मधेसी आबादी में मुसलमानों का प्रतिशत लगभग वही है जो पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार की आबादी में हैं.
यह वह इलाका हैं जहां ज्यादातर पर्यटक नहीं जाते इसलिए उन्हें मुसलमान बहुत कम नजर आते हैं.हाल ही में नेपाल में वहां के नौजवानों ने जो तख्ता पलट किया उसमें भी अभी तक किसी मुसलमान का नाम उभर कर सामने नहीं आया. इस एक वजह शायद यह है कि आंदोलन पूरी तरह से पर्वतीय इलाकों के नौजवानों का है.उस इलाके का जहां मुसलमानों की आबादी काफी कम है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)