हरजिंदर
पर्व त्योहार धार्मिक हों, क्षेत्रीय हों या राष्ट्रीय उन्हें लेकर उत्साह तो अभी भी तकरीबन वैसा ही होता है जैसा दशकों से होता रहा है. लेकिन समुदायों के बीच शक और शुबहे बढ़ने के कारण अब इन्हें लेकर आशंकाएं पैदा होने लगती हैं.
स्वतंत्रता दिवस को ही लें. पिछले कुछ साल से ऐसे पर्व पर तिरंगा यात्राएं निकाली जा रही हैं. कुछ एक बार ऐसी यात्राओं के दौरान भीड़ हिंसा और सांप्रदायिक तनाव की स्थितियां देखने को मिलीं. शायद सावधानी बरती गई तो इस साल 15 अगस्त और उसके आस-पास ऐसी खबरें नहीं सुनाई दीं. लेकिन पिछले अनुभवों का जो डर था वह इस बार भी बना रहा. इन आशंकाओं और डर को खत्म कैसे किया जाए ?
इसका एक जवाब दिया छत्तीसगढ़ के वक्फ बोर्ड ने. वक्फ बोर्ड ने आदेश जारी कर दिया कि 15 अगस्त को सभी मस्जिदों, दरगाहों, मदरसों और सरायों वगैरह पर तिरंगा झंडा फहराया जाए. इसका असर भी हुआ. मीनारों पर इस तरह के तिरंगे दिखाई दिए.
बेशक यह एक अच्छी चीज है. इसके पीछे की भावना की तारीफ भी की जानी चाहिए. इस तरह से तिरंगा फहराने वाले सभी राष्ट्र की मुख्यधारा का पहले से ही हिस्सा हैं, लेकिन ऐसे खास दिन राष्ट्रीय प्रतीकों को अपनाने का जो गौरव बोध होता है वह उन्होंने जरूर महसूस किया होगा.
हालांकि उम्मीद यह की जानी चाहिए कि ऐसे काम मस्जिदें, मदरसे वगैरह खुद अपने आप कर लेंगे इसके लिए किसी वक्फ बोर्ड को आदेश देने की जरूरत नहीं पड़नी चाहिए. लेकिन एक अच्छे काम के लिए अगर इस तरह का कोई आदेश आता भी है तो इसे बहुत गलत नहीं कहा जा सकता. हां यह एक सवाल यह जरूर बच जाता है कि ऐसे प्रतीकात्मक कदम उठाने से क्या सांप्रदायिकता की वह समस्या खत्म हो जाएगी, जो लगातार गहराती जा रही है?
जिस समय पूरे देश के तमाम स्कूलों, दफ्तरों और मुहल्लों के साथ ही मस्जिदों और मदरसों में भी तिरंगे फहराऐ जा रहे थे ठीक उसी समय सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा था.
इस वीडियो में कुछ ‘धार्मिक नेता‘ लोगों को यह बता रहे थे कि तिरंगा भारत का राष्ट्रीय ध्वज नहीं हो सकता. इसे हटाया जाना चाहिए. वे एक तरह से उस प्रतीक को ही चुनौती दे रहे जिसके आधार पर बहुत से दूसरे लोग राष्ट्रीय एकता का सपना गढ़ रहे हैं.
यहां इस उदाहरण को देने का मकसद सिर्फ यह बताना है कि जिसे हम सांप्रदायिकता की समस्या कहते हैं वह पिछले कुछ समय में काफी जटिल हो चुकी है. अब यह सोचना शायद काफी नहीं है कि साल में कुछ खास मौकों पर प्रतीकों का इस्तेमाल करके हम इस समस्या से पूरी तरह मुक्ति पा लेंगे.
जटिल समस्याओं के समाधान कभी इतने आसान नहीं होते. समस्या बड़ी है, इसलिए सभी स्तरों पर लगातार कोशिश करते रहने की जरूरत है.इसके लिए कईं स्तरों पर नए दरवाजे खोलने होंगे और नए विमर्श शुरू करने होंगे. हां इस बीच प्रतीकों का इस्तेमाल मत रोकें. यह काम जारी रहना चाहिए. इनकी भी उपयोगिता है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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