डॉ. फ़िरदौस ख़ान
हिन्दी साहित्य में प्रयोगवाद एक काव्य-आन्दोलन था. सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' को प्रयोगवाद का प्रवर्तक माना जाता है, क्योंकि 1943में उनकी पत्रिका 'तार सप्तक' के प्रकाशन के साथ ही इसका प्रारम्भ हुआ था. यह आन्दोलन 1951तक चला. इसे नई कविता के रूप में भी जाना जाता है. उल्लेखनीय है कि 'तार सप्तक' में सात कवियों सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’, रामविलास शर्मा, गजानन माधव 'मुक्तिबोध', प्रभाकर माचवे, भारत भूषण अग्रवाल, गिरिजाकुमार माथुर और नेमिचंद्र जैन की रचनाएं शामिल थीं. अज्ञेय ने ‘तार सप्तक’ के साथ-साथ पत्रिका ‘प्रतीक’ के माध्यम से भी इस आन्दोलन को प्रोत्साहित किया.
इस आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य साहित्य विशेषकर कविताओं में नये प्रयोगों, मनोभावों, अनुभवों और विचारों को शीर्ष स्थान देना था. हालांकि अपने प्रारम्भिक दौर में यह आन्दोलन प्रगतिवाद से प्रभावित था, परन्तु अपनी विशिष्टता के कारण इसने स्वतंत्र पहचान स्थापित कर ली. इस प्रकार नई कविता अस्तित्व में आई और उसका विकास हुआ. वास्तव में प्रयोगवाद केवल एक काव्य शैली नहीं थी, बल्कि यह एक ऐसा नवीन दृष्टिकोण था, जिसने कविता को रूढ़ियों से निकालकर एक खुला आकाश प्रदान किया. इस प्रकार कविता पारम्परिक बंधनों से मुक्त होकर खुले मन से विचरने लगी.
प्रयोगवाद में कविता को नवीनता प्रदान करने के लिए नये प्रतीकों, बिम्बों और उपमानों का प्रयोग किया गया. इसमें व्यक्तिवाद को महत्व दिया गया. व्यक्ति की निजी भावनाओं, उसके दुख-सुख और उसके अनुभवों को प्राथमिकता दी गई. काव्य में भावुकता से अधिक चिन्तन और विचारों को महत्व दिया गया. इतना ही नहीं, काव्य शैली में भी नये प्रयोग किए गये. पारम्परिक छन्दों और शिल्प को त्याग कर नई शैली और लय का प्रयोग किया गया. रीत रहे क्षणों में न केवल सम्पूर्ण जीवन जीने की कामना की गई, बल्कि इसका हरसंभव प्रयास भी किया गया.
प्रयोगवाद की एक प्रमुख विशेषता यह भी थी कि इसमें व्यक्ति की उन दमित निजी इच्छाओं और मनोवृत्तियों को खुलकर व्यक्त किया गया, जो समाज में किसी भी रूप में मान्य नहीं थीं.
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय'
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' हिन्दी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार थे. वे कवि, कथाकार, उपन्यासकार, ललित निबंधकार, शैलीकार और सम्पादक थे. उन्होंने 1943में सात कवियों की कविताओं और उनके वक्तव्यों को लेकर ‘तार सप्तक’ का सम्पादन करके एक इतिहास रच दिया. हिन्दी साहित्य में इसे प्रयोगवाद, प्रयोगशील कविता और नई कविता के रूप में जाना जाता है.
उन्होंने अपनी रचनाओं में नये बिम्बों, प्रतीकों और उपमानों का प्रयोग कर भाषा को प्रभावशाली बनाया. उनकी प्रमुख रचनाओं में भग्नदूत, चिंता, इत्यलम, हरी घास पर क्षण भर, बावरा अहेरी, आंगन के पार द्वार, पूर्वा, कितनी नावों में कितनी बार, क्योंकि मैं उसे जानता हूं, सागर मुद्रा, पहले मैं सन्नाटा बुनता हूं और उपन्यासों में शेखर, एक जीवनी, नदी के द्वीप व अपने अपने अजनबी शामिल हैं.
अज्ञेय समाचार पत्र ‘सैनिक’ और ‘विशाल भारत’ के सम्पादक मंडल में रहे. उन्होंने पत्रिका प्रतीक, साप्ताहिक दिनमान और राष्ट्रीय दैनिक नवभारत टाइम्स में सम्पादक का दायित्व भी संभाला. उत्कृष्ट लेखन के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उन्हें अंतर्राष्ट्रीय 'गोल्डन रीथ' पुरस्कार भी प्रदान किया गया.
डॉ. रामविलास शर्मा
डॉ. रामविलास शर्मा हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि, निबंधकार, आलोचक, इतिहासवेत्ता और भाषाविद थे. हालांकि उन्होंने कविताएं अधिक नहीं लिखीं, लेकिन वे हिन्दी के प्रयोगवादी काव्य-आन्दोलन के आधार स्तम्भ रहे.
‘तार सप्तक’ के एक वक्तव्य में उन्होंने कहा था- ‘‘कविता लिखने की ओर मेरी रुचि बराबर रही है, लेकिन लिखा है मैंने कम. जो व्यक्ति एक विकासोन्मुख साहित्य की आवश्यकताओं को चीन्ह कर उनके अनुरूप गद्य लिखे, वह कवि हो भी कैसे सकता है? मेरे बहुत से लेख साहित्य के अशाश्वत सत्य, वाद-विवादों से पूर्ण हैं. कविता में शाश्वत सत्य की मैंने खोज की हो, यह भी दिल पर हाथ रखकर नहीं कह सकता. पता नहीं, कविता पढ़कर अपरिचित मित्र मेरे बारे में किस तरह की कल्पना करेंगे. मैं उन्हें इस बात का आश्वासन देना चाहता हूं: जैसे वे मेरी कविताओं के बारे में सीरियस नहीं हैं, वैसे मैं भी नहीं हूं. आशा है यह प्रकाशन अंतिम होगा.’’
उन्होंने यह भी कहा था- “मेरे समस्त विवेचनात्मक गद्य के भावस्रोत यहीं हैं. जो लोग पूछते हैं, कविता लिखना क्यों छोड़ दिया, उन्हें मैं कह सकता हूँ, अपनी कविता की व्याख्या ही तो करता रहा हूं.“
उनकी प्रमुख रचनाओं में चार दिन (उपन्यास), महाराजा कठपुतली सिंह (प्रहसन), पाप के पुजारी (नाटक), काव्य संग्रहों में बुद्ध वैराग्य तथा प्रारम्भिक कविताएं, सदियों के सोये जाग उठे, तार सप्तक में संकलित कविताएं तथा रूपतरंग आदि शामिल हैं. इसके अलावा उन्होंने साहित्यिक आलोचना, भाषा-समाज और भाषाविज्ञान, इतिहास, समाज और संस्कृति एवं दर्शन, आत्मकथा, साक्षात्कार, पत्र-संवाद और सम्पादकीय आदि की असंख्य पुस्तकें लिखी हैं. उन्होंने विभिन्न विषयों की अनेक पुस्तकों का हिन्दी में अनुवाद भी किया.
हिन्दी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए उन्हें अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें साहित्य अकादमी पुरस्कार, शलाका सम्मान, भारत भारती पुरस्कार, व्यास सम्मान, साहित्य अकादमी की महत्तर सदस्यता सम्मान और शताब्दी सम्मान आदि शामिल हैं.
शमशेर बहादुर सिंह
शमशेर बहादुर सिंह आधुनिक हिन्दी कविता के प्रगतिशील कवि थे. उन्होंने हिन्दी काव्य में शिल्प के नवीनतम रूपों का प्रयोग किया. उन्हें हिन्दी काव्य में वही स्थान प्राप्त है, जो अंग्रेज़ी काव्य में कवि एज़रा पाउंड को हासिल है. उनकी प्रमुख कृतियों में कुछ कविताएं, कुछ और कविताएं, शमशेर बहादुर सिंह की कविताएं, इतने पास अपने, उदिता : अभिव्यक्ति का संघर्ष, 'चुका भी हूं नहीं मैं, बात बोलेगी, काल तुझसे होड़ है मेरी, शमशेर की ग़ज़लें (काव्य), दोआब (निबंध संग्रह), प्लाट का मोर्चा (कहानियां व स्केच) और शमशेर की डायरी शामिल हैं. उन्होंने अनेक पुस्तकों का हिन्दी में अनुवाद भी किया. वे पत्रिका ‘माया’ और ‘मनोहर कहानियों’ में सहायक सम्पादक रहे. उन्हें साहित्य अकादमी, मैथिली शरण गुप्त पुरस्कार और कबीर सम्मान आदि से पुरस्कृत किया गया.
गजानन माधव 'मुक्तिबोध'
गजानन माधव 'मुक्तिबोध' सुप्रसिद्ध प्रगतिशील कवि, कथाकार, उपन्यासकार, निबंधकार और आलोचक थे. यह भाग्य की विडंबना ही थी कि उन्हें उनके जीवनकाल में साहित्य जगत में वह स्थान और सम्मान नहीं मिला, जिसके वह हक़दार थे. मगर मृत्यु के बाद वे हिन्दी साहित्य जगत में छा गए. वे भाषा के चित्रकार थे. उनकी रचनाओं में चित्रात्मक वर्णन मिलता है.
उनकी प्रमुख कृतियों में अंधेरे में, काठ का सपना, प्रश्न , ब्रह्मराक्षस का शिष्य, लेखन, विपात्र, सौन्द्र्य के उपासक (कहानी) और एक अंतःकथा, एक भूतपूर्व विद्रोही का आत्म-कथन, एक स्वप्न कथा, चाँद का मुंह टेढ़ा है, जब प्रश्न चिह्न बौखला उठे, ब्रह्मराक्षस, भूल-ग़लती, मैं उनका ही होता, मैं तुम लोगों से दूर हूं, मुझे मालूम नहीं, मुझे याद आते हैं, मेरे लोग, शून्य (काव्य) आदि शामिल हैं.
प्रभाकर माचवे
प्रभाकर माचवे हिन्दी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार थे. साहित्य अकादमी की स्थापना से लेकर उन्होंने अपने अंतिम समय तक हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए. उनकी प्रमुख कृतियों में स्वप्न भंग, अनुक्षण, विश्वकर्मा (कविता संग्रह) तेल की पकौड़ियां, खरगोश के सींग (व्यंग्य संग्रह) के अलावा उपन्यास, निबंध, समालोचना आदि शामिल हैं. उन्होंने असंख्य पुस्तकें लिखीं. उन्हें साहित्य वाचस्पति, सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, सुब्रह्मण्यम भारती पुरस्कार आदि से सम्मानित किया गया.
भारतभूषण अग्रवाल
भारतभूषण अग्रवाल हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि थे. उन्होंने मध्यवर्गीय लोगों के संघर्ष को लेकर ख़ूब लिखा. इसलिए उन्हें नगरीय जीवन का प्रथम कवि कहा गया. उनकी प्रमुख कृतियों में छवि के बंधन, जागते रहो, ओ अप्रस्तुत मन, अनुपस्थित लोग, मुक्तिमार्ग, एक उठा हुआ हाथ, उतना वह सूरज है, अहिंसा, चलते-चलते, परिणति, प्रश्नचिह्न, फूटा प्रभात, भारतत्व, मिलन, विदा बेला, विदेह, समाधि लेख आदि शामिल हैं. उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
गिरिजाकुमार माथुर
गिरिजाकुमार माथुर हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि, कथाकार, नाटककार और समालोचक थे. उन्होंने कविता में नये प्रयोग किए. उनके मुख्य काव्य संग्रहों में नाश और निर्माण, मंजीर, धूप के धान, शिलापंख चमकीले, जो बंध नहीं सका, साक्षी रहे वर्तमान, भीतर नदी की यात्रा, मैं वक़्त के हूं सामने तथा छाया मत छूना मन आदि शामिल हैं. उन्होंने कहानी, नाटक और आलोचनाएं भी लिखीं. उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
नेमिचंद्र जैन
नेमिचंद्र जैन भी हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि, नाट्य-समीक्षक, समालोचक, पत्रकार और अनुवादक थे. उनकी प्रमुख कृतियों में अधूरे साक्षात्कार, रंगदर्शन, बदलते परिप्रेक्ष्य, रंग-परंपरा, दृश्य-अदृश्य, भारतीय नाट्य-परंपरा आदि शामिल हैं. उन्होंने हिन्दी दैनिक चौथा संसार का सम्पादन भी किया था. वे रंगमंच की त्रैमासिक पत्रिका ‘नटरंग’ के संस्थापक सम्पादक रहे. उन्हें पद्मश्री अलंकरण, संगीत नाटक अकादमी के राष्ट्रीय सम्मान और दिल्ली हिन्दी अकादमी के शलाका सम्मान से सम्मानित किया गया.
नरेश मेहता
हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि नरेश मेहता ने भी आधुनिक कविता को नया आयाम प्रदान किया. उनकी भाषा भावपूर्ण और प्रवाहमयी है. उन्होंने अपने काव्य में रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास और मानवीकरण आदि अलंकारों का प्रयोग किया है. उनकी प्रमुख कृतियों में अरण्या, उत्तर कथा, एक समर्पित महिला, कितना अकेला आकाश, चैत्या, दो एकान्त, धूमकेतुः एक श्रुति, पुरुष, प्रति श्रुति, प्रवाद पर्व, बोलने दो चीड़ को, यह पथ बन्धु था, हम अनिकेतन आदि शामिल हैं. उन्हें ज्ञानपीठ और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
धर्मवीर भारती
धर्मवीर भारती भी आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रमुख कवि, कहानीकार, उपन्यासकार, नाटककार और पत्रकार थे. उनका उपन्यास ‘गुनाहों का देवता’ और ‘सूरज का सातवां घोड़ा’ बहुत लोकप्रिय है. उनका नाटक ‘अंधा युग’ भी बहुत प्रसिद्ध हुआ. वे साप्ताहिक पत्रिका ‘धर्मयुग’ के प्रधान सम्पादक भी रहे. उन्होंने विभिन्न विधाओं में अनेक पुस्तकें लिखीं. उन्हें अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें पद्मश्री, संगीत नाटक अकादमी, राजेन्द्र प्रसाद सम्मान, भारत भारती सम्मान, महाराष्ट्र गौरव और व्यास सम्मान आदि प्रमुख हैं.
(लेखिका शायरा, कहानीकार और पत्रकार हैं)