संकट के समयं साथ आते समुदाय

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 08-09-2025
Communities come together in times of crisis
Communities come together in times of crisis

 

dहरजिंदर

बात भली हो बुरी ,लेकिन आम दिनों में एक दूसरे से उलझे रहना हमारी फितरत है. इसके साथ हमारी एक खासियत यह भी है कि जब संकट आता है तो हम एक दूसरे के लिए सब कुछ दांव पर लगा देते हैं. पंजाब में इन दिनों जो भीषण बाढ़ आई है. उसमें इसे बहुत साफ तौर पर देखा जा सकता है. सभी समुदायों के लोग बाढ़ राहत में बढ़ चढ़ कर भाग ले रहे हैं.

यहां खासतौर पर जरूरी है पंजाब के मुस्लिम समुदाय का जिक्र करना. यहां अगर एक कस्बे मलेर कोटला को छोड़ दें तो पूरे पंजाब में न सिर्फ मुस्लिम समुदाय के लोग अल्पसंख्यक हैं, बल्कि उनकी तादात इतनी कम है कि उसे माइक्रोस्कोपिक माईनाॅरिटी ही कहा जाता है.

लेकिन संकट के समय में उन्होंने जो मदद की वह माइक्रोस्कोपिक नहीं थी, बल्कि समुदाय की आबादी के अनुपात में बहुत बड़ी थी.बाढ़ की खबर मिलने के बाद सबसे पहले सक्रिय हुए लुधियाना की जामा मस्जिद के इमाम उस्मान लुधियानवी.

उन्होंने बड़े पैमाने पर राहत सामग्री इकट्ठी की जो ट्रकों में भर कर बाढ़ प्रभावित इलाकों में पहंुचाई गई. जब तक यह सामग्री बाढ़ पीड़ितों तक पहंुचनी शुरू हुई पंजाब की तमाम मस्जिदों से मदद भेजने की खबरें आनी लगीं. इन सभी जगहों से सिर्फ रसद ही नहीं भेजी गई. समुदाय के कईं नौजवान बाढ़ राहत में हाथ बंटाने के लिए भी भेजे गए.

dजब पूरा राज्य बाढ़ग्रस्त था तभी ईद मिलाद उन नबी का मौका आया. जालंधर की सुन्नी शाही जामा मस्जिद कमेटी के अध्यक्ष नईम खान ने उसके पहले ही यह घोषणा कर दी कि पांच सितंबर को मुसलमान अपने हर साल होने वाले परंपरागत आयोजन नहीं करेंगे.

इस दिन को बाढ़ पीड़ितों की मदद की लिए मनाया जाएगा. इतना ही नहीं इस अवसर को मनाने के लिए जितना बजट तय हुआ था वह सारी रकम बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए भेज दी गई.

इस बीच पंजाब से सटे हुए हरियाणा के अंबाला जिले के मुसलमानों ने दस ट्रक भर के राहत सामग्री पंजाब भिजवाई. इसके अलावा नारायणगढ़ के मुसलमानों ने भी अपनी तरफ से पंजाब को राहत सामग्री भेजी.

सिर्फ मदद ही नहीं भेजी गई, समुदाय के 65-70 नौजवानों को राहत कार्य के लिए अमृतसर के अजनाला कस्बे में भेजा गया.

पंजाब का यह कस्बा सबसे ज्यादा बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में था.तीन दिन बाद ही खुद उनके अपने अंबाला जिले के कईं हिस्से भी बाढ़ग्रस्त हो चुके थे, तुरंत ही इस समुदाय वहां भी मदद भेजी.

अंबाला और नारायणगढ़ तो पंजाब के बहुत पास हैं हरियाणा के दूसरे सिरे पर बसे नूंह के मुसलमानों ने भी पंजाब में राहत भेजने के काम को पूरी शिद्दत से किया.

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इसके लिए उन्होंने घर-घर से सामान भी जमा किया.संकट के समय विभिन्न समुदायों ने तो अपना जज्बा दिखा दिया, लेकिन इस जज्बे को स्थाई पारस्परिक संबंधों में बदलना सभी के लिए बड़ी चुनौती है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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