डॉ. उज़्मा खातून
हाल के हफ्तों में बलूचिस्तान से एक हृदयविदारक वीडियो ने पूरे दक्षिण एशिया को झकझोर कर रख दिया। एक युवती बानो सटकज़ई को लाल कपड़ों में आत्मविश्वास के साथ चलते हुए देखा गया, वह अपने शॉल को ठीक कर रही थी.
वह शांत दिख रही थी, निडर ब्राहुई भाषा में उसने कहा, “सिर्फ गोली मारना है, और कुछ नहीं” फिर गोलियों की आवाज़ आई और वह ज़मीन पर गिर गई। एक अन्य व्यक्ति एहसान समलानी, जो बुरी तरह घायल था, उसे भी दोबारा गोली मारी गई.
यहां तक कि बानो के शव को भी नहीं छोड़ा गया। पृष्ठभूमि में कोई गिड़गिड़ा रहा था, “बस करो,” लेकिन गोलियां नहीं रुकीं. दोनों को “इज़्ज़त” के नाम पर मार डाला गया. वे एक-दूसरे से प्रेम करते थे, शायद शादी कर ली थी या करने वाले थे. बस इसी "जुर्म" में उन्हें अगवा किया गया और मौत के घाट उतार दिया गया.
यह दिल दहला देने वाली घटना ईद से ठीक पहले क्वेटा के पास देगारी इलाके में हुई. बानो भागी नहीं, उसने अपनी जान की भीख नहीं मांगी। जैसे उसे मालूम था कि उसकी किस्मत तय हो चुकी है.
वीडियो वायरल होने के बाद ग्यारह लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें बानो का भाई और एक स्थानीय सरदार भी शामिल थे. पत्रकार मुर्तज़ा ज़हरी और वकील जलीला हैदर के अनुसार, बानो को सात और एहसान को नौ गोलियां मारी गईं, लेकिन परिवार अब भी खामोश है. ऐसी घटनाओं में आदिवासी रिवाज़ सच्चाई को दफ़ना देते हैं. लोग बोलने से डरते हैं.
बलूचिस्तान और पाकिस्तान के कई आदिवासी इलाकों में आज भी सदियों पुराने रिवाज़ हावी हैं, जो बदले, इज़्ज़त और औरतों पर नियंत्रण की भावना से भरे हैं. यहां पुरुषों को लगता है कि उनकी इज़्ज़त औरतों के व्यवहार से जुड़ी है. अगर कोई महिला किसी मर्द से बात कर ले, अपनी मर्ज़ी से शादी करना चाहे, या सोशल मीडिया पर तस्वीर डाल दे—तो वह “गुनहगार” बन जाती है. अदालत की कोई ज़रूरत नहीं. सज़ा सीधे मौत होती है.
दुर्भाग्य से, यह घटना अकेली नहीं है. पाकिस्तान में ऑनर किलिंग (इज़्ज़त के नाम पर हत्या) आम बात हो गई है. मानवाधिकार आयोग के अनुसार, 2021 से 2023 के बीच 1,200 से अधिक महिलाओं की ऐसे ही हत्याएं हुईं. 2024 में यह संख्या 400 से अधिक रही. सिर्फ सिंध में 300 से ज्यादा मामले सामने आए। कुछ पीड़ित हिंदू समुदाय से भी थीं. यह धार्मिक नहीं, आदिवासी समस्या है. लोग धर्म की आड़ में इन अपराधों को छिपाते हैं, जबकि इसका इस्लाम से कोई संबंध नहीं है.
असल में, यह "इस्लामी न्याय" नहीं, बल्कि "आदिवासी न्याय" है। यह रिवाज़ इस्लाम से भी पुराने हैं. जैसे पश्तूनों में "पुख्तूनवाली" की परंपरा। पैग़म्बर मोहम्मद (स.अ.) से पहले अरबों में बेटियों को ज़िंदा दफन किया जाता था. इस्लाम आने के बाद सबसे पहले इसी प्रथा पर रोक लगी। पैगंबर ने बेटियों को रहमत बताया और कहा, “जिसने तीन बेटियों की परवरिश की, वह जन्नत में जाएगा.”
इस्लाम में निकाह एक अनुबंध है, जो स्त्री और पुरुष की स्वतंत्र सहमति से होता है. क़ुरआन (2:232) कहता है—“औरतों को उनके पति से विवाह करने से मत रोको जब वे आपस में रज़ामंदी से निकाह करना चाहें।” पैगंबर ने कहा, “औरत की अनुमति के बिना कोई निकाह नहीं.”
पाकिस्तान में यह सब आदिवासी संस्कृति के कारण हो रहा है, जो औरत को इज़्ज़त नहीं, संपत्ति समझती है. कई इलाकों में गैरकानूनी ‘जिरगा’ अदालतें फैसला करती हैं कि लड़की को दुश्मन को सौंप दो (‘वानी’), या कुरान से शादी करा दो ताकि वह ज़िंदगीभर कुंवारी रहे और ज़मीन पर कोई और दावा न कर सके.
पाकिस्तान का संविधान समानता की बात करता है, लेकिन ज़मीनी सच्चाई यह है कि महिलाएं अपमान, हिंसा और मौत झेलती हैं. पुलिस तक शिकायत नहीं सुनती। कानूनों की धज्जियां उड़ती हैं, और मौलवी अक्सर चुप रहते हैं.
पुरुषों को "कव्वाम" बताया गया है—यानी रक्षक, मालिक नहीं। पैगंबर ने कभी अपनी बीवियों पर हाथ नहीं उठाया. जब बेटी फातिमा आती थीं, तो खड़े हो जाते थे। यही है इस्लाम.
आज पाकिस्तान में शिक्षित महिलाएं भी असुरक्षित हैं—पत्रकार, डॉक्टर, नेता—सब को धमकियां मिलती हैं. दूसरी ओर, पुरुषों को बचपन से सिखाया जाता है कि उन्हें इज़्ज़त बचानी है, चाहे हिंसा करके ही क्यों न हो. औरत की आवाज़, उसकी आज़ादी उन्हें बर्दाश्त नहीं.
इसके विपरीत भारत में मुस्लिम महिलाओं की स्थिति तुलनात्मक रूप से बेहतर है. यहां वे शिक्षा, रोज़गार, शादी और अदालत जाने की आज़ादी रखती हैं. तीन तलाक़ पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला इसका उदाहरण है. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 32 और 226 उन्हें सीधे अदालत जाने का अधिकार देता है। जबकि पाकिस्तान में बोलना ही मौत को बुलावा है.
दरअसल, फर्क सिर्फ़ धर्म का नहीं, न्याय का है. पाकिस्तान में आदिवासी रिवाज़ धर्म बन गया है—"मुल्ला का दीन", जो डर और नियंत्रण पर आधारित है.
हमें सच बोलना होगा. बलूचिस्तान, सिंध और खैबर पख्तूनख्वा में जो हो रहा है, वह इस्लाम नहीं है—वह कबीलाई जहालत है.