शाहरुख़ खान को ‘जवान’ के लिए राष्ट्रीय सम्मान, सोशल मीडिया पर तूफान

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 02-08-2025
Shahrukh Khan gets national award for 'Jawan', storm on social media
Shahrukh Khan gets national award for 'Jawan', storm on social media

 

मलिक असगर हाशमी / नई दिल्ली

शुक्रवार की रात जैसे ही यह ऐलान हुआ कि शाहरुख़ खान को 71वें राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कारों में साल 2023 की सर्वश्रेष्ठ अभिनेता की श्रेणी में ‘जवान’ के लिए सम्मानित किया गया है — सोशल मीडिया पर मानो एक तूफ़ान आ गया. दुनियाभर से उनके फैन्स ने उन्हें बधाइयों से सराबोर कर दिया. इस ख़बर ने न सिर्फ सिनेप्रेमियों को रोमांचित किया बल्कि भारतीय सिनेमा के उस लंबे इंतज़ार को भी ख़त्म कर दिया जिसमें ‘किंग खान’ को उनके अभिनय के लिए कभी राष्ट्रीय मंच से आधिकारिक तौर पर सराहा नहीं गया था.

नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय मीडिया केंद्र में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस ऐतिहासिक घोषणा के साथ ही विक्रांत मैसी को ‘12वीं फेल’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का संयुक्त पुरस्कार दिए जाने का एलान भी किया गया. लेकिन जाहिर है, शाहरुख़ की अंतरराष्ट्रीय पहचान और लोकप्रियता ने हर प्लेटफ़ॉर्म पर सुर्खियों का रुख उनकी ओर मोड़ दिया.

शाहरुख़ ने पुरस्कार मिलने पर अपने एक्स (पूर्व में ट्विटर) हैंडल से प्रतिक्रिया दी:

“इस सम्मान के लिए भारत सरकार का धन्यवाद... आज हर किसी को आधा हग.”

हालांकि बधाइयों की इस बाढ़ के बीच कुछ पुराने सवाल भी फिर से उभरे — क्या ‘चक दे इंडिया’, ‘स्वदेश’, ‘माय नेम इज़ खान’ जैसी फिल्मों के लिए शाहरुख़ को पहले ही यह पुरस्कार नहीं मिल जाना चाहिए था?

सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं की बौछार:

ट्विटर पर एक यूज़र ने लिखा, “यह दृश्य भारतीय सिनेमा का सबसे बेहतरीन अभिनय है। SRK को ये पुरस्कार सालों पहले मिल जाना चाहिए था.”वहीं एक और प्रतिक्रिया थी, “सिस्टम ने स्वदेश को अनदेखा किया लेकिन जवान को सराहा — इसपर आत्ममंथन ज़रूरी है.”
 

कुछ प्रतिक्रियाओं ने फिल्म ‘जवान’ की राजनीतिक थीम को भी केंद्र में रखा, जिसमें शाहरुख़ एक सशक्त संवाद में जनता से अपील करते हैं कि वे धर्म के नाम पर नहीं, विकास के नाम पर वोट दें. यही संदेश उनके समर्थकों के अनुसार आज के दौर में सबसे प्रासंगिक था — और शायद इसीलिए यह सम्मान भी ‘जवान’ को मिला.
 

हालांकि, इस बीच कुछ आलोचनात्मक टिप्पणियां भी आईं — कि "जवान" SRK की एक्टिंग का शिखर नहीं था, और ये पुरस्कार "देवदास" या "स्वदेश" के लिए मिलना चाहिए था. मगर एक बड़ा तबका इस बात पर एकमत दिखा कि शाहरुख़ खान की "लेगेसी" किसी एक फिल्म से नहीं, बल्कि उनके पूरे करियर की गहराई और सिनेमा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता से बनती है.
 

‘जवान’ का वो संवाद जो बन गया आंदोलन:

“किसी नेता से उसका धर्म मत पूछो... उससे पूछो कि अगले पाँच साल में वो तुम्हारे लिए क्या करेगा?”यह डायलॉग सिर्फ एक सीन नहीं था, बल्कि एक विचार बनकर उभरा, जिसने इस पुरस्कार को एक वैचारिक विजय में तब्दील कर दिया.

राष्ट्रीय पहचान से वैश्विक प्रभाव तक

शाहरुख़ खान अब सिर्फ एक अभिनेता नहीं — वे भारत की ‘सॉफ्ट पॉवर’ का सबसे सशक्त चेहरा बन चुके हैं. और यह पुरस्कार, जितना उनके अभिनय के लिए है, उतना ही उनकी प्रभावशाली मौजूदगी और सामाजिक चेतना को भी मान्यता देने जैसा है.
 

अब जबकि SRK को उनका पहला राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है, सवाल यह नहीं है कि उन्होंने इसे किस फिल्म के लिए पाया — बल्कि यह है कि यह सम्मान एक ऐसे कलाकार के हिस्से आया, जिसने दशकों से भारतीय सिनेमा को न केवल जिया, बल्कि दुनिया के सामने उसका चेहरा भी रचा.

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शाहरुख़ ख़ान: एक प्रेरणादायक जीवनगाथा

सिनेमा की दुनिया में 'बॉलीवुड के बादशाह' और 'किंग ख़ान' के नाम से मशहूर शाहरुख़ ख़ान (SRK) न केवल एक सफल अभिनेता हैं, बल्कि एक प्रतिष्ठित निर्माता, वक्ता, लेखक, परोपकारी, टीवी होस्ट और विश्वभर में भारतीय सिनेमा के ब्रांड एंबेसडर हैं.

अपने चिरपरिचित स्टाइल — स्पाइकी जेल लगे बाल, स्टाइलिश चश्मा, दिलकश मुस्कान और खुले हाथों वाली सिग्नेचर पोज़ — के साथ वे भारतीय सिनेमा में एक जीवित किंवदंती बन चुके हैं.

 अभिनय की शुरुआत और मुंबई की ओर पहला कदम

शाहरुख़ ने अपने करियर की शुरुआत वर्ष 1987 में महज़ 21 वर्ष की उम्र में टेलीविजन से की. उन्होंने विभिन्न टीवी धारावाहिकों में काम किया और विज्ञापन ब्रांड्स के लिए मॉडलिंग की। कॉलेज के दिनों में थिएटर और नाटकों के प्रति उनका रुझान गहराता गया. उन्होंने दिल्ली में कुछ स्टेज शोज़ किए और वहां से एक्टिंग का सफर शुरू हुआ.

हालाँकि उनके जीवन में बहुत जल्द ही दुखद घटनाएँ घटीं — 1980 में पिता का निधन और 1990 में माँ का. माता-पिता के चले जाने के बाद उन्होंने दिल्ली छोड़कर मुंबई का रुख किया, आत्मविश्वास की कमी और मन में संशय लिए वे एक साल के लिए केवल "कोशिश" करने आए थे। मगर किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था.

 सुपरस्टार बनने की यात्रा

1992 में रिलीज़ हुई फिल्म 'दीवाना' ने उन्हें रातोंरात स्टार बना दिया. यह उनकी पहली फिल्म थी और इसके लिए उन्हें पहला फ़िल्मफ़ेयर अवॉर्ड भी मिला. इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1990 और 2000 के दशक में उन्होंने लगातार हिट फिल्में दीं — दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे, कुछ कुछ होता है, दिल से, देवदास, वीर-ज़ारा, स्वदेश, माई नेम इज़ खान, और चक दे! इंडिया जैसी फिल्में उनकी बहुमुखी प्रतिभा की मिसाल हैं.

2020 के बाद कोरोना महामारी के चलते वे कुछ समय के लिए पर्दे से दूर रहे, लेकिन 2023 में उन्होंने एक शानदार वापसी की और फिर से बड़े-बड़े ब्लॉकबस्टर फिल्मों में छा गए.

 सम्मान और उपलब्धियाँ

शाहरुख़ ख़ान 100 से अधिक फिल्मों में अभिनय कर चुके हैं और उन्हें 14 फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिल चुके हैं.उन्हें भारत सरकार द्वारा 'पद्म श्री' और फ्रांस सरकार द्वारा 'ऑर्ड्रे दे आर्ट्स एट लेत्रेस' और 'लीजन ऑफ ऑनर' जैसे अंतरराष्ट्रीय सम्मान से नवाजा गया है.

उन्हें दुनिया के सबसे सफल और लोकप्रिय फिल्म सितारों में गिना जाता है.उनके प्रशंसक एशिया, मध्य पूर्व, यूरोप और भारतीय प्रवासी समुदायों में करोड़ों की संख्या में हैं.उनकी फ़िल्में भारतीयता, देशभक्ति, सामाजिक विविधता और प्रवासी भावनाओं को गहराई से छूती हैं.
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पारिवारिक जीवन

शाहरुख़ की निजी ज़िंदगी भी उतनी ही प्रेरणादायक है. उन्होंने 25 अक्टूबर 1991 को गौरी ख़ान से विवाह किया और उनके तीन बच्चे हैं — आर्यन ख़ान, सुहाना ख़ान और अबराम ख़ान. वे मुंबई के पॉश इलाक़े बांद्रा में स्थित अपने प्रसिद्ध बंगले 'मन्नत' में रहते हैं.
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विशेष पहचान और व्यक्तित्व

शाहरुख़ की छवि केवल एक स्टार की नहीं, बल्कि एक दर्शकों से जुड़ाव रखने वाले कलाकार की है। उन्हें पहचाना जाता है —

उनकी गहरी मुस्कान और डिंपल से

हास्य और बुद्धिमत्ता भरे संवादों से

और उस सिग्नेचर पोज़ से जिसमें वे दोनों हाथ फैला कर दर्शकों को गले लगाते हैं।
वे अपने दोस्तों और प्रशंसकों के प्रति अत्यंत वफादार हैं और हमेशा कहते हैं

“मैं अपने फैंस का कर्ज़ कभी नहीं चुका सकता। जो प्यार उन्होंने मुझे दिया है, उसका बदला मैं सिर्फ लगातार काम करके और अच्छी फिल्में देकर ही चुका सकता हूँ।”

 शौक़ और दिलचस्प बातें

वे अकेले कार में बैठकर फ़िल्में देखना पसंद करते हैं.उन्हें वीडियो गेम्स और हाई-टेक गैजेट्स से बहुत लगाव है.उनके कुत्ते का नाम चीवबक्का है.उनका नाम “शाहरुख़” का मतलब होता है — “राजा का चेहरा.”

प्रेरणादायक उद्धरण

“मैं डूब जाना पसंद करूंगा, अगर मुझे बाकी लोगों की तरह तैरते रहने के लिए अपनी अलग पहचान खोनी पड़े.”

“मुझे कभी गार्ड्स की ज़रूरत नहीं पड़ी, क्योंकि मैं अपने दर्शकों से डरता नहीं हूं — मैं उनके लिए ही तो हूं.”

“मैं खुद को दुनिया का सबसे भाग्यशाली इंसान मानता हूं — और ये सब मेरे फैंस की वजह से है.”


शाहरुख़ ख़ान सिर्फ एक अभिनेता नहीं, एक प्रेरणा हैं — जिन्होंने अपने आत्मविश्वास, परिश्रम और जुनून से एक साधारण इंसान से असाधारण 'किंग ख़ान' बनने तक का सफर तय किया. उनका जीवन दर्शाता है कि यदि सपने सच्चे हों और इरादे मजबूत, तो हर दिलवाला अपनी मंज़िल पा सकता है.