हरजिंदर
चुनाव का समय अल्पसंख्यकों को याद करने का समय होता है. बिहार में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं इसलिए सभी दल इन दिनों अल्पसंख्यकों की बात करने लगे हैं. अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक अब इसे समझने लग गए हैं इसलिए बातें बहुत जल्द ही भुला भी दी जाती हैं.
अब यह बहुत कम लोगों को याद होगा कि कुछ महीने पहले बिहार में ईद के मौके पर मुसलमानों को एक किट बांटा गया था जिसे ‘सौगात ए मोदी‘ का नाम दिया गया था. फिर अभी कुछ ही समय पहले जब पहलगाम की आतंकवादी वारदात के बाद ‘आॅपरेशन सिंदूर‘ किया गया तो यही माना गया यह बिहार चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा होने जा रहा है, लेकिन चुनाव अभी बहुत दूर है और इसका जिक्र बंद हो चुका है.
लोग भूल जाते हैं यह एक सच है लेकिन दूसरा सच यह भी है कि चुनाव लोगों की यादाश्त के आधार पर या लोगों को कोई चीज याद करा कर नहीं लड़े जाते, बल्कि वह उस रस्म और रिवाज से लड़े जाते हैं जिन पर सभी पार्टियों की अटल आस्था है. ऐसा ही एक रिवाज है चुनाव के समय अल्पसंख्यकों को याद करना, उनकी बात करना सो यह रस्म इन दिनों बिहार में निभाई जा रही है.
बिहार में परंपरागत रूप से अल्पसंख्यक वोट, खासकर मुस्लिम वोट या तो राष्ट्रीय जनता दल को मिलते हैं या कांग्रेस को कुछ हद तक जनता दल यूनाइटेड को. इसी आधार पर चुनाव के आकलन होते रहे हैं और चुनावी सर्वे करने वाले भी इसी पर यकीन करते रहे हैं.
लेकिन पिछले विधानसभा से इसमें एक बड़ा बदलाव आ गया है. इस चुनाव में हैदराबाद की पार्टी आल इंडिया मजलिसे एत्ताहुदल मुसलमीन यानी एआईएमआईएम ने न सिर्फ अपने बल पर चुनाव लड़ा बल्कि विधानसभा की वे पांच सीटें भी जीतीं जिनके बारे में यह माना जा रहा था कि वे राजद के खाते में जाएंगी.
इस पार्टी ने बहुत सी सीटों पर राजद को हराने का भी काम किया. यह बात अलग है कि इस पार्टी के पांच में से चार विधायक बाद में राजद में शामिल हो गए.इस बार कुछ समय पहले एआईएमआईएम यह कोशिश करती दिखाई दी कि वह इंडिया ब्लाॅक में शामिल हो जाए. बात नहीं बनी तो वह इस बार भी अपने बल पर चुनाव मैदान में ताल ठोंक रही है.
इस बीच प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी भी मैदान में जोर दिखाने की कोशिश कर रही है. यह नई पार्टी है.इसका असर कितना यह अभी नहीं कहा जा सकता. लेकिन इस पार्टी की नजर भी मुस्लिम वोटों पर ही है.
कुछ महीने पहले प्रशांत किशोर ने कहा था कि उनकी पार्टी चुनाव में 40 से ज्यादा मुसलमानों को टिकट देगी. हाल ही में उनका एक और बयान आया जिसमें उन्होंने कहा है कि अगर मुस्लिम मतदाता साथ देते हैं तो वे बिहार में सरकार बनाने में कामयाब होंगे.
उनकी सरकार बनती है या नहीं यह तो अभी नहीं कहा जा सकता, लेकिन मुस्लिम मतों पर अपनी निर्भरता उन्होंने जरूर जाहिर कर दी है.तमाम राजनीतिक विशेषज्ञ यही बताते रहे हैं कि समुदायों की अपनी राजनीतिक पसंद और नापसंद हो सकती है लेकिन एक समुदाय के तौर पर सभी एक ही जगह वोट करते हों यह मानने का कोई कारण नहीं है.
और बिहार जैसे राज्य में जब इतने सारे दल मुस्लिम वोटों की उम्मीद लगाए बैठे हों और उनके लिए प्रयास भी कर रहे हों तो उनके वोटों का और ज्यादा बंटना भी तय है. ऐसा हुआ तो ये वोट किसी भी तरह से निर्णायक नहीं होंगे.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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