Those colours of the tricolour: Four colours and the name tricolour?
अर्सला खान/नई दिल्ली
जब भी भारत का राष्ट्रीय ध्वज ‘तिरंगा’ लहराता है, एक असीम गर्व की अनुभूति होती है. यह सिर्फ एक झंडा नहीं, बल्कि आज़ादी, त्याग, और विविधता में एकता का प्रतीक है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस तिरंगे को डिजाइन किसने किया था? इसका विचार कहां से आया और किन-किन लोगों की इसमें भागीदारी रही? स्वतंत्रता दिवस 2025 आने में कुछ ही दिन बाकी हैं. इस खास मौके पर आइए तिरंगे की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर एक नजर डालते हैं...
तिरंगे के डिज़ाइनर: पिंगली वेंकैया
भारत के राष्ट्रीय ध्वज को डिजाइन करने का श्रेय जाता है पिंगली वेंकैया को. वेंकैया एक स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षाविद और भूवैज्ञानिक थे, जिनका जन्म 2 अगस्त 1876 को आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम में हुआ था. उन्होंने महात्मा गांधी के साथ मिलकर भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के स्वरूप पर काम किया और इसे राष्ट्र के लिए प्रस्तुत किया.
वेंकैया न सिर्फ एक राष्ट्रभक्त थे, बल्कि उन्होंने भारतीय संस्कृति और प्रतीकों को लेकर गहरी समझ के साथ एक ऐसा ध्वज प्रस्तावित किया जो भारत की विविधता और उसकी संघर्षशील आत्मा का प्रतिनिधित्व करता था. बात अगर झंडे के विकास के बारे में कि जाए तो साल 1906 से साल 1947 आजादी तक तिरंगा कई रूप में बदला, लेकिन आखिर में इसको तीन रंग दिए गए.
पिंगली वेंकैया को तिरंगे का जनक माना जाता है, लेकिन वे सिर्फ झंडा डिज़ाइन करने वाले व्यक्ति नहीं थे. उन्होंने राष्ट्रीय प्रतीकों की खोज, भारत की सांस्कृतिक पहचान के संरक्षण, स्वदेशी विज्ञान के प्रचार और स्वतंत्रता आंदोलन की वैचारिक नींव तैयार करने में भी भूमिका निभाई. उनका जीवन बहुआयामी था और उनका योगदान भारत की आत्मा से गहराई से जुड़ा हुआ था.
राष्ट्रीय ध्वज के कई प्रारंभिक रूप तैयार किए
वेंकैया ने वर्ष 1916 में "A National Flag for India" नामक एक पुस्तिका प्रकाशित की थी, जिसमें उन्होंने भारतीय ध्वज के 30 से अधिक डिज़ाइन प्रस्तावित किए थे. ये डिज़ाइन विभिन्न धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक प्रतीकों को ध्यान में रखकर बनाए गए थे. इनमें चक्र, सितारे, रंग-बिरंगे पट्टे आदि शामिल थे. तिरंगे का जो अंतिम स्वरूप 1947 में अपनाया गया, वह उन्हीं के डिज़ाइन का परिष्कृत रूप था.
स्वदेशी झंडे का प्रचार-प्रसार
उन्होंने गांधी जी के स्वदेशी आंदोलन के समर्थन में झंडे का डिज़ाइन तैयार किया था, जिसमें चरखा (spinning wheel) प्रमुख रूप से दर्शाया गया था। यह डिज़ाइन न केवल राजनीतिक प्रतीक था बल्कि भारत की आर्थिक आत्मनिर्भरता का संदेश भी देता था.
भारतीय भाषाओं और भाषाविज्ञान में रुचि
पिंगली वेंकैया को भाषाविज्ञान में भी गहरी रुचि थी. वे कई भाषाएं जानते थे और भाषायी अध्ययन के क्षेत्र में उन्होंने एक स्वतंत्र खोजपरक दृष्टिकोण अपनाया था। हालांकि उन्होंने किसी भाषा के लिए स्क्रिप्ट या पूर्ण डिज़ाइन नहीं तैयार किया, लेकिन भाषाओं के अध्ययन को लेकर उन्होंने व्यापक काम किया.
कृषि और खनिज विज्ञान
वेंकैया एक प्रशिक्षित भूविज्ञानी और कृषि वैज्ञानिक भी थे. वे खनिजों की पहचान और उनके उपयोग को लेकर रिसर्च करते थे. उन्होंने भारत में खनिजों की पहचान करने के लिए एक कलर सिस्टम (रंग प्रणाली) डिज़ाइन की थी, जिससे विभिन्न खनिजों को रंग के आधार पर वर्गीकृत किया जा सके.
स्वदेशी शिक्षा प्रणाली के समर्थक
उन्होंने शिक्षा को भारतीय संदर्भ में ढालने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया और इसके लिए कई स्थानीय भाषाओं और विषयों में अध्ययन सामग्री तैयार करने की दिशा में कार्य किया. हालांकि इनका डिज़ाइन रूप में कोई ठोस उदाहरण कम मिलता है, फिर भी यह माना जाता है कि उन्होंने भारतीय शिक्षा प्रणाली में सांस्कृतिक प्रतीकों को लाने की कोशिश की.
रंगों का क्या है महत्व?
केसरिया (ऊपर की पट्टी): साहस और बलिदान का प्रतीक.
सफेद (बीच की पट्टी): शांति और सच्चाई.
हरा (नीचे की पट्टी): समृद्धि, जीवन और भूमि से जुड़ाव.
नीले रंग का अशोक चक्र: धर्म, न्याय और सतत गति का प्रतीक.
किन-किन ने निभाई भूमिका?
महात्मा गांधी: उन्होंने ही तिरंगे में चरखा जोड़ने का विचार दिया था और झंडे को सभी समुदायों का प्रतीक बनाने की दिशा में सुझाव दिए.
राजेंद्र प्रसाद (संविधान सभा के अध्यक्ष): उन्होंने झंडे को संविधान सभा में अंतिम रूप से अनुमोदित कराया.
जवाहरलाल नेहरू: कांग्रेस कार्यसमिति की ओर से झंडे के स्वरूप को स्वीकार करने में निर्णायक भूमिका निभाई.
वेंकैया को क्यों भुला दिया गया?
यह एक विडंबना है कि पिंगली वेंकैया जैसे महान योगदानकर्ता को भारतीय इतिहास में उतनी प्रमुखता नहीं मिली जितनी उन्हें मिलनी चाहिए थी. आज भी उनके नाम पर कोई बड़ी राष्ट्रीय स्मृति नहीं है. हालांकि, हाल के वर्षों में केंद्र और राज्य सरकारों ने उनकी स्मृति में डाक टिकट, मूर्ति और संस्थान की घोषणा की है, लेकिन यह योगदान के अनुरूप नहीं कहा जा सकता.
भारत का तिरंगा आजादी की लड़ाई का साक्षी रहा है, जिसमें पिंगली वेंकैया जैसे गुमनाम नायकों की तपस्या समाई हुई है. यह सिर्फ तीन रंगों का झंडा नहीं, बल्कि हमारी आत्मा, हमारी संस्कृति और हमारे संघर्ष का प्रतीक है. इसे सलाम करने से पहले यह जानना और भी जरूरी हो जाता है कि इसके पीछे कौन था, क्यों था और कैसे बना.
तिरंगा हर भारतीय के दिल में बसता है और उसके इतिहास को जानना, हमारी नागरिक जिम्मेदारी भी है और सम्मान भी.