प्रमोद जोशी
हाल के घटनाक्रम से लग रहा है कि बांग्लादेश फिर से अराजकता की गिरफ्त में आ रहा है. उसकी पेशबंदी में ही शायद अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस ने धमकी दी है कि मैं इस्तीफा देने पर विचार कर रहा हूँ.
इतना साफ है कि यूनुस ने हटने का प्रचार किया, वे हटना नहीं चाहते, बल्कि उनके कुछ समर्थक चाहते हैं कि वे अगले पाँच साल तक इस पद पर बने रहें, जो संभव नहीं.
यूनुस के प्रेस सचिव शफ़ीकुल आलम ने रविवार को कहा कि यूनुस अगले साल 30जून के बाद एक दिन भी सत्ता में नहीं रहेंगे और संसदीय चुनाव इसी अवधि के भीतर होंगे. ऐसा है, तो फिर चुनाव की तारीखें घोषित करने में दिक्कत क्या है?
उसके पहले शनिवार को बीएनपी, जमात-ए-इस्लामी और जातीय नागरिक पार्टी के साथ हुई यूनुस की बैठक से ज़ाहिर हुआ कि देश के रोडमैप को लेकर राजनीतिक दलों के बीच मतभेद है. ज्यादातर पुराने राजनीतिक दल जल्द से जल्द चुनाव चाहते हैं, पर उसके पहले संवैधानिक-सुधारों को लेकर मतभेद हैं.
जल्द चुनाव की माँग
बैठक के बाद बीएनपी नेता सलाहुद्दीन अहमद ने कहा कि हमने सरकार से विशिष्ट चुनावी रोडमैप माँगा है. उन्होंने सरकार से तटस्थ रुख, यानी नए दल नेशनल सिटिजंस पार्टी (एनसीपी) के प्रति विशेष अनुग्रह नहीं दिखाने का भी आह्वान किया.
यह बैठक ऐसे समय में हुई है जब बीएनपी सड़कों पर विरोध प्रदर्शन कर रही है और यह संकेत भी दे रही है कि सरकार को उसका समर्थन अब जारी नहीं रहेगा. एनसीपी के संयोजक नाहिद इस्लाम ने कहा कि उन्हें चुनाव आयोग पर भरोसा नहीं है. यहाँ चयन का वातावरण या खेल का समतल मैदान नहीं है.
रात में मुख्य सलाहकार के प्रेस सचिव शफ़ीकुल आलम ने बताया कि सभी दलों ने मुख्य सलाहकार के प्रति अपना अटूट समर्थन व्यक्त किया है. उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव दिसंबर से 30जून के बीच हो जाएँगे.
सुधारों का क्या होगा?
सवाल है कि वे कौन से सुधार है, जिनका इंतज़ार किया जा रहा है? और वे कब पूरे होंगे? पिछले साल मोहम्मद यूनुस ने 11सितंबर को इन सुधारों की घोषणा की थी. इसके बाद संविधान, चुनावी प्रणाली, पुलिस प्रशासन, न्यायपालिका, भ्रष्टाचार विरोधी और सार्वजनिक प्रशासन में सुधारों के लिए कुल 11आयोगों का गठन किया गया.
इनमें से चार आयोगों ने इस साल 15जनवरी को यूनुस को अपनी रिपोर्ट भी सौंप दी. सभी आयोगों की रिपोर्टें आ भी जाएं, तब भी क्या उनकी सिफारिशों को लागू किया जा सकेगा? क्या सरकार के पास इसके लिए जनादेश है?
सेना का दृष्टिकोण
इस दौरान सेना की भूमिका को लेकर भी कयास हैं. मोहम्मद यूनुस और तीनों सेनाओं के प्रमुखों के बीच 20मई को बंद कमरे में हुई एक बैठक से कुछ संदेह पैदा हुए हैं. सोशल और मुख्यधारा के मीडिया ने इसे सशस्त्र बलों और अंतरिम प्रशासन के बीच ‘शीत युद्ध’ के रूप में पेश किया है.
रखाइन कॉरिडोर को लेकर सेना प्रमुख वकार-उज़-ज़मान के तीखे बयान से संदेह पैदा हो रहा है कि सेना नहीं चाहती कि यह सरकार बुनियादी फैसले करे. कॉरिडोर को लेकर यूनुस सरकार के आग्रह से यह बात भी ज़ाहिर हुई कि उनकी डोर अमेरिका से जुड़ी हुई है.
डॉ यूनुस के संभावित इस्तीफे की बात जातीय नागरिक पार्टी (नेशनल सिटिजंस पार्टी: एनसीपी) के संयोजक नाहिद इस्लाम ने बताई. उन्होंने गुरुवार को मुख्य सलाहकार के आधिकारिक आवास यमुना में मोहम्मद यूनुस के साथ मुलाकात की थी.
देश के विदेश सचिव जशीम उद्दीन के इस्तीफे को लेकर भी कई तरह की अटकलें हैं. माना जा रहा है कि मोहम्मद यूनुस और विदेशी मामलों के सलाहकार तौहीद हुसैन के साथ मतभेदों की वजह से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. आठ महीने पहले ही उनकी नियुक्ति की गई थी.
छात्र-नेताओं की भूमिका
नाहिद इस्लाम पिछले साल देश में हुए छात्र-विद्रोह के नेता हैं. वे अंतरिम सरकार में भी शामिल थे और इस साल के शुरू में नई पार्टी बन जाने के बाद सरकार से बाहर आ गए, लेकिन दो अन्य छात्र प्रतिनिधि सलाहकार पद पर बने हुए हैं.
बीएनपी अब उनके इस्तीफे की माँग को लेकर सड़कों पर कार्यक्रम आयोजित कर रही है. बीएनपी ने सलाहकार आसिफ महमूद, साजिब भुइयां और महफूज आलम, दो छात्र प्रतिनिधियों, तथा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार खलीलुर रहमान के इस्तीफे की माँग की है.
राजनीतिक दल अलग-अलग तरीकों से स्थिति का विश्लेषण कर रहे हैं. बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) का कहना है कि मुख्य सलाहकार के इस्तीफे का विचार एक विशिष्ट चुनाव रोडमैप और तीन सलाहकारों के इस्तीफे की उनकी माँगों से बचने के लिए लाया गया है.
पार्टी के नीति-निर्धारक स्तर के एक नेता ने बीबीसी बांग्ला से कहा, देश चलाते समय भावनाएं पैदा करने का कोई मतलब नहीं है.
सत्ता की लड़ाई
अवामी लीग पर प्रतिबंध लग जाने के बाद अब देश में बीएनपी, जमात और एनसीपी, ये तीन प्रमुख दल रह गए हैं. तीनों के बीच तनाव है. तीनों की निगाहें भावी सत्ता पर हैं.
बीएनपी समेत विभिन्न दलों के नेता कह रहे हैं कि जब सरकार की कमजोरी के कारण स्थिति को संभालने में विफल रहने का सवाल उठता है तो वे इस्तीफे के इस विचार को राजनीतिक दलों के लिए एक तरह की धमकी या चेतावनी मानते हैं.
राजनेता और विश्लेषक पूछ रहे हैं कि इतना समर्थन मिलने के बावजूद सरकार पर विफलता का आरोप क्यों लग रहा है? वे कहते हैं कि छात्र-नेतृत्व के प्रति डॉ यूनुस की हमदर्दी है, जिसे उन्होंने खुद कई मौकों पर व्यक्त किया है.
जब छात्र-नेतृत्व ने राजनीतिक पार्टी एनसीपी का गठन किया था, तो इसके प्रति उनका पूर्वग्रह प्रकट हुआ, जिससे बीएनपी नाराज हो गई. जमात-ए-इस्लामी भी इस बात से खुश नहीं है.
भितरखाने कुछ तो है
अंतरिम सरकार और सेना के बीच रिश्तों में क्रमशः आती कड़वाहट. देश के विदेश सचिव जशीम उद्दीन के अचानक इस्तीफ़े से भी मोहम्मद यूनुस के इस्तीफ़े की चर्चा को हवा मिली है.
सेना प्रमुख जनरल वकार-उज-जमान ने बुधवार 21मई को सेना के अधिकारियों के साथ बैठक कर चुनाव, रखाइन के लिए मानवीय गलियारे तथा भीड़ या समूह के अराजकता के मुद्दे सहित विभिन्न समसामयिक मुद्दों पर चर्चा की, जिसकी खबरें मीडिया में प्रकाशित भी हुई हैं.
अंतरिम सरकार ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रस्तावित रखाइन गलियारे पर सहमति व्यक्त की है. चटगाँव डिवीजन से शुरू होने वाले इस गलियारे को म्यांमार के युद्धग्रस्त रखाइन क्षेत्र में नागरिकों तक सहायता पहुँचाने के लिए एक मार्ग के रूप में माना जा रहा है.
देश में चिंता है कि यह गलियारा उसकी संप्रभुता में बाधा उत्पन्न करेगा और यह अमेरिकी हितों की पूर्ति करेगा. सेना प्रमुख ने भी इसका विरोध किया है. इसे लेकर विवाद तब खड़ा हुआ, जब खालिदा जिया की बीएनपी और कुछ वामपंथी दलों ने इसपर आपत्ति जताई.
सेना की भूमिका
पिछले साल अगस्त के महीने में शेख हसीना की सरकार गिरने के पीछे एक बड़ा कारण यह भी था कि सेना ने आंदोलनकारी छात्रों के दमन से इनकार कर दिया था. सेना ने अंतरिम सरकार को फौरन सत्ता सौंपकर यह भी स्पष्ट कर दिया कि उसकी दिलचस्पी सरकार चलाने में नहीं है.
आंदोलनकारी छात्रों ने करीब सात महीने बाद नया राजनीतिक दल बनाकर अपने राजनीतिक-कार्यक्रम के दूसरे चरण में प्रवेश किया था. बांग्लादेश लगातार राजनीतिक और सांस्कृतिक अंतर्विरोधों से घिरा रहा है, जो तय नहीं कर पाया है कि 1947, 1971और 2024में से किस तारीख को वह अपनी पहचान मानकर चले.
कहना मुश्किल है कि फरवरी के अंत में हुए नए राजनीतिक दल का उदय इस पहेली को सुलझाने में कामयाब होगा या नहीं. 'जातीय नागरिक पार्टी' के गठन से देश की उथल-पुथल भरी राजनीति में एक नया अध्याय शुरू हो गया.
इस नए संगठन की परीक्षा संसदीय-चुनाव में होगी. उसके पहले पार्टी की विश्वदृष्टि भी स्पष्ट होगी. अब तय यह होना है कि धर्मनिरपेक्षता, बांग्ला राष्ट्रवाद, सांस्कृतिक परंपराओं और भारत-विरोध से जुड़े प्रश्नों पर इस पार्टी का नज़रिया क्या है.
दूसरा गणराज्य
पार्टी के उद्घाटन समारोह में नाहिद इस्लाम ने कहा था, बांग्लादेश का फिर कभी विभाजन नहीं होगा और देश में भारत या पाकिस्तान समर्थक राजनीति के लिए कोई जगह नहीं होगी. पार्टी का प्राथमिक लक्ष्य बांग्लादेश में 'दूसरे गणराज्य' की स्थापना के लिए एक नया संविधान तैयार करना है, जिसके लिए ‘संविधान सभा’ का गठन किया जाएगा.
दूसरी तरफ इस नए दल के गठन की जो प्रक्रिया अपनाई जा रही है, उससे संकेत मिलता है कि संगठन की शक्तियाँ कुछ लोगों के हाथों में ही सीमित रहेंगी. यह भी कहा जा रहा है कि जिस तरह से भारत में आम आदमी पार्टी नई ताकत बनकर उभरी थी, वैसे ही हम भी नए ताकत बनेंगे.
दूसरी तरफ बीएनपी नेता इशराक हुसैन के समर्थकों ने स्थानीय सरकार (लोकल गवर्नमेंट) के सलाहकार आसिफ महमूद साजिब भुइयां और सूचना सलाहकार महफ़ूज़ आलम के इस्तीफ़े की माँग को लेकर ढाका की सड़कों पर विरोध प्रदर्शन किया है.
एनसीपी के एक शीर्ष नेता ने अंतरिम सरकार के तीन सलाहकारों को 'बीएनपी प्रवक्ता' बताते हुए धमकी दी है कि अगर सुधार संबंधी सिफ़ारिशों को लागू नहीं किया गया तो वे उनको इस्तीफ़ा देने पर मजबूर कर देंगे.
ये तीन हैं, कानूनी सलाहकार प्रोफ़ेसर आसिफ नज़रुल, वित्त सलाहकार सलाहुद्दीन अहमद और योजना सलाहकार डॉ. वाहिद उद्दीन महमूद.
सेना से भी शिकायत
सरकार के सलाहकार आसिफ़ महमूद ने फेसबुक पर एक पोस्ट लगाई थी, जिसमें कहा गया था कि आप बांग्लादेश अवामी लीग, 'उत्तर' और 'दिल्ली' गठबंधन में शामिल होकर जिस मगरमच्छ को आमंत्रित कर रहे हैं, वह आपको खा जाएगा.
बांग्लादेशी राजनीति में 'नॉर्थ' या 'उत्तर' शब्द आमतौर पर छावनी का जिक्र करने के लिए किया जाता है. इससे लगता है कि छात्र-आंदोलनकारियों को सेना से भी शिकायत है.
यूनुस और जनरल ज़मान के बीच एक और विवाद का मुद्दा पूर्व राजनयिक खलीलुर रहमान की बांग्लादेश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के रूप में नियुक्ति है, यह पद यूनुस द्वारा संभवतः सुरक्षा मामलों पर सेना के नियंत्रण को संतुलित करने के लिए बनाया गया था।
कई पर्यवेक्षकों को लगता है कि यूनुस के इस्तीफ़े की धमकी दरअसल सेना प्रमुख के ख़िलाफ़ आंदोलन शुरू करने की एक चाल है. सोशल मीडिया में आंदोलन की अनुगूँज है.
(लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं)